वो बात ना रही

0
263

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

अगर आपके मुँह से यह बात लगातार निकल रही हो तमाम चीजों को देखकर कि वो बात ना रही, तो समझिये कि आप बुजुर्ग हो रहे हैं या फिर आपके इर्द गिर्द लोगों के मुँह से यही निकल रहा हो कि वो बात नहीं रही, तो समझिये कि आपकी उठक बैठक बुजुर्गों में हो रही है।

बुजुर्गों में बैठने उठने में कोई बुराई नहीं है, सिवाय इस बुराई के कि उनके साथ उठने बैठने वालों को उन कामों के लिए अक्षम मान लिया जाता है, जिन्हे करने की उनकी हसरतें वक्त बीतने के साथ बहुत ही बलवती हो जाती हैं। अब के बुजुर्गों में वो बात ना रही, जो पहले के बुजुर्गों में थी, कि नौजवानों को तमाम किये- अनिकये गुनाहों के लिए डाँटे, अब के बुजुर्ग खुद उन गुनाहों के ना सिर्फ इच्छुक रहते हैं, बल्कि प्रयासरत तक रहते हैं।

खैर बात तो बात की हो रही थी।

इब्राहीम लोदी को जब जंग में बाबर ने हराया होगा, तब ये बात उस दौर के बुजुर्गों ने कही होगी कि अब हुकूमत में वो बात ना रही। यही बात अकबर कालीन बुजुर्गों ने उसके बेटे जहाँगीर की हुकूमत में कही होगी। अंगरेजों के जाने के बाद कई दुखियों ने भी यही बात कही-वो बात ना रही देशी हुकूमत में।

अभी ये खाकसार एक बुजुर्ग से बात कर रहा था तो उसने बताया कि अब वो बात ना रही ट्रेन यात्रा में। मैंने निवेदन किया-जी सब कुछ तो वैसा ही है, या पुराने से कुछ ज्यादा ही-टीटीई अब भी दबादब रिश्वत लेता है। गंदगी अब भी मिलती है। पहले सांभर में छिपकली मिलती थी, अब समूचा छिपकली परिवार मिल जाता है।

इस पर बुजुर्गवार ने कहा-तुम नयी पीढ़ी वालों के पास कायदे का आबजर्वेशन नहीं है। देखो पहले मिलते थे कड़क पठ्ठे के टिकट, छोटे पर मजबूत, लाल बहादुर शास्त्रीजी की शख्सियत के। अब आनलाइन रिजर्वेशन कराओ, पूरा पेज का भरा पूरा प्रिंट आऊट मिलता है, जब टीटीई को दिखाओ, तो मुड़ा-तुड़ा, कड़क एकदम गायब सी, जैसे घोटाले के भरे पूरे आरोपी सुरेश कलमाड़ीजी, भरे पूरे पर कड़क गायब। और अब तो ये नया नियम आ गया रेलवे में कि कैसे भी टिकट की जरूरत ही नहीं है। मोबाइल में जो मैसेज रिजर्वेशन का रेलवे की तरफ से आया हो, उसे भर दिखा दो। मैंने देखा कि टीटीई को रिश्वत में नौजवान अपने मोबाइल में दर्ज जाने कैसी-कैसी क्लिपिंग्स, फोटो, वीडियो रिश्वत में दिखा रहे हैं। मोबाइल में टिकट दिखाओ और बतौर रिश्वत तरह-तरह के वीडियो दिखाओ। साहब रिश्वत में भी वो बात ना रही। पहले नोटों की रिश्वत होती थी, अब बताओ पोर्न स्टार सन्नी लियोन की फिल्में बतौर रिश्वत दिखायी जा रही हैं।

बात सही है साहब, वो बात नहीं रही।

अभी पुराने स्कूल में निकला घूमते टहलते तो स्कूल का घंटा बजाने वाले तिवारीजी रिटायर्ड होकर दुख प्रकट कर रहे थे कि अब घंटे में भी वह बात नहीं रही। 

मैंने निवेदन किया अब इतना भी ना खींचे घंटे को, जैसे पहले बजता था, वैसे ही अब बजता है। अब घंटे में कौन से चेंज हो गये।

तिवारीजी ने भी डाँटा- तुम नयी पीढ़ी वालों के पास कायदे का आबजर्वेशन नहीं है। अब कायदे के स्कूलों में घंटे बजते ही नहीं हैं, पहले से प्रोग्राम्ड घंटियाँ हैं। कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिये फीड किया हुआ है सब, हर पचास मिनट पर घंटी बज जाती है। संडे को भी बजती है और छब्बीस जनवरी को बजती है। खाली स्कूल में घंटी बजे, तो लगता है, जैसे भूतों की हवेली है। हमारे जमाने में हम घंटा बजाते थे, बच्चों की डिमांड पर आगे पीछे कर देते थे। कोरिया से जिमनास्ट सिखाने वाली मैडमों का डेलीगेशन आया था, उनका पीरियड सबसे लास्ट में होता था। कक्षा बारह के बालक रिक्वेस्ट करते थे -चाचा घंटा दो घंटे के बाद बजाना। हमने बालकों की रिक्वेस्ट मानी। धर्म और नैतिक शिक्षा के पीरियड का घंटा कई बार मैंने आधे घंटे में ही बजा दिया। बालक खुश रहते थे। अब तो जी बालकों की खुशी का कोई मतलब नहीं। सब काम कंप्यूटर ही कर लेता है। वो बात ना रही घंटे बजाने में और साहब, पहले जैसे ही किसी बड़े आदमी के मरने की सूचना आती थी, मैं घंटा बजाने निकलता था, मुझे देखते ही स्कूल के बालक खुश हो जाते थे कि कोई बड़ा मरा और छुट्टी होगी। अब कहाँ निकलता कोई घंटा बजाने, यूँ किसी के मरने की छुट्टी पर घंटी अब भी बज जाती है, हर क्लास में सुन ली जाती है। पर साहब वो आनंद कहां, जो बच्चों के मुँह पे घंटा बजाने वालो को देखते ही आ जाता था कि मौत का घंटा बजने वाला है। वो बात ना रही घंटों में।

तिवारीजी से सहमत होना पड़ा- वो बात नहीं रही अब साहब।

(देश मंथन, 11 अगस्त 2015) 

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें