पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
शाहिद अफरीदी एक बार फिर विवादों में घिर गये हैं। पहले तो उन्होनें टी-20 विश्वकप में भाग लेने के लिए भारतीय धरती पर कदम रखते ही यह बयान दे कर कि उनको तो अपने देश से भी ज्यादा प्यार भारत में मिलता है, पाकिस्तानियों के कोप भजन बने और फिर न्यूजीलैंड के साथ 22 मार्च को हुए मैच के पहले यह बयान दे कर कि उनको कोलकाता में काफी समर्थन मिला था और मोहाली में काफी कश्मीरी हमारे समर्थन में यहाँ पहुँचे हैं, अपनी आवाम के गुस्से को कम करने की कोशिश की। लेकिन इससे वो भारतीयों के निशाने पर फिर आ गये।
जो इस पठान से जरा सा भी परिचित है वह वाकिफ है कि यह पेशावरी कितना बड़ा बौडम या आजकल सोशल मीडिया में छाया शब्द ‘पप्पू’ है। क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। याद कीजिए भारत के हाथों 2011 विश्व कप सेमीफाइनल में हारने के बाद स्वदेश पहुँचने पर मीडिया से घिरे पाकिस्तानी कप्तान शाहिद अफरीदी ने कराची हवाई अड्डे पर अपने वतन के लोगों से जब यह सवाल किया, `वे क्यों हिंदुस्तान से नफरत करते हैं, जबकि हम सारी रवायतें, यानी शादी-व्याह आदि उनकी तरह से करते हैं, अपने ड्राइंग रूम में भारतीय फिल्मे देखते हैं और हिंदी गाने हमारी हर गली हर कूचे में बजते रहते हैं, तब क्यों वे इंडिया से दुश्मनी की बात सोचते, वे क्यों क्रिकेट मैच को आम मैच की तरह न लेकर जंग की तरह लेते हैं” ? यदि मैंने उनका यह चकित करने वाला बयान स्वयँ अपनी आँखों से टेलीविजन पर न देखा होता तो शायद विश्वास नहीं कर पाता कि कोई पाकिस्तानी कप्तान अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत दो दिलों को जोड़ने वाली भाषा भी बोल सकता है।! मैंने तत्काल फेसबुक पर “पठान की पठानी को सलाम” शीर्षक से टिप्पणी की थी। मगर फिर अफरीदी ने एक पाकिस्तानियों से बातचीत में जिस कदर भारत के खिलाफ जहर उगला और पलटी खायी उसने स्वाद कसैला तो किया ही, यह भी भरोसा हो गया कि चाहे लाख जतन कर ले कोई पर कुत्ते की दुम न कभी सीधी हुई है ओर न कभी होगी। चाणक्य की तीन बातें हमें याद रखनी चाहिए और वे हैं, ‘अपमान, आत्मग्लानि और पराजय`। मै यह नहीं कहता कि क्रिकेट कोई युद्ध है, मैं यह भी नहीं कहता कि अजमल कसाब के साथ क्रिकेट का कोई सरोकार है परन्तु इतना जरूर कहूँगा कि पाकिस्तानी क्रिकेटरों ने कभी आतंकवाद की निंदा भी नहीं की है। उन्हें हमें हमेशा इस संकल्प के साथ हराना चाहिए, जिसमें शतक लगें तो अपमान के जवाब में, विकेट गिरें तो आत्मग्लानि के मार्जन में, ताकि औसत दर्जे की पाकिस्तानी टीम को यह बताया जा सके कि कबीला चाहे कितना भी ताकतवर क्यों न हो जाये, उसे कभी भी सेना नहीं कहा जाता” ।
अब जरा सुनिए अफरीदी ने पाँच बरस पहले हमारी ही बात की किस कदर तसदीक की, “हिन्दुस्तानी इतने तंग दिल हैं, कि उनसे कभी दोस्ती हो ही नहीं सकती। हम पाकिस्तानियों का दिल बहुत बड़ा है”।
