संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
करीब चार साल पहले मैं मुंबई में आमिर खान के घर बैठा था। आमिर खान नपा तुला खाना खा रहे थे क्योंकि फिल्म धूम के लिए उन्हें अपनी बॉडी बनानी थी। उन्होंने मुझे बताया कि अब वो सिगरेट नहीं पीते। मुझे बहुत खुशी हुई थी कि उन्होंने सिगरेट छोड़ दी।
साल भर बाद मैं उनसे एक कार्यक्रम में मिला तो आमिर खान के हाथ में सिगरेट थी। मुझे बहुत हैरानी हुई। मैंने उनसे पूछा कि आपने तो सिगरेट छोड़ दी थी, फिर दुबारा क्यों? आमिर थोड़ा झेंपे और फिर कहने लगे कि हाँ, दुबारा शुरू हो गयी है।
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दिल्ली के एक होटल में मैं अजय देवगन के साथ बैठा था। मैंने देखा कि करीब घंटा भर में ऐश ट्रे पूरी भर गयी है सिगरेट की ठूंठ से। शाहरुख खान के विषय में तो आप जानते ही हैं कि कई बार उन्होंने यह कहा है कि वो सिगरेट छोड़ने की बहुत बार कोशिश कर चुके हैं, पर छूट नहीं रही। यही हाल सलमान खान का रहा है। तीनों बड़े खान और एक देवगन का नाम तो मैंने बतौर उदाहरण लिया है, इसके अलावा ज्यादातर फिल्मी कलाकार सिगरेट और शराब जम कर पीते हैं। कइयों की शराब पार्टी की कहानी तो आपने न जाने कितनी बार सुनी ही होगी। यहाँ तक कि शराब पार्टी में झगड़े की कहानियाँ भी सामने आती रहती हैं। हाल फिलहाल में मुझे अमिताब बच्चन और अक्षय कुमार ही पूरी तरह नशे से दूर नजर आये हैं और इसका असर इनके काम और परफार्मेंस पर भी दिखता है।
खैर, आप सोचेंगे कि पिछले तीन दिनों से मैं नशे के खिलाफ क्यों लिखने लगा हूँ। दरअसल फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ देखने के बाद मैं पहली बार ये सोचने बैठा कि ढाई घंटे की फिल्म देखने के बाद एक भी आदमी ऐसा कहता हुआ क्यों नहीं दिखा कि उसने फिल्म देखने के बाद नशा से तौबा कर ली है। कहानी ड्रग की चपेट में फँसे पंजाब की है, लोग फिल्म देख रहे हैं, पर कोई एक बार भी यह कहता नहीं मिला कि फिल्म देख कर उसने मन ही मन नशा से तौबा करने की सोच ली है। मैं कई लोगों से मिला, कई लोगों से मैंने बात की।
पर दो दिन मैंने पोस्ट लिखी, सौ से अधिक लोगों ने मुझसे वादा किया कि अब वो नशा छोड़ेंगे। गुटखा, सिगरेट, अफीम, शराब की लत छोड़ने वालों ने मुझे व्यक्तिगत तौर पर संदेश भेजा है। लिखा है कि मेरी पोस्ट पढ़ कर उन्हें हौसला मिला है और अब वो इस बुराई से खुद को आजाद करेंगे।
मेरा यकीन कीजिए कि पहली बार मुझे अपने लिखे पर फख्र हो रहा है। अगर दो लोगों को भी मेरी पोस्ट से लाभ होता है, तो मुझे लगता है कि रोज सुबह उठ कर लिखने की मेरी आदत का मुझे फायदा हुआ है।
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यह महज इत्तेफाक नहीं है कि जिन दिनों पंजाब का नशा राजनीतिक दलों की खुराक बना बैठा है, सिनेमा वालों के लिए बॉक्स आफिस पर लक्ष्मी बरसा रहा है, उन्हीं दिनों गए जमाने की हीरोइन ममता कुलकर्नी का नाम ड्रग माफिया से जुड़े होने की सुर्खियाँ बटोर रहा है। मुझे नहीं पता कि सच्चाई क्या है, पर समाज के ढेरों कामयाब लोगों के नाम ऐसे गंदे धंधों से गाहे-बेगाहे जुड़ते हुए हम सुनते रहते हैं।
सच्चाई का पता लगाने कि जिम्मेदारी सरकारी संस्थाओं पर है, उन्हें सजा दिलाने की जिम्मेदारी कानून की है। मैं तो सिर्फ शीशा दिखला सकता हूँ, बस। तो मेरे प्यारे परिजनों, शीशा दिखलाने के इसी प्रयास में मैं यह सोच रहा हूँ कि इतनी सशक्त फिल्में बनाने के बावजूद फिल्मों का आम जन जीवन पर असर क्यों नहीं होता? क्यों कोई किसी की तबाही देख कर खुद को तबाह होने से रोकता नहीं? क्या फिल्में सिर्फ मनोरंजन का जरिया भर हैं कि देखे और भूल गये?
