आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
एक अखबार में छपी रिपोर्ट ने बताया कि दिल्ली में 64.36% मकान मालिक हैं। 31% किरायेदार हैं। दिल्ली में ये कुछ कुछ गोत्र टाइप मामला है, मकान मालिक ऊंचे गोत्र का, किरायेदार उससे नीचे गोत्र का।
मकान मालिक आसानी से ना मानते। मेरे जितने भी सख्त इंटरव्यू दिल्ली में हुए हैं, वो सारे के सारे मकान मालिकों ने लिये है, वो नौकरी या शादी के लिए ना हुए।
एक अरोड़ा साहब थे मकान मालिक, बोले तुम बंदे ठीक लग रहे हो, पर तुम पंजाबी नहीं हो। तुम्हे मकान कैसे किराये पे दे दूँ। मैंने उन्हें समझाया जी मेरे पुरखे पंजाबी थे, वो तो शिवाजी के साथ महाराष्ट्र चले गये, तो हम महाष्ट्रीयन पंजाबी टाइप्स हो गये।
अरोड़ा जी बोले, तू झूठ बहुत सफाई से बोलता है। ले इस बात पे मकान तेरा। ऐसे खुले दिल वाले मकान मालिक सिर्फ दिल्ली में ही मिलते हैं।
एक और मकान मालिक मिले, जी पंजाबी खुले दिल वाले। दस बीस मिनट बात करने के बाद बोले-यार तू कंवारा होके भी कैरेक्टर वाला लग रया सी।
मुझे झटका लगा, ये कंवारों की खिंचाई है, या मेरी तारीफ। पर मकान किराये पे लेने जाओ, तो सुनना ज्यादा चाहिए। नियति की इच्छा स्पीकर बनाने की होती, तो मकान मालिक बनाता ना।
मसले सेंसिटिव है, एक मकान मालिक की लंबी कार की तारीफ नहीं की, तो गुस्सा हो गया। बोला तमीज ना है, जरा भी। लंबी कार सामने है, तारीफ के दो शब्द भी नहीं।
मैंने निवेदन किया जी इससे पहले एक मकान मालिक इस बात पे गुस्सा हो गया था कि उसकी लंबी कार की तारीफ कर दी थी, डाँटा था कि अबे किरायेदार हो, औकात में रहो। खुद को इनकम टैक्स अफसर समझ रहे हो।
वैसे लाल किले के सामने से होता हुआ मैं जब जब निगम बोध घाट श्मशान घाट की तरफ जाता हूं, तो सोचता हूं कि 64.36% नहीं, दिल्ली में 100% लोग किरायेदार हैं। दिल्ली ही क्या, सब जगह। शाहजहाँ लाल किले का मकान मालिक था, पर कई सालों बाद कुछेक रुपये खर्च करके पब्लिक शाहजहाँ के बेडरुम तक घूम लेती हैं। मकान-मालिकी की इससे ज्यादा फजीहत क्या होगी।
ओहो, मामला कुछ इमोशनल हो गया। सौरी, सारे मकान मालिकों को शुभकामनाएँ।
(देश मंथन, 26 अक्तूबर 2015)