जलन छोड़, अपनी किस्मत बदलें

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कुछ कहानियाँ पढ़ कर हंसी आती है। कुछ कहानियाँ पढ़ कर रोना आता है। जिन कहानियों को पढ़ कर हम हँसते या रोते हैं, उनके बारे में हम राय बना लेते हैं कि यह कहानी अच्छी है या बुरी है। पर हम यह सोचने की कोशिश नहीं करते कि हर कहानी कुछ न कुछ कहती है, संदेश देती है। जिस कहानी को सुन कर हमें कोई संदेश न मिले, वो कहानी उस फल की तरह है, जिसमें रस नहीं होता। 

मतलब संजय सिन्हा आज क्या कहना चाह रहे हैं? रोज एक नयी कहानी सुनाते ही हैं, तो फिर आज यह बताने की जरूरत ही क्यों पड़ गयी कि हर कहानी कुछ न कुछ कहना चाहती है। सबको पता है कि हर कहानी कुछ न कुछ कहना चाहती है, एक संदेश देना चाहती है। संदेश जिन्दगी का। 

***

मेरे एक मित्र का कहना है कि वो जहाँ काम करता है, उसके बॉस उसे आगे बढ़ने ही नहीं देते। उसे क्या, अपने नीचे काम करने वाले किसी व्यक्ति को वो आगे नहीं बढ़ने देते। जब भी वो ऐसा कहता है मैं बहुत हैरान होता हूँ। कोई सीनियर अपने ही जूनियर को भला आगे बढ़ने से क्यों रोकता है? एक साथ काम करने वाले सभी लोग एक परिवार की तरह होते हैं। परिवार में तो हर आदमी का धर्म होता है कि एक-दूसरे को आगे बढ़ाए। बहुत संकुचित से संकुचित सोच वाला आदमी भी अपने घर-परिवार की बेहतरी की सोचता है। फिर जब आदमी की सोच आगे बढ़ती है तो वो अपने मुहल्ले, अपने दफ्तर के लोगों के आगे बढ़ने की बात सोचता है। जिसकी सोच और आगे बढ़ जाती है, वो अपने शहर और राज्य के विकास की बात सोचने लगता है। इससे भी आगे जो सोच पाते हैं, वो देश के विकास की बात सोचते हैं। और जो इन सबसे ऊपर उठ जाता है, वो मानव कल्याण की बात सोचने लगता है। पूरे संसार और जीव जगत के कल्याण की बात सोचने लगता है। यही क्रम है मनुष्य से ईश्वरत्व की ओर बढ़ने का। यही क्रम है मानव के विकास का। 

ऐसे में जब मेरा मित्र मुझसे कहता है कि उसी के सीनियर उसे आगे नहीं बढ़ने देते, तो मनोविज्ञान की भाषा में इसके दो अर्थ होते हैं। एक, ऐसे लोग जलनखोर यानी ईर्ष्यालु होते हैं। दूसरा, ऐसे लोग खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। 

ईर्ष्या और असुरक्षा, दोनों ही मानव के अति निकृष्ट स्वभावगत अवगुण हैं। ये दोनों व्यवहार उस अग्नि के समान हैं, जिसमें पहले तो आदमी खुद जलता है, फिर दूसरों को जलाता है। 

ज्यादा विस्तार में क्या जाऊँ, मैं आज इतना ही बताता चलूँ कि मेरा मित्र जब अपने बॉस के बारे मुझसे बता रहा था, तब मैंने उससे पूछा था कि क्या तुम्हारा बॉस खुशहाल और सुरक्षित है?

