तमाशों के बताशे खाइए!

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कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :  

क्या तमाशा है? इधर तमाशा, उधर तमाशा, यह तमाशा, वह तमाशा! और पूरा देश व्यस्त है तमाशों के बताशों में! तेरा तमाशा सही या उसका तमाशा सही? तेरी गाली, उसकी गाली, तेरी ताली, उसकी ताली, तू गाल बजा, वह गाल बजाये, तेरी पोल, उसकी पोल, कुछ तू खोल, कुछ वह खोले! और देश बैठ कर बताशे तोले कि चीनी कहाँ कम है? कौन कम गलत है? है न अजब तमाशा! 

सोचिए, जरा! ऐसे तमाशे अगर एक दिन के लिए भी बन्द हो जायें तो ‘लाइफ’ कितनी बोरिंग हो जायेगी! टीवी चैनलों पर क्या बहस होगी उस दिन? वैसे बहस होती भी है क्या? या बहस का तमाशा होता है! अरे भाई साहब, इतना भी नहीं समझते! नकली तमाशों पर असली बहस कैसे हो सकती है? और चूँकि बहस होती ही नहीं, इसलिए घंटों की चिल्लम-चिल्ला के बाद उसमें से चूँ-चूँ का मुरब्बा भी नहीं निकलता! अगले दिन फिर कोई तमाशा, फिर बहस, उसके अगले दिन फिर कोई तमाशा, फिर बहस! तमाशे होते रहते हैं, बहसें होती रहती हैं और लोग मुरब्बा निकलने के इन्तजार में हर दिन अपने टीवी के आगे धीरज के साथ बैठ जाते हैं। कभी तो मुरब्बा निकलेगा। और न निकले तो कोई बात नहीं, कम से कम टाइम पास तो हो जायेगा! अब सोचिए, ये तमाशे न हों, और ये बहसें न हों, तो लोग टाइम पास कैसे करेंगे? डिप्रेशन में आ जायेंगे न!

मैं भ्रष्ट तो तू भी भ्रष्ट

हमारे राजनेताओं को लोगों की बड़ी चिन्ता है। लोग डिप्रेशन में न आयें, आराम से टाइम पास करते रहें।ग़रीबी मिटे न मिटे, आटे-दाल का बजट बने न बने, नौकरियाँ मिलें न मिलें, छेड़छाड़ रुके न रुके, किसानों की आत्महत्याएँ थमें न थमें, लोगों को साफ़ हवा-पानी मिले न मिले, बस उनका टाइम पास होना चाहिए! इसीलिए राजनेता बिरादरी जनहित में बिना रुके, बिना थके तमाशे आयोजित करती रहती है! वैसे सच-सच बताऊँ! यह तो राजनेता, दरअसल, अपने ही हित में करते हैं! उन्हें मालूम है कि अगर जनता का टाइम पास होना बन्द हो जाये तो वाकई गड़बड़ हो जायेगी, उसे सच दिखने और कचोटने लगेगा! 

अब देखिए न क्या बढ़िया तमाशा है! भ्रष्ट-भ्रष्ट की तान छिड़ी है। मैं भ्रष्ट तो तू भी भ्रष्ट! हमारे मुख्य मन्त्री पर आरोप, तो तुम्हारे मुख्य मन्त्री पर भी आरोप! बात बराबर! टट्टी वाले हौदे में हम भी, तो उसी में तुम भी! बात खत्म! तमाशा चल रहा है, संसद ठप है। आरोप बेशर्मी से फुदक रहे हैं! इधर से उधर, उधर से इधर! न इनके पास जवाब है, न उनके पास! और जवाब हो भी कैसे? किसी सरासर गलत बात, गलत काम को कोई भी कैसे सही ठहरा सकता है? इसलिए जब कोई जवाब न हो तो हमला करो और सामने वाले पर वैसे ही आरोप लगा दो क्योंकि उसके पास भी जवाब नहीं होगा। अपने नेताओं को बचाने के लिए बीजेपी ने यही किया। जवाब था नहीं, क्या करती? जो आरोप काँग्रेस पर लगे, वह भी आज के नहीं, बरसों पुराने हैं। और सबको मालूम है कि जवाब काँग्रेस के पास भी नहीं हैं!

1948 का पहला जीप घोटाला!

मैं भ्रष्ट तो तू भी भ्रष्ट! न मुझे शर्म, न तुझे शर्म! और शर्म क्यों हो भला? किसने भ्रष्टाचार नहीं किया? आजादी मिलने के बाद पहली सरकार बनते ही 1948 में पहला घोटाला हुआ, जीप घोटाला। बड़ा हल्ला-गुल्ला मचा। अनन्तशयनम कमेटी ने अपनी जाँच के बाद घोटाले की न्यायिक जाँच की सिफारिश की, लेकिन नेहरू सरकार ने मामले को घसीटते-घसीटते आखिर 1955 में फाइल बन्द कर दी। घोटाले के आरोपी वी. के. कृष्णामेनन अगले साल यानी 1956 में नेहरू मन्त्रिमंडल में शामिल कर लिये गये। लेकिन नेहरू सरकार में किसी भ्रष्ट को बचाने का यह पहला मामला नहीं था। 1951 में आयी अस्ताद दिनशा गोरवाला की चर्चित रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि नेहरू सरकार के कई मन्त्रियों पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लग चुके हैं लेकिन पूरी पार्टी और सरकार ऐसे मन्त्रियों को किसी न किसी तरीके से बचाने में जुट जाती है। 

