विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
लाल किला यानी सदियों से इतिहास के पन्नों में कई तरह के उतार-चढ़ाव का साक्षी। यमुना नदी के किनारे बना ये किला तभी दिखायी देता है जब आपकी ट्रेन पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन में प्रवेश करने वाली होती है। अगर कोई दिल्ली घूमने आता है तो वह लाल किला जरूर जाता है।
दिल्ली का मतलब ही लाल किला है। हमारी आजादी का प्रतीक। तभी तो देश आजाद होने पर लाल किले पर तिरंगा फहराया गया था। आज भी हर 15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से प्रधान मन्त्री तिरंगा फहराते हैं। साल 2003 तक लाल किला भारतीय थल सेना के अधीन था पर अब यह संस्कृति मंत्रालय के अधीन है। लाल किला अब यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर दर्जा प्राप्त साइट है।
शाहजहाँ की अनुपम कृति
1638 में शाहजहाँ ने आगरा से दिल्ली राजधानी स्थानांतरित की थी, उससे पहले लाल किला का निर्माण कराया गया था। 1639 में लाल किला का निर्माण शुरू हुआ और अगले नौ साल में बनकर तैयार हुआ। निर्माण में धौलपुर के पास बारी से लाए लाल पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। महलों के अंदर संगमरमर का बहुत प्रयोग किया गया है। लाल किला 2.4 किलोमीटर की चारदीवारी में बना हुआ है। किले का निर्माण 254.67 एकड़ क्षेत्रफल में हुआ है।
लाल किला के दो प्रवेश द्वार हैं एक दिल्ली गेट और दूसरा लाहौर गेट पर आप प्रवेश लाहौर गेट से करते हैं। अंदर जाने पर आपको मुगल बादशाहों की शाही जीवन शैली के बारे में पता चलता है। लाल किला घूमने के लिए आपको किसी गाइड की जरूरत नहीं है। यहाँ पर आडियो में नैरोकास्टिंग गाइड किराये पर मिलती है। यह हिन्दी, अंग्रेजी और कोरियन भाषा में उपलब्ध है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ कोरियाई सैलानी बड़ी संख्या में आते हैं।
लाल किले के अन्दर प्रवेश करने पर मेहराबदार तोरणपथ, जिसे छाता चौक कहते हैं, से होकर गुजरने के बाद पश्चिपमी द्वार से नौबत-या नक्कार खाना पहुँच जाते है। यहाँ दिन में पाँच बार संगीत बजता था और जो दीवाने-ए-आम में प्रवेश के लिए प्रवेश द्वार था। इसकी ऊपरी मंजिल में आजकल इंडियन वार मेमोरियल म्यूजियम है। सामने विशाल दीवने-ए-आम (आम जनता के लिए हाल) एक आयताकार हॉल है, जिसके तीन लंबे गलियारे हैं।
लाल किला के अंदर आप दीवाने-ए-खास (खास लोगों के लिए), तस्बींह खाना, (व्यक्तिगत प्रार्थनाओं के लिए कक्ष), हमाम (स्नानघर) देख सकते हैं। हमाम के पश्चिम में मोती मस्जिद है, जिसे बाद में औरंगजेब (1658-1707) द्वारा बनवाया गया था। मस्जिद के उत्तर में स्थित है हयात बख्श बाग (जीवन देने वाला बाग) हयात-बख्श-बाग के मध्य में स्थित तालाब के मध्य भाग में लाल पत्थर का मंडप है, जिसे जफर महल कहते हैं और इसे 1842 में बहादुरशाह -2 ने बनवाया गया था।
मीना बाजार
आप पूरा देश घूम कर लौटे हैं तो भी लाल किले को देखना पूरे देश को देखने जैसा है। लाल किला के अंदर एक छोटा सा मीनाबाजार है। यहाँ देश के कोने-कोने की बनी चीजें मिलती हैं। कीमतें वाजिब हैं, यहाँ से आप यादगारी के तौर पर खरीदारी कर सकते हैं।
लाल किले के बगल में सलीमगढ़ का किला भी है जिसे शेरशाह के बेटे शहजादा सलीम ने बनवाया था। लाल किला और किला सलीमगढ़ कभी आजादी के दीवानों के लिए जेल खाना भी बने थे। पर अब ये हमारी आजादी के प्रतीक चिन्ह हैं।
लाल किला में टी हाउस
पूरा लाल किला घूमते हुए जब आप मोती मसजिद हयातबख्श बाग को पार करके अंत में पहुँचते हैं तो आता है टी हाउस। इसका निर्माण लाल किला के बहुत बाद में हुआ है। वास्तव में ये टी हाउस ब्रिटिश कालीन है। ब्रिटिश सरकार के उच्चाधिकारी यहाँ बैठकर चाय की चुस्की लिया करते थे।
मौलवी जफर हुसैन अपनी पुस्तक मोनुमेंट्स ऑफ दिल्ली में इस टी हाउस की चर्चा करते हैं। टी हाउस से पहले यहाँ राजपरिवार के खास लोगों का निवास हुआ करता था। हालाँकि आज कल यहाँ आपको चाय नहीं मिलेगी। पर यहाँ पहुँच कर आप लाल किले के हयातबक्श बाग की हरियाली का नजारा कर सकते हैं।
लाइट एंड साउंड शो
हर शाम को सात बजे के बाद से लाल किला में लाइट एंड साउंड शो होता है, जिसमें इतिहास को ध्वनि एवं प्रकाश के माध्यम से सुनाया जाता है। इसमें शामिल होना एक अलग किस्म की अनुभूति है। यह शो हिन्दी और अंगरेजी में होता है। यहाँ अंगरेजी और हिन्दी में अलग-अलग शो होते हैं, जिनका समय अलग-अलग है। अंगरेजी शो का समय रात 9 से 10 बजे का है, जबकि हिन्दी शो शाम को 7.30 बजे आरंभ होता है। ये शो भारत सरकार के पर्यटन विकास निगम की ओर से संचालित किया जाता है। शो का टिकट 80 रुपये का है।
प्रवेश टिकट
सालों भर हर रोज लाल किले में सैलानियों की भीड़ देखने को मिलती है। लाल किले में प्रवेश के लिए आजकल 15 रुपये का टिकट है। प्रवेश टिकट के पास लगेज जमा करने के लिए क्लाक रूम की सुविधा भी है, जिसके लिए 2 रुपये का टिकट है। प्रवेश टिकट में किले के अंदर स्थित दो संग्रहालयों का भी टिकट शामिल है।
कैसे पहुँचे
लाल किले के ठीक सामने चाँदनी चौक के एक कोने पर है अति प्राचीन गौरी शंकर मन्दिर। तो लाल किले के बाहर से आपके दिल्ली से दूर कहीं भी जाने के लिए टूरिस्ट बसें मिल जाएँगी। निकटतम मेट्रो स्टेशन चाँदनी चौक है। पूरी दिल्ली भले ही बदल रही हो लेकिन लाल किले के आसपास अभी पुरानी दिल्ली खूशबु आती है।
(देश मंथन 04 सितंबर 2015)