संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरा नाम एंजो फेरारी नहीं है। मेरा नाम संजय सिन्हा है।
पर एंजो फेरारी की माँ भी एंजो को वैसे ही कहानियाँ सुनाया करती थीं, जैसे मेरी माँ मुझे सुनाया करती थी।
मेरी माँ मुझसे कहा करती थी कि संसार में कुछ भी असंभव नहीं। बस चाहतों में शिद्दत होनी चाहिए।
एंजो की माँ भी एंजो से यही कहा करती थी कि संसार में कुछ भी असंभव नहीं। बस चाहत में शिद्दत होनी चाहिए।
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एंजो माँ से पूछा करता था कि क्या घोड़े उड़ सकते हैं?
एंजो की माँ कहा करती थी, “हाँ उड़ सकते हैं। अगर चाहत में शिद्दत हो तो कुछ भी हो सकता है।”
अब आप सोच रहे होंगे कि मैं सिंगापुर में बैठ कर कहाँ से एंजो की कहानी लेकर आपके पास आ गया हूँ। पर क्या करूँ, एंजो ने एक सपना देखा था कि घोड़े उड़ते हैं। मैंने भी एक सपना देखा था कि उस उड़ने वाले घोड़े पर मैं सवार हूँ।
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एंजो के सपने में ऐसी गाड़ी आती थी, जो उड़ती थी। उसकी दिलचस्पी रेसिंग में थी। एंजो की माँ ने कहा था कि इस संसार में कुछ भी असंभव नहीं। उसे लगने लगा कि कार उड़ सकती है। उसने 1929 में स्क्यूडेरिया फेरारी नामक एक टीम को खड़ा किया, जिसमें ऐसे ड्राइवर शामिल थे, जिनकी दिलचस्पी रेसिंग में थी। रेसिंग के इसी खेल से निकली एक कार। मुश्किलों के कई पड़ाव को पार करती हुई एक कार, जिसे नाम मिला ‘फेरारी’।
एंजो ने कभी सोचा नहीं था कि वो सड़क पर चलने वाली गाड़ी बनायेगा। पर सपनों का कोई क्या करे।
माँ ने कहा था कि सपने पूरे होते हैं। साल था 1947। कहानी इटली की है, पर यही वो साल था जब भारत आजाद हो रहा था। भारत की आजादी के साथ ही एंजो के सपनों को पंख लग रहे थे।
सारा संसार देखने जा रहा था, एक ऐसी कार, जो सड़क पर जब दौड़ती, तो लगता कि वो उड़ रही है।
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मैं जब कभी दो पाँव पर उड़ते घोड़े के निशान वाली इस कार को देखता तो लगता कि काश, मैं इसे महसूस कर पाता! आखिर एंजो नामक बालक ने इस कार के प्रतीक के रूप में दो पाँव पर खड़े घोड़े को चुना होगा, तो कुछ तो उसके मन में रहा ही होगा।
सुना है कि अपने एक पायलट दोस्त के बनाये दो पैरों पर खड़े घोड़े वाली तस्वीर उसने अपनी गाड़ी के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करने के लिए उससे माँग ली थी। उसे लगता था कि उसकी कार एक ऐसी कार होगी, जो दुनिया की सबसे खूबसूरत और सबसे रफ्तार वाली कार होगी। एक ऐसी कार, जिसमें कई घोड़ों से अधिक शक्ति होगी और रफ्तार के बारे में तो कहना ही क्या!
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जी हाँ, इतना छोटा सा इतिहास है उस कार का, जिसे आज पूरी दुनिया ’सपनों की गाड़ी’ के नाम से जानती है। मैं बात कर रहा हूँ ‘फेरारी’ कार की।
मेरे मन में बहुत दिनों से ये बात थी कि काश मैं भी कभी फेरारी की सवारी करूँ! मेरे हाथ भी फेरारी की स्टेयरिंग पर चलें!
मेरे लिए भी ये सपनों की गाड़ी थी।
मैं सिंगापुर आया।
माँ ने कहा था कि आदमी शिद्दत से जो चाहता है, वो सब पूरा होता है। मैंने दुनिया की ढेरों गाड़ियाँ चलायी हैं। पर ‘फेरारी’ नहीं।
काश आज माँ होती!
मैं उसे बताता, “माँ, तुम बिल्कुल सही कहती थी। सपने पूरे होते हैं। बस उसमें शिद्दत होनी चाहिए।
(देश मंथन, 27 जनवरी 2016)