आरा जिला घर बा..कौन बात के डर बा…

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

आरा यानी वीर कुअँर सिंह का शहर। आरा मतलब पुराने शाहाबाद का मुख्यालय। कहावत मशहूर है… आरा जिला घर बा…कौन बात के डर बा…आकाश में धोती सुखेला…हालाँकि आरा नाम का जिला कभी नहीं रहा। जिले का नाम तो शाहाबाद था। जब यह बिहार के पुराने 17 जिलों में एक था। अब जिले के चार टुकड़े हो गये हैं। अब भोजपुर जिला है जिसका मुख्यालय आरा है। इस भोजपुर के नाम पर भोजपुरी भाषा बनी है जिसे 20 करोड़ लोग ओढते बिछाते हैं।

लोकोत्तियों और लोकगीतों में आरा का स्थान अव्वल है। भोजपुरी का लोकप्रिय गीत शुरू होता है- आरा हिले बलिया हिले छपरा हिले ला…हो तोहरी लचके जब कमरिया सारा मुहल्ला हिले ला… कितनी भोजपुरी फिल्मों की कहानी आरा से शुरू होती है। लेकिन जनाब आरा हिलता नहीं है अपनी जगह पर अटल है। अंग्रेजों ने कई हिन्दुस्तानी शहरों के नामों स्पेलिंग बिगाड़ी तो आरा को उन्होंने लिखा ARAH पर अब स्पेलिंग सुधार दी गयी है। सही स्पेलिंग है – ARA

आरा रेलवे स्टेशन पर दी गयी जानकारी के मुताबिक आरा रेलवे स्टेशन 1862 में अस्तित्व में आया, जब दानापुर मुगलसराय बड़ी लाइन का संचालन शुरू हुआ। 1872 तक बक्सर से बिहटा तक इस लाइन का दोहरीकरण भी हो चुका था।1862 में ही कोइलवर पुल भी चालू हो चुका था। 1857 में जगदीशपुर के बाबू कुअँर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभायी थी। एक तर्क है कि आरा का नाम गंगा के दक्षिण में ऊँचाई पर होने के कारण आड़ या अराड़ पड़ा जो बिगड़ कर आरा हो गया। पर अनेक हिन्दू धर्मशास्त्रियों का कहना है कि आरा इलाके में कभी सघन वन क्षेत्र था। यह माँ काली के रूप अरण्य देवी का स्थान है। इन्ही अरण्य देवी के नाम पर शहर का नाम आरा पड़ गया।

1857 की क्रान्ति में सक्रिय भूमिका निभाने वाला शहर आरा ने ब्राडगेज रेलवे की छुकछुक देश में रेल सेवा शुरू होने के 9 साल बाद ही सुन ली थी। पर आज आरा विकास की दौड़ में पीछे रह गया है। ऐतिहासिक आरा के रेलवे स्टेशन को मॉडल स्टेशनों की सूची में शामिल नहीं किया गया है। रेलवे स्टेशन पर पैदल पार पुल इतने संकरे हैं कि उसपर दिन भर लोगों के कारण जाम लगा रहता है। 2008 में सासाराम लाइन चालू होने के बाद आरा जंक्शन बन गया पर जन सुविधाओं के नाम पर टोटा है।

आरा शहर में वीर कुअँर सिंह के नाम पर विश्वविद्यालय बन गया है। एचडी जैन कालेज और महाराजा कॉलेज नाम से दो प्रसिद्ध कॉलेज हैं। बिहार की राजधानी पटना से महज 50  किलोमीटर पश्चिम स्थित शहर की नगर योजना बेतरतीब है। पुराने शहर में संकरी सड़कें हैं तो शहर के बाहरी इलाके में अनियंत्रित तरीके से बिना सड़क और सीवर लाइन के कालोनियाँ विकसित हो रही हैं।

जमीन की कीमतें बेहिसाब ऊँची पर जन सुविधा कुछ भी नहीं। छोटे से शहर में तीन बस स्टैंड हैं जो राहगीरों को भ्रमित करते हैं। शहर के विकास का कोई मास्टर प्लान नहीं होने के कारण शहर बदरंग होता जा रहा है। शहर के बीचों बीच स्थित गोपाली चौक, बाबू बाजार आदि में भीड़ बढ़ती जा रही है। आरा संसदीय क्षेत्र है। पर यहाँ से नेतृत्व करने वाले सांसदों ने कभी शहर की सेहत को लेकर संजीदा तौर पर नहीं सोचा। भोजपुर जिले के गाँव-गाँव कला संस्कृति से समुन्नत हैं, पर आरा शहर उसका प्रतिबिंब नहीं बन पाया।

चलते चलते एक और कहावत भोजपुर जिले पर .. भोजपुर जइह मत..जइह त खइह मत…खइह त सुतिह मत..सुतिह त रोइय मत…

शाहाबाद जिले की महान हस्तियाँ 

बाबू कुअँर सिंह, अमर सिंह, आचार्य शिवपूजन सहाय, राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह, महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह। कामरेड ज्योति प्रकाश, रामेश्वर सिंह कश्यप उर्फ लोहा सिंह। मधुकर सिंह और मिथलेश्वर।

(देश मंथन, 21 जुलाई 2015)

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