बैजनाथ पपरोला – कांगड़ा वैली रेल का खास स्टेशन

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

कांगड़ा वैली रेल के 164 किलोमीटर के सफर में आखिरी स्टेशन जोगिंदर नगर से थोड़ा पहले बैजनाथ पपरोला स्टेशन खास है। यह पठानकोट और जोगिंदर नगर के बीच में इस नौरो गेज नेटवर्क का सबसे बड़ा स्टेशन है। इस मायने में भी ये स्टेशन महत्वपूर्ण है कि नैरोगेज की सारी रेल गाड़ियाँ आखिरी स्टेशन जोगिंदर नगर तक नहीं जाती हैं। कई ट्रेनें पपरोला से ही वापस हो जाती हैं। तो कुछ यहीं से बन कर चलती हैं। 

बैजनाथ पपरोला का ये रेलवे स्टेशन कांगड़ा घाटी के प्रमुख शहर पालमपुर से तकरीबन 20 किलोमीटर आगे आता है। स्टेशन पपरोला बाजार से कोई 100 मीटर नीचे स्थित है। इस रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर आगे बैजनाथ मंदिर नामक रेलवे स्टेशन है। पर आपकी ट्रेन वहाँ तक नहीं जाती तो आप पपरोला से ही उतर कर रेलवे लाइन का पुल पार करके बैजनाथ मंदिर जा सकते हैं। ऐतिहासिक मंदिर की दूरी दोनों ही स्टेशनों से लगभग बराबर दूरी पर ही है। पपरोला स्टेशन से बैजनाथ मंदिर 1.5 किलोमीटर है।

मैं बस से बैजनाथ पहुँचता हूँ। महादेव के दर्शन के बाद ट्रेन ही लौटने की इच्छा है। 11 बजे वाली ट्रेन जा चुकी है। पठानकोट की अगली ट्रेन दोपहर 2:10 में खुलेगी। तब तक क्या करूं। पपरोला बाजार के चक्कर लगाता हूँ। पूरा बाजार छान मारता हूँ। दोपहर का खाना एक स्थानीय होटल में। रोटी और चिकेन। 90 रुपये में। चिकेन शानदार बना है। बाजार में एक जगह खच्चरों का स्टैंड नजर आता है। ये पहाड़ों पर गाँव-गाँव में माल ढुलाई के काम आते हैं। वापस स्टेशन लौटता हूँ।

बैजनाथ पपरोला स्टेशन की इमारत भी ऐतिहासिक नजर आती है। रेलवे स्टेशन समुद्र सतह से 954 मीटर की उँचाई पर स्थित है। हरे रंग की छतरी के ऊपर बिजली बनाने के लिए सोलर पैनल भी लगे हुए दिखायी देते हैं। स्टेशन भवन में लकड़ी का ज्यादा काम है। रेलवे स्टेशन बिल्कुल साफ सुथरा चमचमाता हुआ। प्लेटफार्म पर एक फूड स्टाल भी है।

लोको शेड और वाशिंग स्टेशन 

पपरोला स्टेशन भवन के बगल में सिनियर सेक्सन इंजीनियर का दफ्तर है। बैजनाथ पपरोला स्टेशन में लोको शेड भी है। जहाँ तीन लोकोमोटिव आराम फरमा रहे हैं। इन्ही में से एक लोकोमोटिव दो बजे वाली ट्रेन को खींचने के लिए तैयार होकर आया। हमारा पठानकोट का सफर 205 जेडडीएम 4ए लोकोमोटिव के संग शुरू हुआ। पपरोला स्टेशन पर कोच के लिए वाशिंग स्टेशन बना है। यहाँ हर रोज छह ट्रेनों के लिए वाशिंग और जाँच पड़ताल का इंतजाम हैं। स्टेशन के बगल में रेलवे कालोनी है।

स्टेशन पर रेलवे कर्मचारियों के लिए विश्रामालय भी हैं। अगर देश के किसी कोने से तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी कांगड़ा घूमने आते हैं उनके रहने के लिए कमरे महज 60 से 120 रुपये प्रतिदिन में यहाँ पर उपलब्ध हैं। रेलवे स्टेशन के टिकट घर में कांगड़ा वैली नेटवर्क के बारे में जानकारी देती हुई पट्टिका लगायी गयी है। यहाँ दूसरे स्टेशन से खुलने वाली ट्रेनों के लिए कंप्यूटरीकृत आरक्षण भी होता है। पर उसका समय दिन भर में दो घंटे के लिए ही है। कांगडा वैली रेल में तो कोई आरक्षित श्रेणी के रेल चलती ही नहीं है।

रेलवे स्टेशन पर गुड्स ट्रेन के डिब्बे भी दिखायी देते हैं। इससे प्रतीत होता है कि केवीआर के नेटवर्क पर माल ढुलाई का भी काम होता है। समय सारणी के मुताबिक बैजनाथ पपरोला से पठानकोट के बीच छह ट्रेनें रोज जाती और आती हैं। पर लोग बता रहे हैं कि आजकल तीन ट्रेने हीं चल रही हैं। पठानकोट की दूरी पपरोला से 142 किलोमीटर है। किराया है 35 रुपये। बस से जाएं तो 150 रुपये तक लग सकते हैं। इसलिए रेल लोगों में खूब लोकप्रिय है। हमारी ट्रेन में लोकोमोटिव के बाद पाँच कोच लगे हैं। कुछ कोच में 40 सीटें हैं तो कुछ में 36 ही सीटें हैं। डिब्बे का आकार तो एक ही है। पर 40 सीटों वाले कोच में दोनों कोने में बने टायलेट के बगल में भी दो-दो बैठे की सीटें लगी हैं। गार्ड के केबिन के साथ लगे आखिरी कोच की सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित है। दो बजने में आधे घंटे रह गये तब टिकटों की बिक्री आरंभ होती है। मैं पठानकोट की टिकट लेकर एक खिड़की वाली सीट पर बैठ जाता हूँ। ट्रेन अपने नियत समय पर खुल जाती है। दोनों तरफ हरे भरे जंगल हैं। ट्रेन पूरे जोश में कुलांचे भर रही है। सटक पटक…सटक पटक…सटर पटर…सटर पटर…।

(देश मंथन, 02 मार्च 2016)

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