विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
ये तीस जनवरी मार्ग है। एक सड़क का नाम है। पर ऐसी सड़क जो एक एतिहासिक घटना की गवाह बन गयी। एक महान आत्मा की यात्रा जो गुजरात के शहर पोरबंदर से शुरू हुई थी यहाँ आकर खत्म होती है। वह 30 जनवरी 1948 का दिन था जब 79 साल की एक महान आत्मा हे राम के शब्द के साथ इस दुनिया से कूच कर गयी। हालाँकि बापू तो आत्मशक्ति से 125 साल जीना चाहते थे। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था।
तीस जनवरी मार्ग का नाम पहले अलबुकर्क रोड हुआ करता था। पर बापू की याद में इसका नाम बदल कर 30 जनवरी मार्ग रखा गया। गाँधी जी ने अपने जीवन के आखिरी पांच माह यानी 144 दिन यहाँ गुजारे। तब वे यहाँ बिरला परिवार के मेहमान थे। बंगला नंबर 5 बिरला परिवार का गेस्ट हाउस था, जिसे गाँधी जी को रहने के लिए दिया गया था। 1966 में भारत सरकार ने इसे बिरला परिवार से खरीदने का फैसला किया। 1971 में यह भारत सरकार के अधिकार में आ गया और यहाँ गाँधी स्मृति बनाने का फैसला लिया गया।
15 अगस्त 1973 को इसे गाँधी स्मृति के तौर पर आम जनता के लिए खोल दिया गया। अब यहाँ पर बापू की स्मृति में एक संग्रहालय है। हरे भरे प्रांगण में बापू के संदेश अंकित किए गये हैं। एक मुक्ताकाश मंच और प्रार्थना स्थल है।
देश दुनिया से आने वाले बापू का सम्मान करने वाले लोग राजघाट पर उनकी समाधि के अलावा तीस जनवरी मार्ग भी पहुँचते हैं। बापू 9 सितंबर 1947 को बिरला हाउस में आए थे। उनके जीवन के आखिरी पाँच महीने की समस्त गतिविधियाँ यहीं से हुईं। हर साल 30 जनवरी को बापू की याद में यहाँ सर्व धर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है।
महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंसटाईन की ये पंक्तियाँ तीस जनवरी मार्ग पर गाँधी स्मृति के प्रांगण में प्रस्तर पर उत्कीर्ण की गई हैं…
गाँधी जी भारत के ऐसे नेता थे जिनका नेतृत्व सत्ता पर आधारित नहीं था। वे एक ऐसे राजनीतिज्ञ थे जिनकी सफलता कूटनीति पर नहीं परंतु अपने व्यक्तित्व के प्रभाव पर भी निर्भर थी। वे ऐसे विजयी योद्धा थे जिन्होंने हिंसा का सख्त विरोध किया था। वे समझदार, विनम्र और दृढ़ निश्चयी थे और उनके जीवन में कोई असंगति नहीं थी। उन्होंने अपनी पूरी शक्ति अपने देशवासियों के उद्धार और कल्याण में लगा दी। यूरोप की बर्बरता का मानवता से सामना करके उन्होंने हमेशा के लिए अपनी श्रेष्ठता साबित की।
संभव है भविष्य की पीढ़ियाँ यह मानने को तैयार नहीं हो कि ऐसा कोई व्यक्ति इस धरती पर विचरता था।
– अलबर्ट आइंस्टाइन
कैसे पहुँचे
इंडिया गेट से शाहजहाँ रोड पर जाते हुए ताज मानसिंह चौराहा आता है। वहीं से आप औरंगंजेब रोड के बगल से तीस जनवरी मार्ग पर जा सकते हैं। अगर मेट्रो से उतरते हैं तो निकटम स्टेशन रेस कोर्स और खान मार्केट हो सकते हैं।
http://gandhismriti.gov.in/indexb.asp
(देश मंथन 17 जून 2016)