संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
करीब 30 साल पहले मैं अपनी जन्मभूमि से दूर जा रहा था तब मेरी खुली आँखों में हजारों यादें सिमटी थीं।
बहुत साल पहले मेरा जन्म इसी पटना शहर में हुआ था। लेकिन नियती ने मुझे न सिर्फ जन्म देने वाली से मुझे दूर किया, बल्कि जन्म स्थली से भी दूर कर दिया। मैंने बार-बार कहा है कि मनुष्य सिर्फ निमित्त मात्र है, इसलिए नियती के हर फैसले को मैंने खुशी से स्वीकार किया। माँ ने बहुत पहले मुझे समझा दिया था कि तुम कभी नियंता बनने की कोशिश मत करना, सिर्फ कर्म करना।
माँ की ढेरों कहानियों का निचोड़ रिश्तों की कड़ियों और जिन्दगी के सफर पर रुक जाता था। पिताजी मुझे बीए और एमए की पढ़ाई के लिए उकसाते, तो माँ जिन्दगी की पढ़ाई के लिए प्रेरित करती। पिताजी हिन्दी और अंग्रेजी भाषा सीखने पर जोर देते, तो माँ दिल की भाषा सीखने को प्रेरित करती। एक जीवकोपार्जन का पाठ पढ़ा रहा था, दूसरी जीवन का पाठ पढ़ा रही थी।
ऐसी ही परवरिश रही मेरी। माँ ने हर बार कहा, संजय तुम कभी दुविधा में मत रहना। तुम बड़ा बनने की चाहत में कभी आदमी बनना मत भूल जाना। जीवन कुछ नहीं होता, सिर्फ यादों का पुलिन्दा होता है, और इसका अहसास तब होता है, जब जिन्दगी जीने की तैयारी में खर्च हो जाती है। तुम जिन्दगी को जीना, जीने की तैयारी में इसे खर्च मत कर देना।
माँ जानती थी कि वो जो कह रही है, उसे बेशक मैं तब नहीं समझ पाऊँगा, लेकिन एक समय आयेगा, जब उसके लगाए संस्कारों के बीज फल देने लगेंगे।
मैंने करीब डेढ़ साल पहले यानी नवंबर 2012 में तय किया कि मैं हर सुबह फेसबुक पर कुछ लिखूँगा। क्या लिखूँगा और क्यों लिखूँगा ये तय नहीं किया। माँ ने कहा था कि सिर्फ कर्म करना। मैंने लिखना शुरू कर दिया। उसके बाद लिखना मेरी आदत बन गयी। और लिखने की इसी कड़ी में मैं उन रिश्तों से जुड़ने लगा, जिन्हें मेरे लिए नियती ने तय करके रखा था।
मुझे एक-एक पल याद है, जब आपने मेरे लिखे पर अपना लाइक बटन दबाया, मुझे गुड मॉर्निंग कहा, मुझसे अपनी बातें साझा करनी शुरू कीं।
फेसबुक वालों ने नहीं सोचा होगा कि रिश्तों की ये कड़ियाँ कभी पाँच हजार से ऊपर भी जा सकती हैं। लेकिन आपके प्यार और आपके दुलार ने फेसबुक की सोच को भी पार कर लिया। फेसबुक के रचयिता जुकर बर्ग अगर मेरी माँ से मिले होते, तो इसे पाँच हजार की तकनीकी सीमा से बहुत ऊपर ले जा पाते।
मेरे आपके प्यार की कहानी शब्दों की सीमा और मित्रों की संख्या से कहीं ज्यादा होती चली गयी। और उसका निचोड़ पिछले साल दिल्ली में एक किताब की शक्ल में सामने आया – ‘रिश्ते’।
दूसरी किताब के विषय में मैं अभी सोच ही नहीं सकता था। लेकिन माँ ने कहा था कि तुम नियंता नहीं।
तो निंयता ने सिर्फ छह महीने में रिश्तों को ‘जिन्दगी’ में बदल दिया। मेरी जन्मभूमि ने मुझे आवाज दी कि आओ, मुझे प्रणाम करो। मैंने बहुत सोचा। जिन्दगी का विमोचन बिहार में क्यों? बिहार ने तो मुझे बहुत पहले छोड़ दिया था।
