अपने पुरुषार्थ से पाकिस्तान को सबक सिखा सकते हैं

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अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

मोदी के समूचे भाषण के दौरान अमेरिकी संसद में लगातार तालियाँ बजती रहीं। यद्यपि उनकी अंग्रेजी से मैं कभी इम्प्रेस नहीं होता, फिर भी मनमोहन की अंग्रेजी से इसे बेहतर मानता हूँ। मनमोहन तो हिंदी बोलते थे या अंग्रेजी-कभी लगता ही नहीं था कि उनकी तबीयत ठीक-ठाक है।

उन्हें सुनकर हमेशा यही लगता था, जैसे डॉक्टर ने उन्हें बेड-रेस्ट कहा हो और मजबूरी में उन्हें बोलना पड़ रहा हो। मोदी आँख में आँख डालकर बोलते हैं। वे आँख चुराकर बोलते थे।

बहरहाल, आतंकवाद के मसले पर पड़ोसी देश की भूमिका के बारे में पीएम ने जो कुछ भी कहा, उसका महत्व इस वजह से भले हो सकता है कि ऐसा उन्होंने अमेरिकी संसद में कहा, पर अमेरिका और बाकी दुनिया भारत की बातों को कितनी अहमियत दे रही है, इसे लेकर मैं आश्वस्त नहीं हूँ। पाकिस्तान की चमड़ी मोटी है और उसे छेदने के लिए जिस भाले की जरूरत है, वह भारत के पास नहीं है। हम अगर अपने पुरुषार्थ से पाकिस्तान को सबक नहीं सिखा सकते, तो कोई दूसरा कुछ नहीं करेगा।

इसलिए, भारत को अब सीमित मकसद वाले डोसियर तैयार करने और लश्कर, हाफिज और दाऊद का नाम ले-लेकर कुढ़ने की बजाय सीधे तौर पर पाकिस्तान के खिलाफ व्यापक सबूतों और तथ्यों के साथ एक ऐसा डोसियर तैयार करना चाहिए, जिसे पाकिस्तान को नहीं, बल्कि बाकी दुनिया को सौंपा जाना चाहिए, ताकि उसे आतंकवादी देश घोषित कराने की मुहिम चलाई जा सके।

पाकिस्तान में जिस तरह की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ हैं, उन्हें देखते हुए उसमें सुधार की उम्मीद करना मूर्खता है। भस्मासुर को विद्या-बुद्धि मिलने का इंतजार नहीं किया जाता, बल्कि उसके विनाश की रणनीति तैयार की जाती है।

पाकिस्तान में स्थिरता 68 साल में नहीं आई, तो अब क्या आएगी, इसलिए सही रणनीति यही है कि उसे और अस्थिर करके उसके तीन-चार टुकड़े करवा दिए जाएँ। पाकिस्तान में चरम-अस्थिरता, उथल-पुथल और विभाजन के बाद अपने आप स्थिरता आ जाएगी और फिर कश्मीर भी उसके लिए कोर इशू नहीं रह जाएगा। यही भारत के हित में होगा। यही पाकिस्तान के हित में होगा। और यही मानवता के हित में होगा। पाकिस्तान का मौजूदा स्वरूप स्वयँ पाकिस्तान की जनता के लिए भी घातक है। लेकिन यह सब करने के लिए सचमुच छप्पन इंच वाली छाती चाहिए। भाषण तो अच्छे लगते ही हैं। कोई पत्ता हिले-डुले, तो और अच्छा लगेगा।

(देश मंथन, 09 अप्रैल 2016)

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