अज्ञानता की पट्टी उतारने वाले ही जीतते हैं

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश कि महाभारत काल में गांधारी की शादी जब हस्तीनापुर के नेत्रहीन राजा धृतराष्ट्र से हो गई, तो गांधार के लोगों ने उस पर क्या प्रतिक्रिया जतायी? क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की कि जब कोई स्त्री अपने विवाह को अपनी किस्मत मान कर अपनी आँखों पर पट्टी बांध लेती है, तो उससे जुड़े लोगों पर क्या गुजरती है?

इतना तो आपको आपकी माँ, दादी या नानी ने कहानी में सुना दिया होगा या फिर आपने टीवी पर भी महाभारत सीरियल में देख लिया होगा कि गांधारी को अन्धेरे से डर लगता था। और उससे ज्यादा उसके भाई शकुनि को अपनी बहन के डर से डर लगता था। गांधारी के महल में क्षण भर के लिए भी अंधेरा न हो, इसलिए वहाँ रात-दिन दीपक जलते रहते थे, पर भाई का दिल इतने से नहीं मानता, तो वो बहन के लिए जंगल से जुगनू पकड़ कर लाया करता था और शीशे की जार में रख कर बहन के कमरे में रख दिया करता था, ताकि कभी हवा के झोंके दीपक की लौ इधर-उधर कर दें, तो भी बहन को जुगनुओं से रोशनी मिलती रहे।

मेरा यकीन है कि आपने इस विषय में कभी जानने की जहमत ही नहीं उठायी होगी कि जिस दिन गांधारी ने जन्मांध धृतराष्ट्र से विवाह की हामी भर दी, साथ ही ऐलान कर दिया कि अब वो पति के अंधेपन को समझने के लिए अपनी आँखों पर सदा के लिए पट्टियाँ बांध लेगी, उस दिन उस गांधार के लोगों पर क्या गुजरी होगी? 

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आइए आज आपको मैं एक नए संसार की यात्रा पर ले चलता हूँ। आपने हस्तिनापुर की बहुत सी कहानियाँ सुनी हैं। आज मैं आपको ऋगवेद और अथर्ववेद के उन पात्रों से मिलवाना चाहता हूँ, जिन्हें उसमें गांधार कह कर संबोधित किया गया है। खास तौर पर ऋगवेद में जिन्हें गांधार कहा गया है, वो पुष्करावती नामक जगह थी, जहाँ बहुत से चरवाहे रहा करते थे। इनका संबंध मुजावत नामक जाति के साथ था, जिसका अर्थ अशिक्षित और असभ्य समाज से था।

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धृतराष्ट्र जन्म से नेत्रहीन थे। सारा संसार इस सच को जानता था। हस्तिनापुर के बाहुबली भीष्म भी इस सच को जानते थे कि दुनिया में कोई भी पिता अपनी बेटी को उनके जन्मांध राजकुमार से ब्याहना पसन्द नहीं करेगा। भीष्म को ये पता चला कि पुष्करावती की राजकुमारी बेहद खूबसूरत है, वहाँ के लोग संसार से कटे हुए हैं, भेड़ चराने और ऊन निकालने तक उनका संसार ठहरा हुआ है। शिक्षा से वो कोसों दूर हैं। मतलब वहाँ के लोगों की आँखों पर अज्ञान की पट्टी बंधी हुई है। भीष्म समझ गये ऐसे में अगर वहाँ की राजकुमारी उठा ली जाए, या जोर जबरदस्ती उसका विवाह धृतराष्ट्र से करा दिया जाए, तो कहने को राजकुमारी से विवाह भी हो गया, और कोई विरोध भी नहीं होगा।

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वही हुआ। जब शादी का पैगाम गांधार नरेश के पास पहुँचा, तो साथ में यह भी कहलवा दिया गया कि अगर ‘ना’ हुई तो अपना और अपने राज्य का अंजाम भुगतने को तैयार रहना।

और यह शादी ताकत के बल पर तय हो गयी।

गांधारी फूट-फूट कर रोयी। उसका भाई तड़प उठा, बहन को नेत्रहीन के पल्ले बंधने की खबर सुन कर।

