संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज के पात्र
बेटा- रमन।
माँ- तृप्ता रानी।
बहू- मोनिका।
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बचपन में मैं स्कूल या कॉलेज में जब ड्रामा पढ़ता था, तो उसमें पात्र का परिचय पहले करा दिया जाता था। इस परिचय के बाद सीधे कहानी शुरू होती थी। हालांकि ड्रामा में पात्र आपस में बातचीत करते थे और उनकी बातचीत से ही कहानी आगे बढ़ती थी।
पर क्योंकि मैं हर रोज कोशिश करता हूँ कि अपनी कहानी कुछ अलग अंदाज में आप तक लेकर आऊं, इसलिए मैं संसार की इस सबसे करुण कहानी को ड्रामा की तरह नहीं, बल्कि संजय सिन्हा के स्टाइल में प्रस्तुत करता हूँ।
तो मेरे प्यारे परिजनों, आप अपनी आँखें पहले ही पोछ लीजिए, कान बंद कर लीजिए क्योंकि आज की जो कहानी आपके पास मैं लेकर आया हूँ, उसे बेशक आप अखबारों में पढ़ चुके होंगे, टीवी पर देख चुके होंगे, पर आपने इस कहानी का वो रूप नहीं देखा होगा, जिसे मैं आपको दिखाने ले चल रहा हूँ।
कहानी एकदम पारिवारिक है। कहानी घर-घर की है, ऐसा कहना ठीक नहीं होगा, क्योंकि मैं दुआ करता हूँ कि यह कहानी पहली न भी हो तो, आखिरी जरूर हो।
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तो शुरू होती है आज की कहानी। कहानी सुनाने से पहले आपको ले चलता हूँ 30 साल पीछे।
तीस साल पहले तृप्ता रानी माँ बनी थीं। लोग उनसे मिलने आ रहे थे। बधाइयों का तांता लगा था। सब यही कह रहे थे, “बधाई हो, बेटा हुआ है!’
तृप्ता रानी गदगद भाव से अपने बेटे के मुखड़े को निहार रही थीं।
एक औरत को और क्या चाहिए? उसका जन्म सफल हो जाता है, मातृत्व को पाकर। उसने ईश्वर से यही तो माँगा था, ईश्वर ने उसकी सुन ली थी।
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माँ ने बेटे का नाम रखा रमन। वाह! कितना सुंदर नाम है।
मेरी कहानी के दो पात्रों से आप मिल चुके हैं। तृप्ता रानी माँ हैं, और रमन बेटा।
मेरी कहानी में एक और पात्र की एंट्री अभी और होने वाली है।
हर माँ की इच्छा होती है कि उसके बेटे की जिन्दगी में एक दूसरी महिला आए, जिसका चाँद और गुलाब से रिश्ता हो।
अब आप पूछेंगे कि संजय सिन्हा ये चाँद और गुलाब का क्या खेल है?
तो जनाब, हर माँ चाहती है कि उसकी बहू चाँद की तरह खूबसूरत हो और गुलाब की तरह खुशबू बिखेरने वाली हो।
तो तृप्ता रानी ने अपने बेटे रमन के लिए चाँद सी एक बहू ढूँढ कर ला दी। बहू का नाम उसके माँ-बाप ने रखा था मोनिका।
तो अब तीनों पात्रों से आप मिल चुके हैं। रमन, तृप्ता रानी और मोनिका। यानी बेटा, माँ और बहू।
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एक दिन जालंधर पुलिस को खबर मिली की रामनगर फाटक के पास रेलवे ट्रैक पर दो लाशें पड़ी हैं। पुलिस का काम है लाशों को उठाना। उसने दोनों लाशों को अपने कब्जे में लिया और शुरू हो गयी तहकीकात कि आखिर किसकी लाश हैं ये।
पुलिस को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी।
सबने पहचान लिया कि अरे, ये तो जालंधर के ही किशनपुरा इलाके की तृप्ता रानी हैं। ये उनका बेटा रमन है।
मतलब माँ और बेटे दोनों ने चलती ट्रेन के आगे कूद कर जान दे दी थी।
पुलिस ने मामले की जाँच शुरू कर दी। बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ी। मुहल्ले के एक-एक आदमी ने बता दिया कि जब से इस माँ-बेटे की जिन्दगी में चाँद सी सुंदर और गुलाब सी खुशबू बिखेरने वाली बहू आई, इनका जीना दूभर हो गया।
ऐसा बहुत से घरों में होता है। सास-बहू के झगड़े तो कोई नयी बात नहीं। सास की ओर से बहू को तंग किए जाने की घटनाएं भी हम सब सुनते ही रहते हैं। दान-दहेज को लेकर बहुओं को मारने पीटने और मार देने तक की खबरें सामने आती ही रहती हैं।
पर यहाँ मामला उल्टा था।
बहू ने आते ही घर में झगड़ा शुरू कर दिया। मुहल्ले के लोगों ने पुलिस को बताया कि बहू बहुत जिद्दी और अहंकारी थी। अपनी बात मनवाने के लिए किसी भी हद तक जिद कर बैठती थी। घर से झगड़े की खूब आवाजें आतीं। बेटे ने पत्नी से मुक्ति चाही तो उसने धमकी दी कि तुम्हें और तुम्हारी माँ को झूठे मुकदमे में फँसा कर जेल भिजवा दूंगी।
कुल मिला कर 30 साल पहले तृप्ता रानी को बेटा पा कर जो खुशी हुई थी, वो बहू के आगमन के साथ काफूर हो चुकी थी। बेटे के जन्म पर मिली बधाइयाँ उसकी शादी के बाद नासूर बन गयी थीं। चाँद सी बहू सूरज सा ताप देने लगी थी। गुलाब में खुशबू कम कांटे ज्यादा उग आए थे। बहू से आज़ादी पाने की हर कोशिश जब विफल रही तो एक दिन माँ-बेटे ने ट्रेन के आगे कूद कर जिन्दगी के हर दर्द से मुक्ति पा ली।
इस तरह मेरी आज की कहानी के दो पात्र असमय इस संसार रूपी जेल से मुक्त हो गये।
अब बची बहू। तो, ऐसा पहली बार हुआ कि मुहल्ले के लोगों ने जुलूस निकाल पर बहू के खिलाफ प्रदर्शन किया। लोगों ने पुलिस पर दबाव डाला कि बहू को गिरफ्तार किया जाए।
तो मेरी आज की कहानी इस बात पर खत्म होती है कि बहू इस संसार रूपी जेल में अभी है। पर अब जब तक रहेगी, तन्हा रहेगी।
संजय सिन्हा का कहना है कि आदमी का अहंकार जब-जब जीत जाता है, आदमी तब-तब हार जाता है।
(देश मंथन 08 जुलाई 2016)