मैं ‘माँ’ बनूँगा

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

आज मेरा एक बहुत बड़ा सपना पूरा होने जा रहा है। अब से कुछ देर बाद मुझे ‘माँ’ बनने का सौभाग्य मिलेगा। 

मैं जानता हूँ कि मेरे ऐसा कहते ही आप उलझ गये होंगे कि आखिर संजय सिन्हा जबलपुर जाकर ऐसी बहकी-बहकी बातें क्यों लिखने लगे। सब ठीक तो है न?

जी हाँ, सब ठीक है। पर आज मुझे वो सौभाग्य मिलने जा रहा है, जिसकी चाहत मेरे दिल में न जाने कब से थी। 

मैं माँ बनना चाहता था। मैं मातृत्व को महसूस करना चाहता था। आज अब से कुछ देर बाद मेरी ये मुराद पूरी होने जा रही है। 

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कल मैं दिल्ली से जबलपुर पहुँचा। पहले मेरा टिकट हवाई जहाज का था। पर हवाई जहाज का जबलपुर आना कैंसिल हो गया। फिर मैंने ट्रेन का टिकट लिया। लेकिन ट्रेन में टिकट कनफर्म नहीं हुआ। पर मैं तो तय कर चुका था कि मैं जबलपुर जाऊँगा। शाम को पाँच बजे मुझे ट्रेन पकड़नी थी, लेकिन ट्रेन में सीट नहीं मिली। अब क्या हो? अब मैं जबलपुर कैसे जाऊँगा? दफ्तर में बैठ कर मैं सोच ही रहा था कि अब क्या करूँ कि अचानक दिल में आया कि कार से जबलपुर चला जाए। और आधे घंटे बाद मेरी कार एक्सप्रेस वे पर दौड़ रही थी। कुल हजार किलोमीटर का सफर तय करना था। दिल्ली से पाँच सौ किलोमीटर दूर झाँसी तक तो मैं बिना कहीं रुके ही पहुँच गया। रात में झाँसी में रुका और सुबह जब गाड़ी चलनी शुरू हुई, तो वो रुकी जबलपुर शहर की सीमा, भेड़ा घाट पर। वहाँ अपने फेसबुक परिजन Rajeev Chaturvedi मेरा इंतजार कर रहे थे। 

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राजीव चतुर्वेदी वैसे तो बिजनेस करते हैं। पर पिछले कई वर्षों से वो वृक्षारोपण कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं। उनका सपना है, हर रोज एक पौधा लगाना। वो पिछले कई वर्षों से हर रोज एक पौधा लगाते हैं। खुद लगाते हैं, लोगों को पौधा लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। स्कूल में जाकर बच्चों को बीज लगाने का पाठ पढ़ाते हैं। वो यहाँ ‘कदम संस्थान’ से जुड़े हैं और अपने इस शौक को जुनून की हद तक जाकर पूरा करते हैं। 

जबलपुर शहर की सीमा पर मैं उनके साथ कार में बैठ गया था। 

वो आश्चर्य जता रहे थे कि मैं कार से दिल्ली से जबलपुर पहुँच गया। 

मैं आश्चर्य जता रहा था कि आप हर रोज पौधा लगाने जैसे महान यज्ञ से जुड़े हुए हैं। 

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राजीव जी ने मुझे बताना शुरू किया कि वो स्कूलों में जाकर बच्चों को बीज बाँट आते हैं। वो बच्चों को समझाते हैं कि तुम इस बीज को मिट्टी में लगाना। फिर तुम इस बीज को पौधा बनते देखना। एक दिन उस पौधे को वृक्ष बनते देखना तुम्हें अच्छा लगेगा। 

मैं बहुत ध्यान से उनकी बातें सुन रहा था। वो कह रहे थे, “संजय जी, जो बच्चे पौधा लगाना सीख जाते हैं, जो इस जीवन के आनंद को प्राप्त करना सीख जाते हैं, वो बच्चे कभी हिंसक नहीं होते। ऐसा मैंने कई बच्चों के व्यवहार में नोट किया है कि पौधे लगाने वाले बच्चे, उन्हें रोज सींचने वाले बच्चे अचानक अपने भीतर एक जिम्मेदारी महसूस करने लगते हैं। वो एक बार पौधे से जब प्यार कर बैठते हैं, तो मिट्टी से जैसे-जैसे कोपलें फूटनी शुरू होती हैं, उनके मन में भी जिन्दगी की कोपलें फूटनी शुरू होती हैं।”