उसने पिता से बहुत गुहार लगायी कि पिता अपनी आँखों से अज्ञान की पट्टी उतारिए, मन से डर निकालिए, युद्ध के लिए तैयार हो जाइए, पर अपनी फूल सी बेटी को हस्तिनापुर के सैनिकों के खौफ से उस जन्मांध को मत सौंपिए। पर गांधार नरेश की हिम्मत नहीं हुई।

फिर भाई ने अपने राज्य के लोगों से गुहार लगायी कि आप साथ दें, तो वो खुद युद्ध लड़ लेगा, पिता के विरुद्ध जाकर लड़ेगा, लेकिन उसकी बहन की रक्षा के लिए कोई तो आगे आये। 

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पर जिस राज्य के लोगों की आँखों पर अज्ञान की पट्टी बंधी होती है, वो भयभीत समाज होता है। दुनिया के सारे सत्ताधीशों की कोशिश रहती है कि उनके राज्य में ज्ञान की किरणों की कोपलें न फूट पाएँ। वो जानते हैं कि अगर ज्ञान की कोपलें फूटेंगी तो फिर उनके दोषों पर लोग एकजुट हो पड़ेंगे। इसलिए जो लोग राजनीति करते हैं, पहले आम आदमी से ज्ञान का अधिकार छीन लेते हैं। वो स्कूल, कॉलेज, इंजीनियरिंग, मेडिकल कॉलेज तो खोलते हैं, पर ज्ञान देने के लिए नहीं, धन कमाने के लिए खोलते हैं। खैर, आज मैं अपने विषय से भटकूँगा नहीं। आज मैं बताऊँगा कि जब गांधारी ने देख लिया कि उसका विवाह टल नहीं सकता, उसके राज्य में कोई उसके पक्ष में खड़ा होने के योग्य ही नहीं, तो उसने ऐलान कर दिया कि अब वो भी नेत्रहीन हो जायेगी। 

आह! कितनी बड़ी बात कह दी थी, फूल कुमारी ने। जिसे अन्धेरे से डर लगता था, उसने अन्धेरे से रिश्ता जोड़ लिया। 

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सारा संसार जानता है कि गांधारी ने आँखों पर पट्टियाँ इसलिए बांध ली थीं, ताकि उसे धृतराष्ट्र का दर्द समझ में आये। लेकिन ये सच नहीं था। खुद धृतराष्ट्र ने गांधारी के इस फैसले का बहुत विरोध किया था। कहा था कि तुम मुझसे दरअसल प्यार नहीं करती, तुमने बदले की भावना में ये फैसला लिया है। इसका क्या मतलब हुआ कि तुम मेरी आँखें बनने की जगह खुद अन्धी हो गयी। गांधारी ने उनके इन सवालों का कोई जवाब नहीं दिया था।

पर गांधार की जनता गांधारी के इस फैसले का मर्म समझ गयी थी। वो समझ गयी कि फूलों से अधिक कोमल उनकी राजकुमारी ने दरअसल अपनी आँखों पर पट्टियाँ बांध कर अपना विरोध उनके प्रति जताया है। अपने पिता के प्रति जताया है, अपने राज्य के प्रति जताया है। उस डर के प्रति जताया है, जिसने उससे उसकी जीवन भर की खुशियाँ छीन लीं। उस अज्ञानता के प्रति जताया है, जिसके कुचक्र में पूरा गांधार घुटने टेकने को मजबूर हो गया।

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गांधारी की शादी धृतराष्ट्र से हो गयी। बहन की शादी से छलनी भाई शकुनि भी अपने देश को छोड़ कर बहन के घर ही रहने चला आया। उसने वहाँ के लोगों से कह दिया कि तुम इस लायक नहीं हो कि तुम्हारे लिए कुछ भी किया जाये। जाओ, अपनी किस्मत पर आँसू बहाओ। 

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अंग्रेज इतिहासकारों ने महाभारत की कहानी को भले कल्पना की उड़ान बताने की भूल की हो, लेकिन अज्ञात इतिहासकार संजय सिन्हा ने अपनी माँ के मुँह से जब ऋगवेद और अथर्ववेद की कहानियाँ सुनते रहे और सच को आत्मसात करते रहे। 

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गांधार से गांधारी के चले जाने के बाद उसकी सहेलियाँ वहाँ फूट-फूट कर रोईं। जनता कई दिनों तक उदास रही। गांधार नरेश ने भी कई दिनों तक खाना नहीं खाया। हाय! केलेज के टुकड़े का ये हाल!

