सोच में बदलाव

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

कल मैंने लिखा था कि मुझसे मेरे एक परिचित ने पूछा था कि फेसबुक पर रोज लिख कर मैं अपना समय क्यों जाया करता हूँ, तो मैंने बता दिया था कि यही वो मेला है, जहाँ मुझे अपने सारे खोया हुए रिश्ते मिले हैं। 

पहले मुझे लगता था कि मैं अकेला हूँ, जिससे लोग इस तरह के सवाल पूछते हैं। लेकिन मुझे तब बहुत हैरानी हुई जब कई लोगों ने मुझे बताया कि उनसे भी कुछ लोग इस तरह के सवाल पूछते हैं। 

मुझसे मेरे परिचित ने रविवार को यह पूछा था कि इस फेसबुक से मुझे क्या मिलता है। उसी शाम बनारस से अपने डॉक्टर साहब यानी Shailendra Singh का फोन आया और वो खूब बात करने के मूड में लगे। बात-बात में उन्होंने बताया कि उनसे उनके किसी जानने वाले ने पूछा है कि डॉक्टर साहब आप इतना व्यस्त रहते हैं, फिर आप फेसबुक पर अपना समय क्यों खर्च करते हैं। क्या मिलता है आपको अनजान लोगों से बातें करके?

डॉक्टर साहब ने उनसे बहुत सादगी से कहा कि आपको तीन कहानियाँ सुनाता हूँ, फिर मुझसे कहिएगा कि मैं ठीक कर रहा हूँ या गलत?

उन्होंने पहली कहानी सुनाई, जिसमें उनके अस्पताल में कैसे किसी हादसे के बाद एक अनाथ बच्चा उनके अस्पताल में इलाज के लिए आया और उन्होंने इलाज के बाद उसकी कहानी फेसबुक पर लिखी। उनकी कहानी फेसबुक पर पढ़ कर एक परिवार आगे आया और उसने उस बच्चे को गोद ले लिया। आज वो बच्चा डॉक्टर साहब की पोस्ट की बदौलत एक अच्छी जिन्दगी जी रहा है। दूसरी कहानी भी उन्होंने ऐसी ही सुनाई, जिसमें एक लड़की को नया जीवन मिला और तीसरी कहानी उन्होंने कुछ ही दिन पहले अपनी वाल पर लिखी थी कि कैसे वहाँ पास के एक स्कूल में बिजली की हाई वोल्टेज तार गिर गयी और उसकी चपेट में एक बच्चा आ गया। 

बच्चे को बिजली का झटका इतनी जोर से लगा कि उसका एक पाँव और एक हाथ काटना पड़ गया। 

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मैं मीडिया में काम करता हूँ। मेरे पास यह रिपोर्ट नहीं आई। मैंने पूरा इंटरनेट खंगाल लिया मुझे इसके बारे में बनारस के छोटे से अखबार में भी खबर नहीं मिली। मतलब यह कि स्कूल में 1100 वोल्ट का तार खंबे से टूट कर गिरा रहा और स्कूल प्रशासन ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। ऐसा नहीं कि वह सरकारी स्कूल था, जिसका कोई माई बाप नहीं होता। वह एक प्राइवेट स्कूल था। उस छोटी सी जगह पर ‘ट्विंकल-ट्विंकल लिटल स्टार’ पढ़ाने के लिए अंग्रेजी स्कूल खोला गया है, जिसमें माँ-बाप अपना पेट काट कर बच्चों को पढ़ने भेजते हैं, ताकि बच्चा आगे चल ‘गिटपिट-गिटपिट’ बोल सके। पर उस स्कूल का प्रशासन इतना लापरवाह था कि स्कूल के सामने से जा रहे हाई वोल्टेज के खंबे से टूट कर गिरे तार की उसने परवाह नहीं की और एक बच्चा उसकी चपेट में आ गया। 

कायदे से उस दिन उस शहर की यह सबसे बड़ी खबर थी, लेकिन मैं जैसे ही यह सब लिखूँगा, कुछ लोग मेरे ही पीछे पड़ जाएँगे कि मीडिया कुछ नहीं करता, मीडिया मूर्ख बना रहा है, मीडिया में अब खबरें होती ही कहाँ हैं। 