नहीं, वो खुश तो कतई नहीं। उसकी अपनी जिन्दगी बहुत उलझी हुई है। वो दूसरों को आगे नहीं बढ़ने देता, इसलिए कोई उसे पसंद भी नहीं करता। ऐसे में वो चंद चापलूसों से भले घिरा रहता है, पर उसकी जिन्दगी बहुत दुखदायी है। सच यही है कि उसे मन ही मन कोई पसंद नहीं करता। 

मैं कभी न कभी बहुत विस्तार से आपको ऐसे लोगों की कहानी सुनाऊँगा, जो किसी की राह में कांटा बन जाते हैं, उनका क्या होता है। पर आज तो मैं आपको एक छोटी सी कहानी सुना कर अपनी बात पूरी करने जा रहा हूँ कि कैसे हर कहानी एक संदेश देती है। मैं आज की कहानी अपने दोस्त को अलग से भेजूँगा कि ताकि वो इसे अपने बॉस को सुना दे, और बता दें कि क्या होता है ईर्ष्यालु लोगों का। 

जो कहानी मैं आज आपको सुनाने जा रहा हूँ वो किसी ने मुझसे साझा की थी। कहानी छोटी जरूर है, लेकिन संदेश इतना बड़ा है कि उसे आप तक पहुँचाए बिना मैं रह नहीं सकता। 

एक बार एक आदमी रेगिस्तान से गुजर रहा था। अचानक वहाँ यमराज पहुँच गए। आदमी यमराज को पहचान नहीं पाया। 

सामने आ कर यमराज ने उससे पूछा कि क्या तुम्हारे पास थोड़ा पानी है? आदमी ने कुछ सोच कर यमराज को पीने का पानी दे दिया। पानी पीने के बाद यमराज ने कहा,” मैं तुम्हारी जान लेने यहाँ आया हूँ। लेकिन तुमने मेरी प्यास बुझाई है, इसलिए मैं तुम्हें पाँच मिनट का समय दे सकता हूँ, तुम चाहो तो इस डायरी में अपनी किस्मत को बदल सकते हो। तुम अपने लिए जो लिख लोगे, वही होगा। तुम इस डायरी में अपनी किस्मत में आज जो चाहो लिख लो, पर ध्यान रहे तुम्हारे पास सिर्फ पाँच मिनट का वक्त है। उसके बाद एक क्षण नहीं। 

आदमी ने यमराज से डायरी ली। उसमें पहला पन्ना पलटा तो पाया कि सबसे पहले उसके पड़ोसी की किस्मत की कहानी उसमें लिखी है। वो सहज जिज्ञासावश उसे पढ़ने लगा। उसमें लिखा था कि उससे पड़ोसी की एक लॉटरी लगने वाली है। वो जल्दी ही करोड़पति होने जा रहा है। यह पढ़ कर उसका ईर्ष्या भाव जाग उठा। उसने पहले उसकी किस्मत बदल दी। उसमें लिख दिया कि उसकी लॉटरी न लगे। 

दूसरा पन्ना पलटा तो उसमें लिखा था कि उसके मुहल्ले का एक आदमी जल्दी ही चुनाव जीत कर मंत्री बनने जा रहा है। उसे इस बात से भी बहुत कोफ्त हुई कि वो मंत्री बन जाएगा। उसने वहाँ भी लिख दिया कि वो चुनाव हार जाए। 

ऐसे ही डायरी के ढेर सारे पन्ने पलटते हुए जब अपने पन्ने तक पहुँचा तो वहाँ लिखा था कि आज उसकी मृत्यु होने वाली है। उसने अपनी किस्मत बदलने के लिए कलम उठाई ही कि यमराज ने उससे डायरी ले ली और कहा, “वत्स, पाँच मिनट पूरे हो गये। तुम्हारे पास सिर्फ पाँच मिनट थे। तुमने दूसरों की किस्मत बिगाड़ने में अपना वक्त गंवा दिया। काश, तुम इस समय का सदुपयोग अपनी बेहतरी के लिए करते।” 

और आदमी के प्राण निकल गये।

ध्यान रहे, जब आपके हाथ वो डायरी आए, तो दूसरों का बिगाड़ने में अपना समय मत गंवा दीजिएगा।       

‪(देश मंथन, 23 अप्रैल 2016)

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