तेलंगाना के जंगलों से होकर दूरंतो से दिल्ली…

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

हैदराबाद से दिल्ली का सफर न जाने कितनी बार किया है। पर खास तौर पर हैदराबाद शहर से ट्रेन के बाहर निकलने के बाद महाराष्ट्र में प्रवेश करने तक के कुछ घंटे निहायत सुहाने लगते हैं। क्योंकि इस दौरान ट्रेन तेलंगाना राज्य के कई जिलों से होकर गुजरती है। आबादी कम नजर आती हैं। मस्ती में बातें करते जंगल ज्यादा नजर आते हैं।

हैदाराबाद से काजीपेट तक का रास्ता मैदान और पहाड़ का मिलाजुला रूप नजर आता है। पर इसके बाद वन क्षेत्र की शुरुआत हो जाती है। कभी ये सारा इलाका आंध्र प्रदेश का हिस्सा था पर अब सब कुछ वैसा ही है पर राज्य के एपी की जगह तेलंगाना हो गया है। काजीपेट वारंगल शहर का बाहरी हिस्सा है। यहाँ से हैदराबाद के लिए रेलवे लाइन अलग हो जाती है। अगर आप दिल्ली की तरफ से हैदराबाद के लिए जा रहे हैं तो रेल वारंगल शहर से पहले काजीपेट जंक्शन से मार्ग बदल कर आगे बढ़ जाती है।

ट्रेन आगे बढ़ती है और आता है रामागुंडम रेलवे स्टेशन। यह तेलंगाना के करीमनगर जिले में आता है। रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म का उदघोषणा हो रही है, रामागुंडम रेलवे स्टेशन वेलकम्स यू… यह तेलंगाना राज्य आबादी में पाँचवां बड़ा शहर है। गोदावरी नदी के तट पर बसे इस शहर में एनटीपीसी का थर्मल पावर स्टेशन भी है। इसकी उत्पादन क्षमता 2,600 मेगावाट है। यह एक सुपर थर्मल पावर स्टेशन है, जहाँ कोयला, हाइड्रो, गैस और नवीकरणीय ऊर्जा यानी चार तरीके से बिजली बनायी जाती है।

रामागुंडम से 14 किलोमीटर आगे आता है मंचरियाल। यह आदिलाबाद जिले में पड़ता है। यह भी गोदावरी नदी के तट पर दूसरी तरफ है। मंचरियाल से कोई 20  किलोमीटर आगे आता है बेलामपल्ली। बेलामपल्ली में कोयले की खाने हैं। इसके बाद 40 किलोमीटर बाद आता है सिरपुर कागजनगर। सिरपुर आदिलाबाद जिला में पड़ता है। कागज नगर नाम इसलिए हैं क्योंकि यहाँ पेपर मिल है। सिरपुर पेपर मिल्स को 1942 हैदराबाद के निजाम ने शुरू किया था। इससे साबित होता है कि निजाम राजकाज के साथ व्यापार में हाथ आजमा रहे थे। सिरपुर के बाद ट्रेन तेलंगाना के घने जंगलों के बीच दौड़ती है।

वर्धा नदी के पुल से हैदराबाद में घुसी थी भारतीय सेना

छोटे से स्टेशन मकुदी से महाराष्ट्र राज्य आरंभ हो जाता है। इन्ही घने जंगलों के बीच विरूर रेलवे स्टेशन आता है। विरूर महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में पड़ता है। इसके बाद आता है विहिर गाँव। यहाँ भी दोनों तरफ घने जंगल दिखायी देते हैं। इसके बाद आता है मानिकगढ़। चंद्रपुर जिले में स्थित मानिकगढ़ में सीमेंट और कपड़े के उद्योग हैं।

मानिकगढ़ के पास वर्धा नदी पर पुल आता है और ट्रेन महाराष्ट्र में प्रवेश कर जाती है। इसी वर्धा नदी के पुल से होकर भारतीय सेना ने आंध्र प्रदेश में 13 और 14 सितंबर के मध्य 1948 में प्रवेश किया था और निजाम की फौज से लोहा लिया था। इस पुल को पार कर सेना आदिलाबाद जिले में पहुँची जो तब हैदराबाद का हिस्सा था। पुराना रेल पुल एकमात्र जरिया था हैदराबाद प्रांत में प्रवेश करने का। हालाँकि तब निजाम की ओर से इस पुल के नीचे विस्फोटक लगाये गये थे, जैसे ही भारतीय सेना पुल पर पहुँचे पुल को उड़ा दिया जाये। पर जिस इंजीनियर की पुल उडाने के लिए ड्यूटी लगी थी उसे कोई आदेश नहीं मिला निजाम की ओर से। यह संचार में असफलता थी और सेना सफलतापूर्वक हैदराबाद प्रांत में घुस गई। एक तरह से हम मानें तो वर्धा नदी का यह पुल केंद्रीय भारत और दक्षिण भारत की सीमा रेखा है।

इसके बाद आता है बड़ा स्टेशन बल्लारशाह। बल्लारशाह महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में पड़ता है। मिनी इंडिया कहलाता है। पेपर मिल है। बल्लारपुर इंडस्ट्रीज लिमिटेड। सबसे बडा राइटिंग और प्रिंटिंग पेपर बनाने वाला मिल। थापर समूह का मिल है ये। ये वर्धा नदी के किनारे है। पहले सिरपुर राजधानी थी बल्लारदेव की। बल्लार ने राजधानी परिवर्तन कर बल्लारशाह नगर बसाया। वैसे बल्लारशाह में कुल 9 कोलफील्ड की ईकाइयाँ हैं।

(देश मंथन  29 जनवरी 2016)

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