मैंने बहुत सोचा। आपके संजय सिन्हा जब कुछ सोचने बैठते हैं तो ढेरों कहानियाँ उन्हें याद आने लगती हैं। वो कहानियाँ भी, जिन्हें आप कई बार सुन चुके होते हैं, और वो कहानियाँ भी जिन्हें आपने कभी नहीं सुना।
तो आज वो कहानी आपके लिए लाया हूँ, जो आपने पहले यकीनन सुनी होगी। पर आज कहानी के जरिए संदेश देना है, इसलिए कहानी दुबारा सुनिए।
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एक बार एक महिला अपने बच्चे को लेकर किसी महात्मा के पास गयी और कहने लगी कि महाराज मेरा बेटा गुड़ बहुत खाता है। इतना अधिक खाता है कि मुझे इसकी चिंता होने लगी है। आप इसे अगर समझाएंगे तो यह आपकी बात मान लेगा।
महात्मा ने बच्चे की ओर देखा। फिर महिला से कहा कि बहन, तुम इसे अगले हफ्ते मेरे पास लाना।
महिला बच्चे के साथ लौट गयी।
हफ्ते भर बाद वो फिर महात्मा जी के पास पहुँची। इस बार महात्मा ने बच्चे को अपने पास बुलाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा कि बेटा, तुम्हें गुड़ नहीं खाना चाहिए। ज्यादा मीठा खाने से पेट में कीड़े पड़ जाते हैं। इससे पेट में दर्द होगा। बच्चा महात्मा जी की बातें सुन कर सहमति में सिर हिला रहा था। महात्मा जी ने कहा कि तुम माँ से वादा करो कि आज से तुम गुड़ नहीं खाओगे।
बच्चे ने वादा किया कि वो गुड़ छोड़ देगा।
महिला बहुत हैरान हुई कि जब महात्मा जी को यही दो लाइनें बोलनी थीं, तो हफ्ते भर बाद क्यों बुलाया? जब पहली बार आई थी, तभी बोल देते।
उसने अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए उनसे पूछ ही लिया कि बाबा, आप उसी दिन ये बात कह देते। दुबारा क्यों बुलाया?
महात्मा जी मुस्कुराने लगे। मुस्कुराते हुए धीरे से उन्होंने कहा कि बहन, तुम जब पहली बार मेरे पास आई थी, तब मैं खुद गुड़ खाता था। जब मैं खुद गुड़ खाता था, तब मैं अगर बच्चे से कहता कि तुम गुड़ मत खाया करो तो मेरी बात का असर नहीं होता। लेकिन अब मेरी बात का असर होगा।
यही सच है।
मैं किसी तरह का नशा नहीं करता। पहले मैंने बहुत सिगरेट पी है। लेकिन जब मैं सिगरेट छोड़ चुका हूँ तो मुझे लगता है कि मेरे कहने से दो लोग भी अगर कोई नशा छोड़ने की बात कह रहे हैं तो मेरे सिगरेट छोड़ने का असर हो रहा है। फिल्म का असर इसलिए नहीं हो रहा क्योंकि गुड़ छोड़ने का कहने वाले महात्मा ने खुद गुड़ खाना नहीं छोड़ा है।
आपके बच्चों के मामले में भी यही होता है। आप जैसा उदाहरण प्रस्तुत करेंगे, बच्चे वैसा ही करेंगे। बच्चे आपको देख कर जितना सीखते हैं, उतना आपकी सुन कर नहीं सीखते।
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा मीठा कम खाए, तो अपने गिरेबाँ में झाँकना जरूरी हो जाता है।
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ओह! बातों-बात में मैं भूल गया कि जबलपुर से अनुरोध आया है कि नवंबर में वहाँ होने वाले फेसबुक मिलन समारोह की तारीख में हफ्ते भर का बदलाव किया जाए। मतलब अब यह मिलन समारोह 12 नवंबर की जगह 19 नवंबर को होगा। अच्छा हुआ कि समय रहते यह तारीख पता चल गयी। अभी तो ट्रेन का टिकट हो नहीं सकता, चार महीने पहले ही टिकट कटता है। तो अब 19 जुलाई तक आप टिकट ले सकते हैं।
माफी चाहता हूँ, पर मेरी कोशिश यही है कि आपको किसी तरह की परेशानी न हो, इसलिए मैं बहुत बारीक नजरों से सबकुछ फॉलो कर रहा हूँ और इस बदलाव की तारीख भी आपको एडवांस में बता रहा हूँ।
वैसे 23 जून को मैं जबलपुर जा रहा हूँ और सिर्फ इसीलिए ताकि एडवांस में तैयारी को अंजाम दिया जा सके।
तो यह तारीख तय है। मतलब हम 19 नवंबर को पक्का जबलपुर में मिलेंगे।
(देश मंथन 21 जून 2016)