राजीव जी इतना कह कर चुप हो गये। 

पर मेरा मन उनके इतने से कहे पर अटक गया। 

वाह! कितनी बड़ी बात है। मैंने आज तक ऐसा क्यों नहीं सोचा? सारी दुनिया कहती है कि पौधा लगाओ, वृक्षारोपण करो। इससे धरती बचेगी, आसमान बचेगा, नदियाँ बचेंगी, पर्यावरण बचेगा। 

छोड़िए इन बातों को। मैं तो कहता हूँ कि आप पौधा लगाइए, इससे इंसानियत बचेगी। मनुष्यता बचेगी। रिश्ते बचेंगे। प्यार बचेगा। नफरत मिटेगी। हिंसा मिटेगी। 

महिला जब माँ बनती है, तो उसके भीतर आश्चर्यजनक रूप से प्रेम का भाव फूटता है। जिस दिन वो अपनी कोख से संतान को जन्म देती है, उसके तन और मन में आमूल बदलाव आता है। 

जानते हैं क्यों? 

क्योंकि वो जन्म देने के अहसास से गुजरती है। 

मैंने न जाने कितनी बार लिखा है कि महिलाएँ कोमल होती हैं। और उनकी इस कोमलता के पीछे उनका मातृत्व भाव सबसे अहम होता है। 

मेरे मन में था कि काश मैं माँ बन पाता!

आज मेरा वो सपना पूरा होगा। आज राजीव चतुर्वदेी मुझे अपने साथ पौधरोपण कार्यक्रम में ले जाएँगे। उन्होंने मुझसे कहा है कि वो मुझसे जबलपुर में एक पौधा लगवाएँगे। एक पौधा, जो कभी वृक्ष बनेगा। उस एक पौधे को बड़ा होते हुए देखने के लिए मैं फिर जबलपुर आऊँगा। एक बार नहीं, कई-कई बार आऊँगा। जैसे ही पौधे को मिट्टी में मैं लगाऊँगा, पानी की कुछ बूंदें उसमें डालूँगा, मेरे भीतर मातृत्व की कोमल कोपलें फूटेंगी। मैं उस अहसास से गुजरुँगा, जिस अहसास से सिर्फ और सिर्फ एक औरत ही गुजरती है। मैं माँ बन जाऊँगा। 

एक पौधा मेरा होगा। मेरे वात्सल्य से भरा हुआ पौधा। 

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मातृत्व है क्या? एक अहसास ही तो है। माँ बनना तन की प्रक्रिया नहीं, मन की प्रक्रिया है। आज मैं मन की इसी प्रक्रिया से गुजरुँगा।

आप भी बीज लगाइए। एक पौधे को सींचिए। उसे वृक्ष बनते देखिए और आप भी गुजरिए उस अहसास से, जो शायद संसार का सबसे कोमल अहसास होता है।

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पुन:-

जबलपुर आकर मुझे कहानियों के एक नये संसार से मिलने का मौका मिला है। आप याद दिलाइएगा, मैं आपको कहानी सुनाऊँगा Kamal Grover की। आपको सुनाऊँगा वो कहानी, जिसे हिंदी सिनेमा वाले सुन लेते तो न जाने कब की पूरी फिल्म बना चुके होते। मैं आपको कहानी सुनाऊँगा एक ऐसे सपने के पूरे होने की, जिसे मैंने अब तक सिर्फ सिनेमा में पूरा होते हुए देखा है। आप कल तक इंतजार कीजिए मेरी उस कहानी का, पर उससे पहले आप भी मेरी उस खुशी में शामिल होइए, जिसे मैं कुछ देर बाद महसूस करने जा रहा हूँ। मेरे मातृत्व के सुख को आप भी जीने की कोशिश कीजिए।    

(देश मंथन, 26 दिसंबर 2015)

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