पौधे को भी जीने के लिए रिश्ते चाहिए

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

अब से कुछ देर बाद मैं जबलपुर में पहुँच जाऊँगा। 

उसी जबलपुर शहर में, जहाँ Amit Chaturvedi रहते हैं। Rajeev Chaturvedi रहते हैं। Kamal Grover रहते हैं। 

बहुत साल पहले मध्य प्रदेश आर्थिक अपराध ब्यूरो में आईजी रहे मेरे मामा का ट्रांसफर देर रात भोपाल से जबलपुर कर दिया गया था। अर्जुन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे और आर्थिक अपराध ब्यूरो ने मुख्यमंत्री के किसी परिचित के घर छापा डाल दिया था। 

बहुत मेहनत से पढ़ाई करके मेरे मामा आईपीएस बने थे। वो बेहद ईमानदार अधिकारी थे। उनका सपना था देश के लिए कुछ करने का और अपने स्तर पर वो जो कर सकते थे, बिना डरे या सहमे हुए करते थे। मुझे नहीं याद कि उन्होंने अपने ट्रांसफर पर या अपनी पोस्टिंग पर कभी कोई आपत्ति जताई हो। 

जिस दिन मुख्यमंत्री के परिचित के घर छापा डला, उसी दिन मामा का ट्रांसफर हो गया। 

मामा जबलपुर में बिजली बोर्ड के विजिलेंस विभाग के आईजी बन गये। हम भोपाल से जबलपुर पहुँच गये। 

***

वो पहला मौका था, जब मैं जबलपुर पहुँचा था। 

एक पुलिस अफसर के घर पलते हुए तमाम मुश्किलों के बीच भी हम इस बात पर खुश हो लेते थे कि चलो एक नया शहर घूमने का मौका मिला। और सच यही है कि मामा के साथ रहते हुए ही मेरे भीतर घूमने का शौक पैदा हुआ। मामा के साथ रह कर ही मैंने सीखा कि आदमी कैसे हर परिस्थिति को अपने पक्ष में मोड़ सकता है। 

तो कई साल पहले मुझे जबलपुर को देखने का मौका मिला था।

फिर करीब बीस साल बाद दुबारा अपने एक भांजे की शादी में मुझे जबलपुर आने का मौका मिला। तब यहाँ मेरी मुलाकात अमित चतुर्वेदी से हुई थी। पहली ही मुलाकात में यह लग गया था कि इस लड़के की वजह से अब मेरा रिश्ता जबलपुर से जुड़ने जा रहा है। 

और आज मैं फिर जबलपुर में हूँ। आज मैं उस जबलपुर में हूँ, जहाँ राजीव चतुर्वेदी, कमल ग्रोवर जैसे अग्रज मुझ पर अपना प्यार लुटाने को बेकरार हैं। आज मैं उनके प्यार में बंध कर ही मध्य प्रदेश की सांस्कृतिकधानी में पहुँचने वाला हूँ। 

***

बहुत साल पहले एक साधु किसी राजा के महल में पहुँचा और उसने राजा से पूछा कि क्या तुम मुझे अपने सराय में एक रात रुकने दोगे? 

राजा चौंका। उसने साधु की ओर नाराजगी भरे लहजे में पूछा कि क्या आपको ये सराय नजर आ रहा है? 

साधु ने संयत होकर पूछा, “ये सराय नहीं है तो और क्या है?”

राजा ने कहा कि ये मेरा महल है। ध्यान से देखिए महाराज, ये मेरा महल है, महल। 

साधु ने फिर पूछा, “इस महल में तुमसे पहले कौन रहता था?”

“इस महल में पहले मेरे पिता रहा करते थे।”

“उनसे पहले?”

“उनके पिता।”

“अब वो कहाँ हैं?”

“वो सभी इस संसार में नहीं। वो चले गये।”

“जब वो यहाँ आए, यहाँ ठहरे और चले गए तो ये सराय ही तो हुआ न!”

राजा समझ गया। 

***

मैंने भी जब ये कहानी सुनी थी तो मैं भी समझ गया ता कि ये संसार एक सराय है। लोग यहाँ आते हैं, ठहरते हैं और चले जाते हैं। 

हम सबको जिन्दगी को इसी भाव से जीना चाहिए कि इस खूबसूरत संसार में हम सिर्फ कुछ दिनों के लिए आए हैं। हम यहाँ कुछ दिन ठहरेंगे फिर चले जाएँगे। 

जो लोग जिन्दगी को इस भाव से जीते हैं कि ये दुनिया एक सराय है और वो एक मुसाफिर हैं, उनके लिए जिन्दगी सिर्फ एक यात्रा होती है। 

जो यात्रा को मंजिल मान लेते हैं, उनके लिए कदम-कदम पर मंजिल होती है।

आप थोड़ा हैरान होंगे, पर मैं कल देर शाम अपनी कार से दिल्ली से जबलपुर के लिए निकला। और जब आप यह सुनेंगे कि मैं राजीव चतुर्वेदी के पौधों के संसार से रूबरू होने के लिए कार से इतनी लंबी दूरी की यात्रा पर निकला हूँ आप चौंक जाएँगे। पर न तो हैरान होने की जरूरत है, न चौंकने की। बहुत साल पहले राजीव चतुर्वेदी ने पौधरोपण कारवाँ शुरू किया था। आज वो विशाल परिवार बन गया है। 

मेरी पत्नी कहती है कि आदमी और पौधे एक से होते हैं, दोनों को जीने के लिए रिश्तों का साथ चाहिए होता है। 

आज मैं उसी सच से रूबरू होने के लिए इस यात्रा पर निकल पड़ा हूँ।   

(देश मंथन, 25 दिसंबर 2015)

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