पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
विश्व क्रिकेट में ऐसी कई शख्सियत रही हैं कुशाग्र मस्तिष्क की जिनसे उनके देश अधिकतम लाभ उठाने में असफल रहे हैं। मैं अपने करियर के दौरान जिनको जानता हूँ उनमें कर्नाटक के हरफनमौला सुब्रह्मण्यम, हैदराबादी एम एल जयसिम्हा, अशोक मांकड़ ‘काका’ और रवि शास्त्री ऐसे क्रिकेटर रहे हैं, जिनमें वह सब कुछ था जो एक चतुर कप्तान के लिए अपरिहार्य माना जाता है। लेकिन वे बोर्ड के कृपा पात्र नहीं थे इसलिए शास्त्री को अपवाद मान लें जिन्हें कप्तान के चोटिल होने से एकाध टेस्ट व एक दिनी में यह सुयोग हाथ लगा अन्यथा तो इनमें से किसी को देश की बागडोर नहीं सौंपी गयी।
बताया जाता है कि 1971 की उस ऐतिहासिक सिरीज में जिसमें महाबली वेस्टइंडीज को पहली बार उसी की मांद में पटखनी देने का जो करतब किया था उसमें कप्तानी जयसिम्हा ने भारतीय ड्रेसिंग रूम से की थी।
वैसे ही आस्ट्रेलिया में भी हालिया वर्षों में जिन दो खिलाड़ियों ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया वे हैं शेन वाटसन, जो बोर्ड से नहीं बनने के चलते खेल से रिटायर होने जा रहे हैं और दूसरे हैं वार्नी यानी कलाई के जादूगर लेग स्पिनर शेन वार्न जिन्हे मैदान के बाहर की हरकतों ने आस्ट्रेलियाई बोर्ड को नाखुश किए रखा और उन्हें टीम के नेतृत्व की इसीलिए जिम्मेदारी नहीं सौंपी गयी।
आईपीएल का पहला संस्करण जरा याद कीजिए। गरीब राजस्थान रायल्स की कमजोर टीम को अपनी चतुर समझ, कल्पनाशील नेतृत्व से कैसे रत्न की तरह चमका कर चैंपियन बनाया था और साबित किया था कि कप्तान सिर्फ गेंदबाजी कराने और फील्डिंग सजाने भर का काम नहीं है। खेल को पढ़ कर तदनुसार लचीली रणनीति पर कैसे अमल किया जाना चाहिए, यह वार्नी ने साबित किया।
यह चर्चा मैं इसलिए कर रहा हूँ कि टीम इंडिया के डायरेक्टर रवि शास्त्री का करार समाप्त हो चुका है और अब बोर्ड की सचिन, सौरभ, लक्ष्मण की सलाहकार समिति को टीम का पूर्णकालिक कोच नियुक्त करना है। स्वच्छ छवि के शशांक मनोहर ने अध्यक्ष निर्वाचित होते ही दलाली के आरोपों से बचने लिए ही इस समिति की घोषणा कर दी थी। जल्द ही समिति की बैठक होने वाली है। कई नाम उनके सामने हैं। वार्न ने खुद पहल करते हुए कोच पद की इच्छा जाहिर की है। मेरी पहली वरीयता यह लेग स्पिनर है और दूसरे स्थान पर हैं राहुल द्रविड़।
चूँकि राहुल अंडर नाइंटीन की यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं और फिलहाल सीनियर टीम के साथ जुड़ने के अनिच्छुक हैं, इसलिए समिति उनके नाम पर शायद विचार न करे। शास्त्री प्रबल दावेदार हैं मगर महीन कारीगर भी हैं, इसलिए उनके नाम पर हो सकता है कि सहमति न बने। घूम फिर कर वार्न का ही नाम सामने आता है जो टीम में आवश्यक आक्रामकता का पुट देने में पूरी तरह सक्षम हैं। हालाँकि वह रसिक मिजाज कुछ ज्यादा ही हैं, जिसे हम बनारसी में ‘मामलेबाज’ कहते हैं। मगर यह भी सच है कि राजस्थान रायल्स के खिलाडी उन पर जान छिड़कते थे, हर कोई यह जानता है कि वह खड़ूस ग्रेग चैपल नहीं, जिंदादिल इंसान हैं और शाम को वह क्या करते हैं, यह उनका निजी मसला है। मैं ऐसे भारतीय खिलाड़ी को जानता हूँ जो होटल की धोबिन तक को नहीं छोड़ता था और बोर्ड के प्रबंधन का हिस्सा भी हैं। यह कोई इशु नहीं है, लेकिन मायावी बोर्ड को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। कौन जानता है समिति की बेचारगी सामने आ जाये।
(देश मंथन, 04 अप्रैल 2016)