विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
और सतपुड़ा एक्सप्रेस का रोमांचक सफर हमेशा के लिए थम गया। एक अक्टूबर 2015 से जबलपुर-नैनपुर खंड छोटी लाइन को बंद कर दिया गया है। ऐसे में इस पटरी पर रोजाना दौड़ने वाली 24 ट्रेनों का सफर हमेशा के लिए खत्म हो गया है। इसके साथ ही 111 साल का शानदार सफर इतिहास बन गया। न सिर्फ सतपुड़ा एक्सप्रेस बल्कि तमाम ट्रेनें अब इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन चुकी हैं।
एशिया का सबसे बड़ा नैरोगेज का जंक्शन नैनपुर भी अब इतिहास बन चुका है। इसी साल जनवरी में मुझे सतपुड़ा एक्सप्रेस से सफर करने का सौभाग्य मिला था। तब रास्ते में जगह-जगह आमान परिवर्तन का काम दिखायी दे रहा था। तब यह उम्मीद नहीं थी इतनी जल्दी एक सतपुड़ा के जंगलों के बीच से सबसे छोटी लाइन की छुक-छुक बंद हो जाएगी।
सतपुड़ा एक्सप्रेस लोगों के बीच इतनी लोकप्रिय थी कि इलाके के लोग हम बड़ी लाइन में भी सतपुड़ा एक्सप्रेस देखना चाहते हैं इस तरह की माँग के समर्थन में अभियान चला रहे हैं। लोग चाहते हैं कि भविष्य में जब बड़ी लाइन चालू हो तो ट्रेन का नंबर भी वही रहे।
5 जुलाई 1904 को इस ट्रेन ने जबलपुर से अपने सफर की शुरुआत की थी। आखिरी दिनों में लोग बंद हो रही छोटी लाइन के सफर को अनुभव के रूप में लिए यात्रा की होड़ में लगे दिखायी दिये। लोग इस यादगार लम्हों को अपनी यादों में सहेज लेना चाहते थे। रेलवे इस मार्ग के किसी एक स्टेशन पर नैरोगेज का म्युजिम बनाने पर विचार कर रहा है। यह नैनपुर में बनाया जा सकता है।
वहीं एक नवंबर से नैनपुर और बालाघाट के बीच भी छोटी लाइन बंद हो जायेगी। इस लाइन पर आमान परिवर्तन करके बड़ी लाइन दौड़ने में दो साल लग सकते हैं। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में अब सिर्फ नागपुर नागभीर लाइन ही एक मात्र नैरोगेज लाइन के रूप में बची है।
नैनपुर जबलपुर के बीच चलने वाले लोगों के लिए 30 सितंबर 2015 का दिन भावनों से भरा हुआ था। लोग अपनी महबूब ट्रेन का आखिरी सफर देख रहे थे। कोई सेल्फी ले रहा था तो कोई ड्राइवर से गले मिल कर रो रहा था। मुश्किलें भी तो होंगी अगले कुछ साल इस मार्ग पर बिना रेल के सफर करना पड़ेगा।
(देश मंथन, 20 अक्तूबर 2015)