पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
जमीयत उलेमा-ए-हिंद का देश की राजधानी में हुआ एकता सम्मेलन और कुछ नहीं अपने दुश्मन नंबर एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी विचारधारा के ध्वज वाहक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खिलाफत का मंच था, जहाँ इस संगठन के सदर मदनी साहब ने पानी पी-पी कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के नाम पर सरकार को कोसा तो एकता के नाम पर देश तोड़ने वाली हरकतों के लिए संघ को जिम्मेदार ठहराया।
मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि जिसको जरा सी भी समझ है, वह जानता था कि यह सम्मेलन और कुछ नहीं देश को आधी सदी से भी ज्यादा समय तक लूटने वाली पार्टी और उसके मुखिया परिवार के समर्थन के लिए ही आयोजित था। देश को आजाद कराने का अकेले श्रेय लूटने वाले दल ने दशकों तक मुसलमानों का वोट इस धमकी के बल पर पाया, ‘हमको वोट दो नहीं तो आरएसएस आ जाएगी’। पिछले लगभग साठ सालों के दौरान मुस्लिमों के दिलों में गहराई तक यह बात पहुँचा दी गयी कि संघ मुसलमानों के खिलाफ है। वह हिंदू राष्ट्र का सपना देखता है। मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग यह मानने को तैयार नहीं कि संघ की हिंदू अवधारणा वह नहीं जो वे समझते हैं और जिसके चलते वे आशंकित हैं। संघ का चिंतन कतई अलग है।
इसलिए दिल को गहरी ठेस लगी जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने, जिनके पूर्वज हिंदू थे, इस देश तोड़क मंच से यह सार्वजनिक बयान दे दिया कि कट्टर आइएस की तरह है आरएसएस। यह संताप और बढ़ गया जब मीडिया ने इस जुमले को उछाला और सच्चाई जानने के बावजूद संघ को कटघरे में खड़ा कर दिया। किसी भी मीडिया घराने को इस बात की जरा सी भी फिक्र नहीं की कि संघ जैसे राष्ट्रभक्त संघटन को निर्मम बगदादी की आईएस के साथ जोड़ कर वे देश का कितना बडा़ नुकसान कर रहे हैं।
मेरे जैसे लाखों करोड़ो संघियों की वेदना को न तो आजाद समझ सकते हैं और न ही वे मुसलमान जो संघ की कार्यशैली से अनजान रहे हैं। सोनिया गाँधी का इस सम्मेलन के लिए भेजा संदेश भी यही बताने की कोशिश थी कि देश में असहनशीलता का दौर चल रहा है।
पिछले लोकसभा चुनाव में पहली बार जात-पात टूटी थी। उससे धर्मनिरपेक्षता की दुकान चला रहे माँ-बेटे के वर्चस्व वाले दल को लग रहा है कि इस ध्रुवीकरण से तो उसका बोरिया बिस्तर ही बंध जाएगा। इसलिए तरह तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। लेकिन बदले हालातों में उनको पुरजोर जवाब भी मिल रहा है, इससे उनकी बौखलाहट बढ़ती जा रही है। युवराज का आलम यह है कि वह जो भी बोलता है सोशल मीडिया में मजाक बन जाता है। पप्पू नाम किस कदर सार्थक हो चुका है, क्या यह भी बताना पड़ेगा? याद होगा कि लोकसभा चुनावों के दौरान भैयाजी यहाँ तक बोल गये थे कि मोदी पीएम हो गए तो बीस हजार लोग मारे जाएँगे। देश जो पप्पुओं के चलते ठहर सा गया था, फिर से चल ही नहीं पड़ा है बल्कि दौड़ने लगा है। पिछली सरकार में प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे वरिष्ठ पत्रकार संजय बारू ने यह कहते हुए कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त है, पारदर्शी और जवाबदेह भी, गुड गवर्नेंस का प्रमाणपत्र दे दिया है।
संघ को तरह तरह से बदनाम करने की कोशिशों को भी हम इसी परिप्रेक्ष्य में देख सकते हैं। समय आ गया है कि संघ को, जो सिर्फ अपमान सहता रहा है, कडे़ प्रतिकार के उसे लिए कमर कसनी होगी। पूरी तरह मुखर होकर आह्वान करना होगा मुस्लिमों से कि वे शाखाओं और बौद्धिकों में आएँ और देखें संघ की देश के प्रति सोच और उसकी कार्य प्रणाली। यही नहीं भाजपायी नेताओं को भी संघ से दीक्षित करने की नितांत आवश्यकता है ताकि किसी भी सार्वजनिक बहस में संघ पर हो रहे हमले का जम कर प्रत्याक्रमण कर सकें।
(देश मंथन, 16 मार्च 2016)