और यहीं से शुरू हुआ जनता में विद्रोह। लोगों में बहुत क्षोभ हुआ कि उनकी राजकुमारी ने अंधेपन को कबूल लिया है। 

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गांधारी ने आँखों पर पट्टी बांध ली थी। लेकिन जिस पल गांधारी ने ये फैसला लिया, उसी पर गांधार के लोगों ने भी एक फैसला लिया। उन्होंने फैसला लिया कि अब वो अपनी आँखों से अज्ञानता की पट्टी उतार फेंकेंगे। वो शिक्षित होंगे और डर पर विजय पाएँगे। लोगों ने तय कर लिया कि अब कोई उनकी बेटियों इस तरह उनकी मर्जी के खिलाफ ताकत के बूते नहीं ले जा पायेगा।

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यही हुआ। 

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जब हस्तिनापुर युद्ध में लीन था, पूरा आर्यावर्त रक्त रन्जित होने का खेल खेल रहा था, गांधार की राजधानी में ज्ञान पर चर्चा के लिए लोग इकट्ठा हो रहे थे। गांधार के लोगों ने अपना पूरा ध्यान शिक्षा पर केंद्रित कर लिया था। अपने व्यापार को बढ़ाने पर कर लिया था। क्योंकि भेड़ पालना उनका मूल पेशा था, इसलिए उन्होंने ऊन के कारोबार को फैलाना शुरू किया। और एक दिन ऐसा आ गया कि जब हस्तिनापुर और आसपास के राज्य के लोग युद्ध की अज्ञानता के दलदल में फंस कर मरने मारने का खेल खेल रहे थे, गांधार शिक्षित हो रहा था। 

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गांधारी ने अपनी आँखों पर पट्टी बांधी, सारे गांधार ने अपनी आँखों से पट्टियाँ उतार फेंकी। धृतराष्ट्र जन्म से नेत्रहीन थे, पूरा हस्तिनापुर उनके पीछे नेत्रहीन हो गया। हश्र बताने की दरकार नहीं। आपने उसके आगे की पूरी दास्ताँ सुनी हुई है। मैं तो एक अज्ञात इतिहासकार हूँ, इसलिए आपको आज ये बता रहा हूँ कि अगर आपने छांदोग्य उपनिषद में गांधार के विषय में अगर पढ़ने की कोशिश की तो आपको गांधार की चर्चा कुछ इस तरह मिलेगी।

“ओ मेरे बच्चे! संसार में जब मनुष्य को उसकी आँखों पर पट्टी बांध कर किसी एकाकी स्थान पर छोड़ दिया जाता है, तो वह चिल्लाता है – मैं यहाँ पट्टी बांध कर लाया गया हूँ। उसका यह स्वर पूर्व, पश्चिम, उत्तर, और दक्षिण चारों दिशाओं में प्रतिध्वनित होता है और उसी समय कोई दयालु आकर उसकी पट्टी खोल देता है, और कहता है कि ये है गांधार का मार्ग। तू इसी मार्ग से आगे बढ़। बुद्धिमान मनुष्य गाँव-गाँव होते हुए और मार्ग पूछते हुए आगे बढ़ता है और अन्त में गांधार पहुँच जाता है। जो गांधार पहुँच जाता है, उसके सामने ज्ञान का भंडार खुल जाता है।”

मतलब ये कि एक ऐसा वक्त आ गया, जब दुनिया में गांधार को शिक्षा का भंडार कहा जाने लगा।

आपने आरुणि की कहानी सुनी होगी। वही आरुणि जो गुरु के आदेश पर खेत में जाकर मेड़ बन गया था। उसने भी गांधार जाकर ही शिक्षा पायी थी। 

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इतिहास से भी पुराना इतिहास गवाह है कि जो अपनी आँखों से अज्ञानता की पट्टी उतार फेंकते हैं, जो डर को जीतने का दम दिखाते हैं, उनका ही नाम उपनिषदों में दर्ज होता है। वेदों में दर्ज होता है। जो ताकत के बूते संसार को जीतने की मूर्खता करते हैं, उनके लिए महाभारत नामक ग्रंथ भले लिखा जाये, पर वो रक्तरंजित अइतिहास होता है। वो शूर गाथा नहीं होती, वो पतन की गाथा होती है।

(देश मंथन 11 जुलाई 2015)

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