वसंत पंचमी के दिन नहीं हुआ था बीएचयू का शिलान्यास

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सौ साल

हर साल वसंत पंचमी के दिन काशी हिंदू विश्वविद्यालय का स्थापना दिवस मनाया जाता है पर वास्तव में देश के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय का नींव पत्थर जिस दिन रखा गया उस दिन वसंत पंचमी नहीं थी। बीएचयू का नींव पत्थर चार फरवरी 1916 को एक बड़े समारोह में रखा गया।

यह वसंत पंचमी के चार दिन पहले की घटना थी। तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग ने बीएचयू का शिलान्यास किया। पर स्थापना दिवस समारोह चार दिनों तक चलता रहा। इसका समापन 8 फरवरी 1916 को वसंत पंचमी के दिन हुआ। पर हर साल काशी हिंदू विश्वविद्यालय का स्थापना दिवस समारोह वसंत पंचमी के दिन हिंदू पंचांग के हिसाब से ही मनाया जाता है।

चार फरवरी 1916 के बाद अगले चार दिनों के दौरान तमान प्रमुख नेताओं के भाषण के साथ गायत्री जप, अनुष्ठान, यज्ञ, गुरुग्रंथ साहिब का पाठ आदि चलता रहा। स्थापना दिवस समारोह में गाँधी जी का भाषण 6 फरवरी को हुआ। वे दक्षिण अफ्रीका सेहाल में लौटे थे और चंपारण सत्याग्रह से पहले का समय था इसलिए देश में उन्हें कम लोग ही जानते थे। संयोग से 8 फरवरी 1916 को ही पंडित जवाहर लाल नेहरू का विवाह पुरानी दिल्ली में कमला नेहरू के संग हुआ। इसलिए नेहरू जी बीएचयू के स्थापना दिवस समारोह में नहीं पहुँच सके थे।

तीन सपने मिलकर हुए एक

वास्तव में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना में तीन लोगों के सपनों का समन्वय था। 1904 में मदन मोहन मालवीय ने इस तरह का सपना देखा था। तो इसी तरह का सपना एनी बेसेंट और दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह ने देखा था।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के सिलसिले में दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह बहादुर पंडित मदनमोहन मालवीय के समर्थन में आने वाले पहले राजा थे। बड़े भाई लक्षमेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद 1899 में महाराजा बने थे रामेश्वर सिंह। शैक्षणिक संस्थनों के विकास में उनकी गहरी रूचि थी। वे एक सनातन धर्म विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे। पर मदन मोहन मालवीय से मुलाकात के बाद उन्होंने अपने सपने को हिंदू विश्वविद्यालय में मिला दिया। वे बीएचयू के सबसे बड़े आरंभिक दानदाता भी थी। उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी को 50 लाख रुपये का दान 1911 में ही दिया था, जो किसी भी महाराजा द्वारा दिया गया पहला दान था। दिसंबर 1911 में महाराजा रामेश्वर सिंह की अध्यक्षता में – द हिंदू यूनीवर्सिटी सोसाइटी – का रजिस्ट्रेशन हुआ। इस सोसाइटी में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज सर सुंदर लाल सचिव थे। इस सोसाइटी का दफ्तर इलाहाबाद में एक जनवरी 1912 को खोला गया। मदन मोहन मालवीय जी इस सोसाइटी के सदस्य थे। 

महाराजा रामेश्वर सिंह ने हिंदू विश्वविद्यालय के लिए चंदा वसूली के लिए देशव्यापी अभियान चलाया। वे खुद यूनाइटेड प्रोविंस यानी उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, बांबे, बिहार, बंगाल आदि क्षेत्रों के राजाओं से मिले। दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह ने इसके लिए तीन बार देश भ्रमण किया। ( देखें – http://www.bhu.ac.in/Centre/history.html)

बाद में महाराजा रामेश्वर सिंह ने और भी कई शैक्षणिक संस्थाओं को बड़ा दान दिया। उन्होंने पटना स्थित दरभंगा हाउस (नवलखा पैलेस) पटना यूनिवर्सिटी को दे दिया था। सन् 1920 में उन्होंने पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के लिए पाँच लाख रुपये देने वाले सबसे बड़े दानदाता थे। उनका निधन 3 जुलाई 1929 को हुआ। पर आश्चर्य की बीएचयू परिसर में इस महान दानदाता महाराजा रामेश्वर सिंह की याद में कोई भवन या स्मारक नहीं है।

एनी बेसेंट ने दिया सेंट्रल हिंदू कालेज

सेंट्रल हिंदू कालेज की स्थापना 1898 में भारत में थियोसोपी विचारों की प्रचारक एनी बेसेंट ने की थी। एनी बेसेंट मालवीय जी के साथ आईं और अपने सेंट्रल हिंदू कालेज को बीएचयू के संबद्ध कर दिया। वास्तव में एनी बेसेंट अपने सेंट्रल हिंदू कालेज को एक विश्वविद्यालय के तौर पर विकसित करना चाहती थीं पर इसके लिए बड़े बजट की जरूरत थी जो उनके पास नहीं था। एनी बेसेंट और उनके ट्रस्टी भगवानदास ने सेंट्रल हिंदू कालेज को 27 नवंबर 1915 को बीएचयू सोसाइटी को सौंपने का फैसला किया। वासत्व में सीएचएस ही बाद में बीएचयू में परिणत हुआ। बीएचयू की शुरुआती कक्षाएँ वहीं शुरू हुईं। अब कमच्छा स्थित इस परिसर का नाम सेंट्रल हिंदू स्कूल है। 25 मार्च 1916 को भारत सरकार ने बीएचयू का गजट प्रकाशित किया। 1 अप्रैल 1916 से बीएचयू एक्ट कानूनी तौर पर अस्तित्व में आया। बीएचयू के पहले वाइस चांसलर बने सर सुंदर लाल। 

आज इस महान ऐतिहासिक घटना के सौ साल हो चुके हैं और बीएचयू परिसर हर साल ही बड़ा और विकसित होता जा रहा है। यह महज संयोग ही है कि मुझे 1990 से 1995 तक इस विश्वविद्यालय में अध्ययन का मौका मिला। तब 1992-93 में बीएचयू का 75वाँ वर्ष यानी कौस्तुभ जयंती समारोह मनाया जा रहा था। अब इस विशाल शैक्षणिक परिसर के सौ साल पूरे हो चुके हैं तो उन तमाम दोस्तों के साथ जो उन पाँच सालों में हमारे साथ थे मैं खुद भी थोड़ा सा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।

(देश मंथन, 18 मार्च 2016)

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