आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
मैं ऊपर वाले प्रार्थना करता हूँ, कि जीते जी वह चाहे जैसा सलूक करे मेरे साथ। पर मेरी मौत उस दिन ना शेड्यूल करे, जिस दिन भारत और पाकिस्तान का वन डे क्रिकेट मैच हो।
साहब बहुत आफत हो जाती है, चार बंदे तक जुटाना मुश्किल हो जाता है।
चार क्या दो तक जुटाना मुश्किल हो जाता है। एक बंदा तो चाहिए ही जी, जो कम से कम नगर पालिका को फोन कर दे कि ले जाओ भइया पड़ा है।
एक जानकार की मौत हुई। मैंने पचास जगह फोन किया-गुप्ताजी नहीं रहे।
एक ने फोन पर पूछा-क्या उम्र थी।
मैंने बताया-पिच्चानवे साल।
अगले ने राय दी-जल्दी चले गये। विकेट जल्दी गिर गया।
मैंने पूछा-गुरु क्या मतलब।
उसने बताया-मेरा मतलब जल्दी चले गये, एक दिन और रुक कर जाते ना। आज का फाइनल तो कायदे से देख लेते।
बुढ़ऊ एक दिन रुक ही जाते ना-इस तरह के विचार कइयों ने व्यक्त किये।
खैर साहब घेर-बटोरकर मैंने पचास बंदे जुटाये। सबको डराना पड़ा, देखो ऊपर सबको जाना है, सोच कर डरो कि जिस दिन मरे, उस दिन अगर भारत-पाक का वन डे हुआ तो तुम्हारा क्या होगा।
शव को कंधा देने वाला एक बंदा, दूसरे हाथ में मोबाइल लिये चल रहा था। आजकल शवयात्राओं में मोबाइल लेकर चलना, यू नो, बदतमीजी नहीं, नेसैसिटी माना जाता है। लोगों को गाइड करना पड़ता है ना कि इस जगह, इतने बजे पहुँचना है।
खैर साहब, अचानक वह मोबाइल धारक चीखा-गुरु बाऊंड्री पार।
मैंने कहा-डीयर ये बुढ़ऊ जिंदगी की बाऊंड्री के बाहर हो गये, सबको पता है चीख क्यों रहे हो।
तब मोबाइल धारी ने बताया-नहीं विराट कोहली ने चौका लगाया है।
बाद में पता चला कि मैं जिसे मोबाइल समझ रहा था, वह अत्यंत मिनी ट्रांजिस्टर था। मैंने ट्रांजिस्टर जब्त किया।
गुप्ताजी को सुपर्द-ए-आग किया गया। आसपास चर्चा चल रही थी।
कितने थे-एक ने पूछा।
चार-मैंने बताया।
सिर्फ चार, अब तक सिर्फ चार-दूसरे बंदे ने कुछ खफा सा होकर पूछा।
अबे शर्म नहीं आती, क्या, चार कम होते हैं क्या आज के जमाने में। और कितने बच्चे करते गुप्ताजी-मैंने डांटा।
तो उसने बताया-सौरी मैं समझ रहा था कि पाकिस्तान के अब तक सिर्फ चार विकेट हुए हैं। दो घंटों से जान मार रहे हैं, सिर्फ चार ही आउट किये।
लौट रहे थे, तो किसी ने पूछा-उठावनी कब है।
चिंता मत करो, मैंने चेक कर लिया है। उस दिन भारत-पाक का कोई वन डे क्रिकेट मैच नहीं है-दूसरे ने बताया।
मैं आश्वस्त हूँ कि गुप्ताजी की उठावनी पर सौ बंदे आसानी से जुट जायेंगे।
(देश मंथन, 15 मार्च 2016)