आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
साल का अंत आ पहुँचा है और अखबारों, टीवी-चैनलों पर इयर-एंड सेल के इश्तिहार शुरू हो गये हैं। जी अगले हफ्ते आप न्यू ईयर सेल के इश्तिहार भी देख रहे होंगे। साल की शुरुआत सेल से होती है और अंत भी।
कुछ हफ्ते पहले दिवाली सेल के इश्तिहार भी देख चुके होंगे।
कुछ महीने पहले स्वतंत्रता दिवस पर आये तमाम अखबारों के पहले पेज पर सेल-सेल-सेल के इश्तिहार थे।
उस वाली आनलाइट वेबसाइट से मोबाइल खरीदिये, उस वाली साइट से टीवी खरीदिये। पहले पेज के सेल-इश्तिहारों ने दिमाग पर इतना प्रेशर बना दिया मानो आज किसी भी सेल में से कुछ ना खरीदा, तो हमारे देशभक्त होने पर सवाल उठा दिया जायेगा।
सपने तक में आकर स्वतंत्रता सेनानी डपटेंगे-हमने तेरे मुल्क के लिए इतना किया, तमाम कष्ट सहकर आजाद कराया और तूने स्वतंत्रता-दिवस की सेल में एक मोबाइल तक ना खरीदा।
सेल ने विकट खेल कर दिया है। स्वतंत्रता दिवस की शुरुआत सेल से हो और अंत भी सेल से हो। हो सकता है कि कुछ समय बाद सेल-शास्त्री हमें आजादी का नया मतलब यह समझाने लगें कि सेल का मतलब है, आजादी, अपने हर पुराने आइटम से छुट्टी लें, आजादी का इस्तेमाल करें और हर आइटम ही नया खरीद लायें। आजादी माने खरीदने की आजादी। अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं-इस ऐतिहासिक गीत का मतलब यह है कि खरीदने की आजादी सबसे बड़ी आजादी है। इसे हम हमेशा कायम रखेंगे, कभी भी मिटने ना देंगे। हर सेल से सारे आइटम खरीदने की आजादी ही असली आजादी है। इसे हम मिटा नहीं सकते।
मेरा यह दुस्वप्न कुछ समय बाद कहीं सचाई में तब्दील ना हो जाये कि रेडियो पर मेरा रंग दे बसंती चोला-जैसे देशभक्ति के गीत के साथ फौरन यह इश्तिहार आने लग जाये-बसंती समेत हर कलर के चोले के लिए, सूट के लिए, विजिट करें डब्लू, डब्लू, डब्लू………फायदा उठायें स्वतंत्रता दिवस की सेल का।
सेलमय मैं सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरि जुग पानी, सर्वत्र सेल है, सेल से पहले सेल है, सेल के बाद सेल है। स्वतंत्रता दिवस पर सेल है, इसके बाद आनेवाले त्योहार रक्षाबंधन पर तो सेल बनती ही है। रक्षाबंधन के पावन अवसर पर जो भाई अपनी बहन को किसी सेल से कुछ खरीद कर ना देगा, तो फिर भाई कहलाने का हकदार ही नहीं। फिर जन्माष्टमी की सेल पर तो कुछ खरीदना ही होगा। फिर दशहरा सेलविहीन कैसे हो सकता है। उसके कुछ दिनों बाद दीवाली की महा-सेल, विराट-सेल से जिसने कुछ भी ना खरीदा, वह किस मुंह से लक्ष्मी का स्वागत करने योग्य कहलायेगा। फिर अब दिसंबर में इयर-एंड सेल में से खरीदना तो बनता ही है, मानो अगर इयर-एंड से कुछ ना खरीदा गया, तो ये साल जाने से ही इनकार कर देगा, टलेगा ही नहीं। इयर-एंड सेल में ही खरीदना तो अनिवार्य है, आखिर सांता क्लाज खुद क्रिसमस पर तमाम उपहार बाँटने के लिए किसी ना किसी सेल से तमाम आइटम खरीद कर लाता है।
बोलो सेल से कैसे बचोगे। कहाँ तक बचोगे।
सेल के इस इश्तिहारी आतंक से त्रस्त होकर कई बार मन करता है कि मैं भी उस गीत की व्याख्या कर दूँ, जिस गीत में बताया गया था-जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा, वह भारत देश है मेरा। सोने की चिड़िया बसेरा करती थी, तो वह चिड़िया कहाँ चली गयी, भारतवासियों ने हर सेल में इतने आइटम खरीद मारे, कुछ काम के, बहुत कुछ बेकाम के कि सोने की चिड़िया फुर्र हो गयी। बंदा अगर हर सेल में आइटम खरीदता रहेगा, तो सोने की चिड़िया क्या, सोने का हाथी तक फुर्र हो जायेगा।
मुझे एक डरावना सपना दिखायी देता है-मेरी मृत्यु के बाद मेरी बेटियाँ मेरा श्राद्ध-कर्म कर रही हैं, पंडित कह रहा है-हाल की किसी सेल में खरीदे गये ग्यारह मोबाइलों की दक्षिणा दें, तब पापा की आत्मा को शांति मिलेगी।
बेटियाँ असमंजस में होंगी, तो कोई पत्रकार मित्र बेटियों को बता देगा-सेल से खरीद कर मोबाइल की दक्षिणा दे दो, तुम्हारे पापा खुद पूरी लाइफ सेल लगाते रहे, तीन लेखों के रेट में ही चार लेखों के आफर की सेल लगाते रहे वह।
सेल से कोई कैसे बच सकता है आखिर…………..।
मौत के बाद भी सेल ही है और मौत से पहले तो वह है है।
(देश मंथन, 26 दिसंबर 2015)