जम्हाई लेते जंगलों के बीच ओरछा

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

बलखाती बेतवा, जम्हाई लेते जंगलों के बीच छिपा है ओरछा। वैसे ओरछा का मतलब ही होता है छिपा हुआ। तो छिपा हुआ सौंदर्य ही है ओरछा, जिसकी तलाश में दुनिया भर से सैलानी यहाँ पहुँचते हैं। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले का शहर। पर टीकमगढ़ यहाँ से 90 किलोमीटर है। यूपी का झांसी शहर 16 किलोमीटर है। इसलिए ओरछा पहुँचे का सुगम रास्ता उत्तर प्रदेश के झांसी शहर से है।

ओरछा निवाड़ी तहसील में आता है। यहाँ के लोग अपने जिला मुख्यालय टीकमगढ़ के बजाए झांसी से ज्यादा जुड़े हुए हैं। झांसी रेलवे स्टेशन से ओरछा जाने के लिए पहले झांसी के बस स्टैंड आटो द्वारा पहुँचे। बस स्टैंड से ओरछा के लिए हमेशा ऑटो रिक्शा चलते रहते हैं। इनका किराया 20 रुपये है। आठ किलोमीटर तक खजुराहो हाइवे पर जाने के बाद ओरछा के लिए रास्ता बदल जाता है। यहाँ पर ओरछा का रेलवे स्टेशन दिखायी देता है, जहाँ पर पैसेंजर ट्रेनें रूकती हैं। पर इस रेलवे स्टेशन से भी ओरछा शहर सात किलोमीटर दूर है। यहाँ से ओरछा तक का रास्ता अत्यंत मनोरम है। दोनों तरफ हर भरे जंगल और बीच में सीना चीर कर चलती हुई सड़क। मानसून के दिनों में तो ओरछा का सौंदर्य और भी बढ़ जाता होगा। बस गर्मियों में यहाँ थोड़ी मुश्किल होती है। पर उस समय भी लोग यहाँ पहुँचते हैं।

शहर में पहले आता है प्रथम प्राचीन द्वार। फिर द्वितीय प्राचीन द्वार। ओरछा शहर की आबादी आजकल 20 हजार के आसपास है। पर मुख्य शहर में सैलानियों के रहने के लिए कई होटल बने हुए हैं। ये होटल ज्यादा महँगे नहीं हैं। ओरछा के जहाँगीर महल में मध्य प्रदेश पर्यटन शीशमहल नाम का होटल भी चलाता है।

किले और मंदिरों का शहर ओरछा बुंदेल राजाओं की वीरता, धार्मिक रूचि और कला प्रेम की कहानी सुनाता है। चाहे आपकी रूचि जैसी भी हो यहाँ पहुँचकर आप निराश नहीं होंगे। यही कारण है कि ओरछा न सिर्फ देशी बल्कि विदेशी सैलानियों को भी हमेशा अपनी ओर आमंत्रित करता है। बल्कि यहाँ बड़ी संख्या में फिल्मों और टीवी धारावाहिकों की शूटिंग होती रहती है। ओरछा पहुँचने पर हमारा ठिकाना बना द्वितीय द्वार से आगे बायीं तरफ का होटल फोर्ट व्यू। 

फोर्ट व्यू से वाकई किला और बेतवा नदी का नजारा दिखायी देता है। कमरे की दरें भी किफायती हैं। डबल बेड आकार का कमरा अटैच कमरा, कूलर के साथ 400 रुपये में। ओरछा के ज्यादातर होटलों में फ्री वाईफाई के बोर्ड लगे हैं। हालाँकि हमारे होटल वाले ने बताया कि उनका वाईफाई काम नहीं कर रहा है। 

शाम हो गयी थी लिहाजा पता चला राजाराम मंदिर आठ बजे रात को खुलेगा। हमने अपने एक परिचित रामदास कुशवाहा (अवकाश प्राप्त पटवारी) से मिलने का तय किया। वे मंदिर के पीछे कल्याण कॉलोनी में रहते हैं। चाय पर लंबी चर्चा के बाद अचानक घड़ी देखी तो मंदिर खुलने का समय हो गया था। लिहाजा हम राजा राम की संध्या आरती में शामिल होने के लिए आगे बढ़ चले। 

(देश मंथन, 27 अक्तूबर 2015)

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