उन्होंने हमारी ही बात की पुष्टि करते हुए गंभीर को तब इसलिए कोसा कि इस भारतीय खब्बू बल्लेबाज ने विश्व कप की जीत 26\11 कांड में मारे गए शहीदों को समर्पित की थी। अफरीदी का इस पर कहना था कि गंभीर को मालूम भी है कि मुंबई के हमलावर कौन थे। ? यानी पाकिस्तानी कप्तान यह कहना चाहते थे कि आतंकी उनके देश के नहीं थे। जबकि स्वयँ उनकी सरकार काफी हीला-हवाली के बाद मान चुकी थी कि मुबई कांड की साजिश पाकिस्तान में रची गयी थी और वे सभी उनके देश के ही थे।
असल में अफरीदी का पलटी मारना अपने पहले के कप्तानों की राह पर चलना ही है जो हमेशा भारत के साथ क्रिकेट मुकाबलों को बतौर जंग देखते थे। दूरदर्शन की आर्काइज में 1978 सीरीज के दूसरे लाहौर टेस्ट में पक्षपाती देशभक्त घरेलू अम्पायरों की मदद से भारत को हराने के बाद तत्कालीन पाकिस्तानी कप्तान मुश्ताक के उस बयान की फुटेज मिल जाएगी। उसे देखिये तो स्वतः ही जवाब मिल जाएगा कि खेल को जंग की तरह से कौन लेता है। मुशी ने तब कहा था, “दुनिया भर के मुसलमान भाइयों की दुआओं से हम यह जंग जीतने में कामयाब हुए हैं।” यही नहीं, थोड़ी देर बाद ही सैन्य तानाशाह जियाउल हक साहब पीटीवी पर नमूदार होकर जीत की खुशी में अगले दिन पाकिस्तान में सार्वजनिक छुट्टी का एलान करते हैं और यह सुन कर वहाँ मौजूद भारतीय पत्रकारों की आँखें अविश्वास से चौड़ी हो गयी थीं। अभी आप देखिये कि चाहे वो 1983 रहा हो या 2008, हमने एक दिनी ओर टी-20 के विश्व कप जीते ओर फिर इसी बीती दो अप्रैल 2011 को विश्व कप अपने नाम करते हुए मुंबई में भी इतिहास दोहराया। फिर 2013 में चैंपियंस ट्राफी भी जीती। देश में जश्न का सागर लहराया। पर किसी ने इस उपलक्ष्य में छुट्टी की कल्पना भी की क्या ? यह मानसिकता मुझे पाकिस्तान की अपनी यात्राओं में देखने को मिली। पाक के लिए कोर इशु कश्मीर है और इसके चलते कई युद्ध लड़े जा चुके हैं, यह भी बताने की जरूरत नहीं, अपनी कप्तानी के दौरान इमरान खान हमेशा एक बात कहा करते थे कि कश्मीर को दाँव पर लगा कर क्रिकेट मैच खेल लो, जिसकी जीत हुई, कश्मीर उसी का हो जाएगा। मानो कश्मीर कोई पांचाली या कोई कप अथवा ट्राफी हो। जरा टीम इंडिया के उन खिलाडियों से तो कोई पूछ कर देखे जो पाकिस्तान जा चुके हैं, वे आपको बताएँगे कि वहाँ किस कदर उनका जीना हराम होता रहा है। खिलाड़ी जब हमसे मिलते तब यही पहला सवाल होता, और कितने दिन बचे ? उनकी होम सिकनेस का कोई पुरसा हाल लेने वाला नहीं था।
मुझे याद है कि 1983 विश्व कप गंवाने के बाद वेस्टइंडीज टीम घायल शेरों के मानिंद थी। कानपुर में खेले गये पहले टेस्ट में उसने सवा तीन दिन से भी कम समय में कपिल की टीम को धो कर रख दिया था और तीसरे दिन के खेल की समाप्ति के समय ही भारत फालोआन खा कर शर्मनाक पराजय के दहाने पर खड़ा था। तब टेस्ट मैचों दौरान एक दिन का अवकाश हुआ करता था। मैं उस टेस्ट के अवकाश दिवस पर मित्र दिलीप वेंगसरकर से मिलने जब होटल पहुँचा तो रमन लाम्बा (स्वर्गीय) के साथ रूम शेयर कर रहे वेंगी ने मिलते ही तपाक से मझसे सवाल किया, “अगर हमारे खिलाफ पाकिस्तान अपने घर में इसी स्थिति में हो तो क्या टेस्ट पूरा हो सकेगा, क्या वहाँ की जनता पिच पर तारकोल नहीं डाल देगी ओर क्या दंगा नहीं भड़क उठेगा ?
