आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
मैं फेसबुक पर उस दिन हैरान रह गया जब मैंने खुद को फेसबुक पर एक साथ ब्रह्मचर्य उत्थान समूह का और गरम कहानियाँ समूह का हिस्सा पाया।
ब्रह्मचर्य वाले मुझसे बिना पूछे मुझे अपने समूह में जोड़ गये और गरम कहानी वालों ने भी पूछने की जरूरत ना समझी। इस स्थिति को ऑटोमोबाइल की भाषा में समझें, तो यह होगी कि एक ही बन्दा एक साथ स्पीड भी बढ़ा रहा है और ब्रेक भी लगा रहा है।
फेसबुक- ग्रुप्स में यह बहुत होता है। बन्दा एक साथ टेस्टी चिकन समूह और शाकाहार ग्रुप का सदस्य दिख सकता है। ग्रुप में जोड़ने वाले पूछने की जरूरत ना समझते। नास्तिक मंडल का सदस्य उसे बना देते हैं, जो पहले ही बंसीवाले की जय हो- समूह का सदस्य हो।
मुझे मैखाना समूह का मेंबर भी बना दिया गया है और नशाबन्दी विरोधी समूह का भी मेंबर मैं हूँ। फेसबुक पर कोई अपने सारे ग्रुप देख ले, तो एकदम उसे समझ आ जाता है कि हे! आम आदमी तेरे हाथ में कुछ नहीं है, सिवाय परेशान होने के।
ऐसे ही एक तकनीक- जानकार से मैंने पूछा- तमाम समूह मुझसे पूछे बिना मुझे अपने समूह में जोड़ जाते हैं। मुझसे पूछना तो बनता है।
तकनीक- जानकार हँसने लगा और बोला- तुम हो क्या, सिर्फ आम आदमी। आम आदमी से कभी पूछा जाता है क्या। तुम कर क्या लोगे, ना पूछे जाने पर। तुम्हारे क्षेत्र में पोस्टर लगते हैं एक चेन-स्नैचर नेता के (जो अगले चुनाव में प्रत्याशी हो सकता है) कि वह नेता तो क्षेत्र की जनता का हृदय सम्राट है। तुम भी उसी क्षेत्र की जनता हो, नेता के पोस्टर के हिसाब से वह नेता तुम्हारे हृदय का भी सम्राट है।
मैंने खंडन किया-ना, ना, ना वह मेरा हृदय सम्राट ना है।
तकनीक जानकार फिर बोला- तुमसे कभी पूछा जाता है क्या। अब वह नेता ये पोस्टर तो ना लगायेगा कि क्षेत्र की जनता के हृदय सम्राट, नोट करें, निम्नलिखित लोगों के हृदय सम्राट हमारे नेताजी नहीं हैं।
पर यह बात गलत है- मैंने फिर कहा।
पर तुमसे पूछ कौन रहा है- तकनीक- जानकार ने फाइनली बता दिया है।
(देश मंथन 15 जून 2015)