देखा आपने। तब से लेकर आज तक भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी को सलामत रखने की यह परम्परा कितनी निष्ठा से निभायी जा रही है! हमारे यहाँ राजनीतिक भ्रष्टाचार की इतनी लम्बी फेहरिस्त है कि कोई अगर लिखने बैठे तो शायद दुनिया की सबसे मोटी किताब बन जाये। कुओ तेल घोटाला, संजय गाँधी को मारुति का लायसेन्स, अन्तुले सीमेंट घोटाला, बोफोर्स, वी.पी. सिंह को फँसाने के लिए रचा गया सेंट किट्स कांड, चीनी आयात घोटाला, सुखराम का टेलीकाम घोटाला, जेएमएम घूस कांड समेत कई विधानसभाओं के दलबदल कांड, तेलगी स्टैम्प घोटाला, चारा घोटाला, अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में संघ के कार्यकर्ताओं को पेट्रोल पम्प आवंटन घोटाला, हवाला कांड, मायावती के समय का ताज कारीडोर घोटाला, कर्नाटक का बेल्लारी खनन घोटाला, उत्तर प्रदेश में अनाज खरीद, एनआरएचएम और पुलिस भर्ती घोटाला, पश्चिम बंगाल का शारदा चिटफंड घोटाला, व्यापम घोटाला, हरियाणा में टीचर भर्ती घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2 जी और कोयला खान आवंटन घोटाला—गिनते जाइए, लिस्ट खत्म ही नहीं होगी! इस लिस्ट में बड़े शेयर घोटाले तो अभी जोड़े ही नहीं मैंने।

भ्रष्टाचार उजागर करो, सजा पाओ!

और अब तो भ्रष्टाचार के मामले उठाने वालों को सजा देने की नयी परम्परा शुरू हो गयी है! उत्तर प्रदेश में एक मन्त्री का भ्रष्टाचार उजागर करनेवाले पत्रकार को जला कर मार दिये जाने के चन्द दिन बाद ही अखिलेश सरकार बेशर्मी से अपने ही एक बड़े अफसर अमिताभ ठाकुर पर पिल पड़ी, क्योंकि उनकी पत्नी ने एक और मन्त्री के भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकायुक्त के यहाँ शिकायत की थी। हरियाणा के अशोक खेमका का मामला तो आपको याद ही होगा, जिन्हें राबर्ट वाड्रा जमीन कांड में प्रताड़ित करने में हुडा सरकार ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। कुछ महीने पहले यही हाल एम्स के संजीव चतुर्वेदी का हुआ, जो एक ऐसे अफसर की जाँच कर रहे थे, जो बीजेपी के प्रभावशाली नेता जे.पी. नड्डा का करीबी था। 

लेकिन भ्रष्टाचार ख़त्म करने को लेकर आज तक देश की किसी पार्टी ने, किसी सरकार ने कुछ भी नहीं किया। कुछ और नहीं करते तो कम से कम राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए कोई आचार संहिता ही बना देते, कम से कम यही करते कि राजनीतिक दल चाहे एक रुपये का भी चन्दा लेंगे, चन्दा देनेवाले का पूरा पता रखेंगे और उनका वित्तीय लेन-देन आरटीआई के दायरे में रहेगा? और हर नेता हर साल यह बताये कि उसकी और उसके परिवार की कितनी आमदनी किस-किस स्रोत से हुई? चुनाव जीतने और सत्ता में आने के बाद नेता के परिवार के किन सदस्यों ने किसके पैसों से नये-नये धन्धे शुरू किये? अगर राजनीति से भ्रष्टाचार खत्म करना है, तो पहला कदम यही है। क्या यह कदम कभी उठेगा?

केजरीवाल और जंग की जंग!

तमाशा नम्बर दो: अरविन्द केजरीवाल, उप राज्यपाल नजीब जंग और दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बी. एस. बस्सी साहब की शर्मनाक जंग से दिल्ली के लोग तंग आ चुके हैं। देश की राजधानी में किसकी सरकार है? नजीब जंग कहते हैं कि दिल्ली में वही अकेले सरकार हैं! यह सही है कि केजरीवाल भी दूध के धुले नहीं निकले, लेकिन एक चुनी हुई सरकार को बंधुआ मजदूर की तरह नहीं रखा जा सकता। अगर केजरीवाल अपनी संवैधानिक सीमाएँ लाँघ रहे हैं, या उप राज्यपाल और मुख्य मन्त्री के बीच काम और अधिकारों को लेकर कोई अस्पष्टता है तो क्यों नहीं पारदर्शी तरीक़े से बात करके यह मामला सुलझाया जा सकता? केजरीवाल अब विज्ञापन युद्ध चला रहे हैं, तमाशा जारी है! अगर केजरीवाल ओछे हैं तो मोदी सरकार ही कुछ बड़प्पन क्यों नहींदिखाती?  लेकिन मोदी सरकार कैसे बड़प्पन दिखाये? पुणे का तमाशा देखिए। सरकार एक ऐसे सज्जन को फिल्म संस्थान का मुखिया बनाने पर बेशर्मी से अड़ी है, जिनका फिल्मों में कोई योगदान नहीं है! सरकार की मेरिट का पैमाना क्या है, यह देश ने देख लिया और गुजरात पुलिस की मेरिट देखिए, जो बड़ी लम्बी-चौड़ी जाँच के बाद तीस्ता सीतलवाड के खिलाफ यह ‘गम्भीर’ आरोप निकाल कर लायी कि गुजरात के दंगा पीड़ितों के लिए मिले चन्दे से तीस्ता ने रोम और पाकिस्तान के सैलूनों में बाल कटवाये! सीबीआई उससे भी दो कदम आगे निकली कि तीस्ता से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है! इसे कहते हैं गुड गवर्नेन्स! फिलहाल टाइम पास करने के लिए तमाशों के बताशे खाइए और मुँह ढँक कर सोइए!

(देश मंथन, 25 जुलाई 2015)

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