आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
विकट अज्ञान और कनफ्यूजन में दिन बीते साहब। पहले एक सर्वे में साफ हुआ था कि भारतीय सन्नी लियोन (वस्त्र मुक्ति अभियान की वरिष्ठ कार्यकर्ता) के दीवाने हैं। मैं तो मान रहा था कि युवाओं के दिल में सन्नी लियोन बसती हैं। पर नहीं, कल मेरे मुहल्ले में बहुत पोस्टर दिखे, जिसमें लिखा था कि देश के युवाओं के दिल में बसने वाले एक नेता को युवाओं की माँग पर आगे लाया गया है।
हम तो सोच रहे थे युवाओं कि तुम सन्नी लियोन को बसाते हो दिल में, पर तुम तो उन नेता को बसाये बैठे थे। युवाओं के दिल के मामले समझ ना आते।
कुछ पोस्टर दिखे मुझे सड़क पर जिनपे लिखा था-जनता की प्रचंड माँग पर फलां नेताजी को हमारा नेता, देश का नेता मनोनीत करने पर बधाई। लो जी, मैं समझे बैठे था कि जनता महँगाई में कमी करवाना माँग रही है, पर ना जी ये तो उन वाले नेता को माँग रही थी मैंने खुद जा कर कहा एक नेता से कि मैं भी जनता हूँ सर, पर मैंने तो नहीं माँग की थी उन नेता की। मैंने तो सस्ते टमाटर माँगे थे।
एक नेता ने बताया-इस देश की जनता को अभी पता ही नहीं है कि वह क्या माँग रही है। हम जो आपके लिए उचित समझते हैं, वो माँग लेते हैं।
बहुत पहले मैं अश्लील फिल्मों के पोस्टरों के इश्तिहार देखा करता था-कातिल जवानी, रात के अंधेरे में टाइप-इन पर लिखा होता था कि जनता की भारी माँग पर। मुझे शर्म आती थी कि मैं भी जनता हूँ,पर मैंने तो ना माँगा इन फिल्मों को। एक बार मैं कहने गया अश्लील सिनेमा चलाने वाला हाल मालिकों से कि पोस्टरों से जनता शब्द हटायें, मैंने नहीं माँगी ये फिल्में।
सिनेमा वाले बोले-इस देश की जनता को अभी पता ही नहीं है कि वह क्या माँग रही है। हम जो आपके लिए उचित समझते हैं, वो माँग लेते हैं।
मैं समझ ना पा रहा हूँ कि उन फिल्म वालों ने जनता की माँग समझना नेताओं से सीखा है या फिर नेता उनसे सीख कर काम कर रहे हैं।
(देश मंथन 06 जून 2016)