“नहीं, देवकी ने तुम्हें कभी छोड़ा ही नहीं था। देवकी छूट नहीं सकती। नियंता ने किसी मकसद से तुम्हें यशोदा के पास भेजा था। तुम्हारे लिए उसने अपने कलेजे पर पर पत्थर रख लिया था। तुम ऐसा कैसे कह सकते हो कि जन्मभूमि किसी को छोड़ सकती है। नियती ने तुम्हारा निर्माण इस मिट्टी से किया है, तुम्हें आना ही होगा।”
मैंने बार-बार लिखा है कि मैं अपने दफ्तर के काम के सिलसिले में सुबह से रात तक राजनीति में डूबा रहता हूँ, लेकिन राजनीति मेरा प्रेम नहीं। राजनीति पर मैं आपसे चर्चा भी नहीं करता। पर जब रिश्ते दिल्ली में रिलीज हुई थी, तब यूँ ही नीतीश कुमार जी से मेरी मुलाकात हुई और मैंने रिश्ते किताब उन्हें भेंट की, तो उन्होंने मुझसे कहा कि तुम कभी पटना आना।
मैंने नहीं सोचा था कि मैं पटना आऊँगा और मेरी माँ के लगाये रिश्तों के फल मुझे इस कदर अभिभूत कर देंगे।
कल पटना के उस श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में मैं बैठा था, जिसे न जाने कितनी बार पटना में कभी रहते हुए अपनी साइकिल से चक्कर लगाता हुआ देखा करता था। एक बार दिल्ली के मेरेडियन होटल में मैंने शाहरुख खान से पूछा था कि आपको कैसा लगता है उस होटल में खुद को इतने लोगों के बीच घिरे हुए देख कर, जिस होटल को आपने न जाने कितनी बार आते-जाते हुए यूँ ही देखा था। शाहरुख खान लंबी यादों में खो गये थे।
कल मुझसे किसी ने पूछा कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं, दस हजार लोगों की मौजूदगी में ‘जिन्दगी’ के विमोचन के मौके पर?
मैं लंबी यादों में खो गया।
पूरा हॉल खचाखच भरा था। बिहार के मुख्य मन्त्री कह रहे थे कि उन्होंने ‘रिश्ते’ पढ़ी है। कल दरभंगा से आते हुए कार में उन्होंने ‘जिन्दगी’ के कई पन्ने पढ़ लिये हैं।
मैं यादों में डूबा हुआ था। वो आधे घंटे तक रिश्तों की चर्चा करते रहे। मैं आधे घंटे आप सबकी यादों में डूबा रहा। कैसे हम 15 नवंबर को दिल्ली में संजय सिन्हा फेसबुक परिजन मिलन समारोह में मिले थे। कैसे सौ से हजार और हजार से दस हजार का हमारा परिवार खड़ा हो गया है। कैसे लोग अपना प्यार मुझ पर लुटा रहे थे।
आज सुबह-सुबह होटल मौर्या में मेरे कमरा नंबर 201 की घंटी बजी, कई लोग मुझसे मिलने आये थे। कल दोपहर में मैं पटना पहुँचा था, कई लोग मुझसे मिलने आये। कई लोग सपरिवार आये। मेरे एक परिजन तो पटना से समस्तीपुर जाते हुए रुके और अपनी पत्नी, अपने दोस्त उनकी पत्नी को साथ लिये आये। सबने दिल खोल कर अपना प्यार उड़ेला। ये सभी मेरी माँ के लगाये रिश्तों के वृक्ष के फल हैं, जिसे 35 साल पहले इस संसार को अलविदा कहने से माँ ने लगाया था, मेरे लिए।
आज मैं लिखते-लिखते बहुत भावुक हो गया हूँ। उंगलियाँ नहीं चल रहीं।
यही रुकना पड़ेगा। आज कहने को बहुत कुछ है। लेकिन फिर कभी…
(देश मंथन 13 जून 2015)