विशाखापत्तनम – ज्वेल ऑफ द इस्ट कोस्ट

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

आंध्र प्रदेश के शहर विशाखापत्तनम को ज्वेल ऑफ द इस्ट कोस्ट कहा जाता है। तेलंगाना के अलग होने के बाद यह आंध्र का सबसे बड़ा शहर है। इसकी आबादी 2011 में 17 लाख से ज्यादा थी, जबकि तीसरे बड़े शहर विजयवाड़ा की आबादी 10 लाख से ज्यादा थी।

तकरीबन 550 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले इस सुंदर शहर के एक तरफ बंगाल की खाड़ी है तो दूसरी तरफ पहाड़। यह शहर अपने खूबसूरत समुद्र तट के लिए जाना जाता है तो दूसरी तरफ आप जंगल और सुंदर पहाड़ियाँ देख सकते हैं।

मूल रूप से इसकी पहचान एक बंदरगाह वाले शहर के तौर पर थी। पर यहाँ नौसेना के पूर्वी कमान का मुख्यालय भी है तो शहर की पहचान बड़े स्टील प्लांट विजाग स्टील के तौर पर भी है। विजाग स्टील भारत सरकार के नवरत्न कंपनी में से एक है। यह विश्व में बेहतरीन क्वालिटी का स्टील उत्पादित करता है।

अब थोड़ा पीछे चलते हैं इस शहर का नाम देवी वेलोर विशाखा के नाम पर पड़ा। इतिहास में यह इलाका कलिंग सम्राज्य का हिस्सा रहा तो मौर्य काल में सम्राट अशोक के शासन का हिस्सा था। बाद में यह आंध्र के पल्लव राजाओं के हिस्से में आया। विशाखापत्तनम को आंध्र प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी भी कहा जाता है।

वाल्टेयर, विजाग और विशाखापत्तनम

भले ही इसका वास्तविक नाम विशाखापत्तनम हो। पर इसे आंध्र में लोग वाइजेग नाम से पुकारते हैं। वास्तव में ब्रिटिश काल में अंगरेज इस शहर को विशाखापत्तनम की जगह विजागापत्तनम पुकारते थे। इसका संक्षिप्तीकरण विजाग हो गया। इसी नाम से स्टील प्लांट की भी स्थापना हुई। विजाग में ब्रिटिश जनरल वाल्टेयर की पोस्टिंग थी। शहर के उत्तर में समंदर की तरफ एक छोटे से हिस्से को उसके नाम से वाल्टेयर पुकारा जाने लगा। अब वाल्टेयर में आंध्र विश्वविद्यालय का परिसर है। वहीं इस्ट कोस्ट रेलवे के एक डिविजन का नाम भी वाल्टेयर है। इसमें आंध्र छत्तीसगढ़ और ओडिशा के रेलवे स्टेशन आते हैं। 1883 में वाल्टेयर रेलवे स्टेशन बना था। वहीं 1893 में विशाखापत्तनम रेलवे स्टेशन बना। पर अब वाल्टेयर नामक रेलवे स्टेशन नहीं है।

मार्च की एक सुबह है। विजयवाड़ा से चली हमारी बस धीरे-धीरे विशाखापत्तनम शहर में प्रवेश कर रही है। शहर से पहले बस विजाग स्टील प्लांट के अलग अलग सेक्टरों से हो कर गुजरती है। धीरे-धीरे सूरज उग रहा है। स्टील प्लांट के अधिकारी और उनकी बीवियाँ सड़क पर मार्निंग वाक करने निकले हैं। कई सेक्टरों को पार करके हमारी बस स्टील प्लाँट के मुख्य द्वार पर आती है। यहाँ से बस शहर के गाजूवाका इलाके में आती है। 

गाजूवाका शहर का मुख्य बाजार है। जंक्शन से बस फिर वापस मुड़ती है और एयरपोर्ट रोड पर चल पड़ती है। रेलवे स्टेशन या गाजुवाका से विशाखापत्तनम का एयरपोर्ट महज 8 से 9 किलोमीटर है। बस के कंडक्टर महोदय मुझे एयरपोर्ट से दो किलोमीटर पहले ही उतार देते हैं। शायद उन्हें भी थोड़ा भ्रम होता है। खैर मुझे एक आटो रिक्शा मिल जाता है। जो 30 रुपये में एयरपोर्ट के प्रस्थान टर्मिनल तक छोड़ने की बात करता है। एयरपोर्ट पहुँच कर मैं उसे 100 का नोट देता हूँ। वह मुझे 60 वापस करता है। उसके पास चिल्लर नहीं है। वह काफी कोशिश करता है कि कहीं उसे आसपास से चेंज मिल जाये। मैं उसे कहता हूँ कोई बात नहीं आप 40 ही रख लो।

विशाखापत्तनम के एयरपोर्ट का भवन और इंतजाम काफी व्यवस्थित हैं। ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर पर कुल चार प्रस्थान टर्मिनल है। वेटिंग हाल साफ-सुथरा है। टायलेट आदि भी अच्छे हैं। मैं दो घंटे पहले पहुँचा हूँ। एयर एशिया की दिल्ली की फ्लाईट 8.35 बजे है। इंतजार में के दौरान मैं द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के विशाखापत्तनम संस्करण के पन्ने पलटने लगता हूँ। हमारे आसपास बंगलुरू, कोचीन और हैदराबाद जाने वाले यात्री हैं।

विशाखापत्तनम के समुद्र तट

शहर में लंबा समुद्र तट है। यहाँ से अंडमान के लिए जहाज सेवा भी चलती है। रामकृष्णा बीच, रूशी कोंडा बीच, कोंडा कारला बीच, यारदा बीच, गंगावरम बीच।

दर्शनीय स्थल

सिम्हाचलम मंदिर,  वेंकटेश्वरा हिल्स, दुर्गाकोंडा, कैलाशगिरी, अनंतगिरी, बोरा की गुफाएँ, आरकू घाटी, बावीकोंडा, थोटलाकोंडा और शंकरम में बौद्ध अवशेष, विशाखा संग्रहालय, मरीन म्युजियम, डालफिन नोज,  इंदिरा गाँधी जूलोजिकल पार्क।

(देश मंथन 10 जून 2016)

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