औरंगजेब में काहे रब दिखता है?

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रत्नाकर त्रिपाठी : 

अमें, कान पक गया विलाप सुनते-सुनते; ऐसे बुक्का फाड़-फाड़ कर रो रहे हो, जैसे तुम्हरे अब्बा का इंतकाल हो गया; सड़क का नाम ही न बदला है, कोई औरंगजेब का धर्मांतरण थोड़े ही हो गया जो छाती पीटे जा रहे हो। ओवैसी मुँह पिटाय पड़े हैं, एक्को मुसलमान टस से मस नहीं हुआ; लेकिन तुम्हरी स्थिति तो ऐसी है, जैसे सारा पहाड़ तुम्हरे ऊपर टूट पड़ा है।

देखो, हम इतिहास ज्यादा तो नहीं जानते, लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि औरंगजेबवा आतताई था और उसने ह्त्या और बलात्कार के हथियार से धर्म-परिवर्तन करवाया था। अब बीएचयू के मंगल पांडे ब्रांड इतिहासवेत्ता और इरफान हबीब को औरंगजेब में काहे रब दिखता है, ये तो उन्हें पता; हमारे लिए तो वो पक्का शैतान है।

कोई अपनी दुकान चलाने के लिए बलात्कारी को भी बाप मान ले, तो वो उसकी फितरत; हम तो इतना जानते है कि चाहे डच हो या पुर्तगाली, मुगल हों या अंग्रेज, सब आक्रमणकारी थे, आतताई थे, बलात्कारी थे, लुटेरे थे और भारतीय मुसलमानों के पूर्वज भी औरंगजेब और चंगेज खान से उतने ही सताए गये थे, जितने किसी और के पूर्वज, नाहक कोई पाला नहीं बदलता है।

वाह रे दलील, वो वीणा बजाता था, गंगाजल पीता था, हिन्दू मन्दिरों को जमीन दान दी थी, इसलिए महान था। अबे, कल को नवाज शरीफ बाँसुरी बजाने लगे, तो का उसे कृष्ण-कन्हैया मान कर भारत का प्रधानमन्त्री बना दें? गंगाजल कीटाणु नाशक होता है, इसलिए पीता था; ऐसे तो पेट खराब होने के डर से करोड़ों लोग मिनरल वाटर पीते हैं, तो का उन्हें ब्रिटिश नागरिकता दे दी जाए? अउर पक्के तियाँचु हो का; हमरी जमीन छीन कर, उसका एक टुकड़ा हमें ही दे दिया और एहसान ऐसा बता रहे हो जैसे जमीनवा वो उज्बेकिस्तान से लाया था।

एक राय दें; अगर तुम्हारी चिलम बहुत सुलग रही है कि उसका नाम मिट गया और उसके नाम पर एक स्मारक होना ही चाहिए, तो काहे नहीं तुम्ही अपने मकान का नाम “दयार-ए-औरंगजेब” रख देते।

(देश मंथन, 08 सितंबर 2015)

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