वेंगी की आशंका गलत या पूर्वाग्रहों से भरी नहीं थी, तब तक अपने जिन दो दौरों में उन्होंने जो अनुभव किया था, वही हम आपस में इस बहाने बाँट रहे थे। 1989 में क्या हुआ हुआ था, वेंगी तो बोर्ड के कोप भजन होने की वजह से टीम में नहीं लिए गये थे। लेकिन उनका कहा एकदम सही साबित हुआ। 20 दिसंबर को खेले गए 40 ओवरों के उस मुकाबले में पाकिस्तान ने 14.3 ओवरों सिर्फ 28 रन पर जब मियादाद, सलीम मलिक और रमीज राजा के रूप में तीन विकेट खो दिए तब दर्शक मैदान में घुस आये और दंगे में भारतीय कप्तान श्रीकांत के कपड़े फाड़ दिए गये। गनीमत यह रही कि वे किसी तरह से बचे। 16 साल के सचिन अपने इस पहले दौरे में ही यह दृश्य देख कर घबरा उठे थे और कराची का वो बदनाम एक दिनी मैच रद कर दिया गया था।
पाकिस्तानी कप्तान अफरीदी ने जहर उगलते समय जाने-अनजाने में अल्लाह मियाँ के हक को भी छोटा कर दिया। इस्लाम का मानना है की परवर दिगार ने खुदाई और दुनिया बनायी है। पतंगे से लेकर इन्सान उन्ही की मेहरबानी है, पर अफरीदी को लगा कि मुसलमानों और पाकिस्तानियों का दिल खुदा ने बड़ा बनाया है, हिन्दुस्तानियों का नहीं। इसका मायने यह होता है कि खुदा सभी का रचयिता नहीं है। गाली दो भारतियों को मगर खुदा के लिए खुदा की हैसियत को तो छोटा मत करो। यह जो तुम्हारा बड़ा दिल है, यह और कुछ नहीं एक गभीर बीमारी है – हार्ट इन्लार्ज्मेंट की और तुम्हारे मुल्क को इसके लिए लम्बे इलाज की जरूरत है। मटके में भरा हुआ ज़हर हो और ऊपर थोड़ी सी मलाई की परत, तो वह डहर को कम तो नहीं न करेगी।। खैर, अफरीदी तुम्हारी कोई गलती नहीं। विष के पेड़ में आम नहीं फलते। तुम्हारे मुल्क में कठमुल्ला वाद ने हिन्दुस्तानी नफरत के ककहरे से तुम्हारी जुबान खोली है, तुम्हारे इतिहास की उम्र हिन्दुस्तान के किसी मुफलिस के घराने से भी कम है। लिहाजा हमें तुम्हारी बदजुबानी से भी हमदर्दी है। अभी तक कबीलाई हो, जिस दिन तुम शरीफ इंसान बनोगे, उस दिन हम तुम्हे आगे की तालीम देंगे।
(देश मंथन, 25 मार्च 2016)