बापू ने डाली थी बुनियादी शिक्षा की नींव

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

बेतिया शहर के पास कुमारबाग के पास है वृंदावन आश्रम। यह वही आश्रम है, जहाँ बापू पन्डित प्रजापति मिश्र, गुलाब खाँ व पीर मुहम्मद मुनिस के द्वारा निमन्त्रण पर गाँधी सेवा संघ के पंचम अधिवेशन के के मौके पर 2 मई, 1939 को एक बार फिर चंपारण की धरती पर पहुँचे थे।

इसी वृंदावन में बनी कुटिया में 9 मई, 1939 तक रहकर जनता को प्रेरित किया था। इसी दौरान बापू ने स्वावलंबन आधारित शिक्षा की नींव रखी, जिसके तहत 4 मई 1939 को बुनियादी शिक्षा की शुरुआत हुई।

उद्योग विकास और रोजगारपरक शिक्षा के लिए बिहार में 29 बुनियादी विद्यालयों की शुरुआत बड़े ही जोर शोर से की गयी थी। ऐसे ही बिहार के एक बुनियादी विद्यालाय कन्हौली (वैशाली) में मैंने स्कूली शिक्षा पायी। मेरे स्कूल का नाम था राजकीय उच्च बुनियादी विद्यालय था। उद्देश्य था कि स्कूल में सिर्फ किताबी ज्ञान न दिया जाए बल्कि ग्रामीण बच्चों को पढ़ाई के साथ कौशल प्रशिक्षण भी दिया जाए, जिससे वे बाद में कोई रोजगार कर सकें। इन स्कूलों में कभी सूत कताई और करघा चलाना अनिवार्य तौर पर सिखाया जाता था। ये स्कूल पहली से आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई वाले थे। इन स्कूलों को बापू के ग्राम स्वराज्य के सपने के अनुरूप खोला गया था। पर इन स्कूलों का अब नाम पर बुनियादी विद्यालय रह गया है।

1980 से 1983 के दौरान हमारे बुनियादी विद्यालय में बुनियादी शिक्षा बिल्कुल ही बन्द हो चुकी थी पर कौशल का प्रशिक्षण देने वाले तमाम यन्त्र और इससे जुड़ी हुयी पुस्तकें दो बन्द कमरों में धूल फाँक रहे थे। अब ये स्कूल सामान्य स्कूलों की तरह की संचालित किये जा रहे हैं। आज एक बार फिर कौशल विकास की बात जोर-शोर हो रही है, पर स्कूली स्तर पर बुनियादी शिक्षा उस कौशल विकास का उत्कृष्ट नमूना था, जिसे हम कब से भूला बैठे हैं।  बिहार में हमारे हाईस्कूल कोर्स में सातवीं से दसवीं क्लास के बीच कार्यानुभव और शैक्षिक परियोजना का एक विषय हुआ करता था। पर इसकी कभी पढ़ायी और परीक्षा नहीं होती थी। हाँ बोर्ड की परीक्षा में अंक पत्र पर इस विषय का ग्रेड जरूर लिखा जाता था। अक्सर इसमें सबको ए ग्रेड दे दिया जाता था। यह व्यवहारिक शिक्षा के साथ बड़ी धोखाधड़ी थी।

आज मैं बापू के इस बुनियादी शिक्षा को याद करता हूँ, तो हमारे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एमए की कक्षा में पढ़ने वाले दो साथी याद आते हैं। यज्ञनाथ झा ने एमए करने के बाद एक नामी बिस्कुट कंपनी में प्रोडक्शन का काम देखना शुरू किया। आज वह उस क्षेत्र में सफल हैं। हमारी एक और मित्र पद्मा ने तो पीएचडी किया पर शिक्षण के क्षेत्र में नहीं गईं, कभी जो उनका शौक था वह रोजगार बन गया। वे इलाहाबाद में कौशल विकास केंद्र चला रही हैं। इससे ये महसूस होता है कि पढ़ाई के साथ कौशल विकास वाली शिक्षा कितनी जरूरी है।

पश्चिम चंपारण के जिला मुख्यालय बेतिया में हजारीमल धर्मशाला वह जगह है जहाँ बापू भितिहरवा जाने के क्रम में रुके थे। हजारीमल धर्मशाला को बिहार सरकार द्वारा सुरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। इसकी रख-रखाव की व्यवस्था कला, संस्कृति एवं युवा (पुरातत्व निदेशालय) विभाग को है। पर इसकी हालत भी अब बदतर बतायी जाती है।

(देश मंथन, 9 जुलाई 2015)

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