इक्कीसवीं सदी और कोईलवर का पुल

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

1857 में देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम हुआ और उसके ठीक पाँच साल बाद पटना और आरा के बीच सोन नदी पर कोईलवर पुल का उद्घाटन हुआ। ये एक रेल सह सड़क पुल है।

संभवतः ये देश का सबसे पुराना रेल पुल हो जो 150 साल बाद भी शान से अपनी सेवाएँ दे रहा है। नई दिल्ली से कोलकाता जाने वाली राजधानी इस पर से सरपट गुजर जाती है। इसके बाद कई पुल बने जो जर्जर हाल में पहुँच चुके हैं पर कोईलवर का पुल सफल इंजिनियरिंग का अदभुत नमूना है। उन्नीसवीं सदी का ये पुल इक्कीसवीं सदी में भी गर्व से अपनी सेवाएँ दे रहा है।

देश का सबसे लंबा रेल सह सड़क पुल – 1978 के बाद मैं अनगिनत बार इस पुल से गुजरा हूँ। नीचे-नीचे सड़क मार्ग है और ऊपर-ऊपर रेल मार्ग के लिए दो लेन बने हैं। इस पुल का नाम बिहार के जाने माने स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर अब्दुल बारी के नाम पर रखा गया है। आरा की तरफ से जाने पर कोईलवर रेलवे स्टेशन के ठीक बाद पुल शुरू हो जाता है। इस पुल को देश का सबसे बड़ा रेलवे पुल होने का भी श्रेय प्राप्त था। ये सोन नदी पर बना आखिरी पुल भी है। इसके बाद सोन नदी गंगा में मिल जाती है।

ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी ने 1851 में सोन नदी पर रेल पुल बनाये जाने के लिए सर्वे की शुरुआत की। ब्रिटिश सरकार ने इस पुल का निर्माण 1856 में शुरू कराया। पाँच साल में पुल बनकर तैयार हो गया। इसे रेल सह सड़क पुल को 1862 में यातायात के लिए खोल दिया गया। 2012 में इस पुल ने शानदार 150 साल पूरे किये। लगभग डेढ़ किलोमीटर (1440 मीटर) लंबे इस पुल का उदघाटन तत्कालीन वायसराय लार्ड एल्गिन ने किया था। इस पुल का डिजाइन जेम्स मिडोज रेनडेल और सर मैथ्यु डिग्बी वाइट ने किया था। रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गाँधी में इस पुल की छोटी सी झलक देखी जा सकती है। 

आजकल सड़क पर ट्रैफिक का बोझ बढ़ जाने के कारण इस पुल पर कई बार जाम की स्थित बन आती है। हाल के सालों में पुल के आसपास से लगातार बालू निकाले जाने के कारण पुल की सेहत को खतरा हुआ है। 

एक बीमार पुल की दास्ताँ

अब इसी के पास एक और पुल की बात कर लें पटना और हाजीपुर को जोड़ने वाले सड़क पुल महात्मा गाँधी सेतु की शुरुआत 1984 में हुई। ये पुल 14 साल बनकर तैयार हुआ। इसे देश के सबसे लंबे नदी पुल होने का श्रेय मिला। पुल की कुल लंबाई 5.5 किलोमीटर है। इसे गैमन इंडिया ने बनाया। पर पुल इतना घटिया बना कि तीन दशक भी ट्रैफिक को नहीं झेल सका। पिछले कई सालों से ये पुल मरणासन्न हाल में है। 150 सालों में विज्ञान और तकनीक ने काफी प्रगति की है,  पर हमें कोईलवर के इस पुल की निर्माण तकनीक से कुछ सीखने की जरूरत है। 

(देश मंथन 10 जून 2015)

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