मैं चुप रह जाऊँगा। जाहिर है हर बात पर प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती। पर सच यही है कि मेरी निगाह में यह बड़ी खबर थी। 

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मामला अपने डॉक्टर साहब के अस्पताल तक पहुँचा। डॉक्टर साहब ठहरे संवेदनशील आदमी। उन्होंने उस बच्चे का इलाज किया और कलम में स्याही की जगह आँसू भर कर उन्होंने फेसबुक पर उसकी पूरी कहानी लिख डाली। उन्होंने बच्चे की ओर से सवाल उठाया कि वो तो अंग्रेजी पढ़ने घर से निकला था, उसका क्या कसूर था जो उस स्कूल में पढ़ने के बदले उसे अपना एक हाथ और एक पाँव पूरी तरह गँवाना पड़ा। 

मुझे यकीन है कि पिछले ही हफ्ते लिखी यह पोस्ट आपने भी पढ़ी होगी। मैंने भी पढ़ी थी। पढ़ कर खूब रोया था। पर मैंने उस पर चर्चा नहीं की कि सुबह-सुबह क्या करुण क्रंदन लेकर बैठ जाऊँ! 

रविवार की शाम छत पर टहलते हुए डॉक्टर साहब ने बनारस से फोन किया। कहने लगे मन नहीं लग रहा था, सोचा अपने छोटे भाई को फोन करूँ। उस दिन मैं भी घर पर ही था। हमने खूब बातें कीं। डॉक्टर साहब ने कहा कि उनके एक परिचित ने उनसे पूछा कि फेसबुक पर रोज-रोज अपना समय क्यों बर्बाद करते हो। 

मैंने कहा, “अरे कमाल हो गया। मुझसे भी लोग यही पूछते हैं।”

डॉक्टर साहब ने अपने परिचित से जो कहा, उसे मैं आपके सामने रख रहा हूँ। 

उन्होंने कहा कि किसी को यहाँ क्या मिलता है, मुझे नहीं पता, लेकिन मैं आपको अपने जीवन की तीन कहानियाँ सुनाता हूँ, इतना ही काफी होगा आपकी सोच बदलने के लिए और उन्होंने अपने परिचित को तीनों कहानियाँ सुनाईं। 

उन्होंने कहा कि उनकी पोस्ट को पढ़ने की वजह से उस अनाथ बालक की जिन्दगी बदल गयी, जिसका सबकुछ एक रोज एक्सिडेंट में खत्म हो गया था। दूसरी में भी यही हुआ। और रही करंट वाली कहानी की बात, तो उस हादसे के बाद स्कूल प्रशासन की पूरी कोशिश यही रही कि किसी तरह मामला दब जाये। लेकिन इलाज के लिए बच्चा अपने डॉक्टर साहब के अस्पताल पहुँच चुका था, तो मामला दबता कैसे। उन्होंने उसे फेसबुक पर लिख दिया। 

उनके लिखे को कई लोगों ने पढ़ा। किसी ने पूरी कहानी बात-बात में गाजीपुर के कलेक्टर तक पहुँचा दी और फिर उसी पोस्ट के आधार पर पूरे मामले की जाँच हो गयी। स्कूल प्रशासन को उस गरीब बच्चे के परिवार को मुवावजा देना पड़ गया। उसकी पढ़ाई-लिखाई का खर्चा उठाने को कहा गया। 

जाहिर है बच्चा अभी छोटा है, तो अगले कई वर्षों तक उसे एक हाथ-पाँव से ही जीवन की जंग लड़नी होगी। पर जब वो बड़ा हो जाएगा, तो कृत्रिम अंग से उसका यह दोष भी दूर हो जाएगा।

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डॉक्टर साहब ने यह कहानी अपने परिचित को सुनाई। परिचित ने पूरी कहानी सुनने के बाद चलते हुए डॉक्टर साहब से कहा कि कल आप मेरा भी अकाउंट फेसबुक पर खोल दीजिएगा। 

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माँ कहती थी कि पाँव की मोच और छोटी सोच आदमी को आगे बढ़ने से रोक देती है। 

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डॉक्टर साहब के परिचित ने तो तुरन्त अपनी सोच बदल ली और आगे बढ़ चले।  

(देश मंथन, 04 अगस्त 2015)

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