विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
चामुंडा मंदिर के बारे में कहा जाता है कि चंबा नगर बसने से पहले भी विद्यमान था। वर्तमान मंदिर मूल मंदिर के नष्ट होने के बाद बनाया गया है। सारा चंबा शहर माँ चामुंडा के चरणों में बसा हुआ है। मंदिर भित्ति चित्र और काष्ठकला का अदभुत उदाहरण है। चामुंडा मंदिर पैगोडा शैली में बना हुआ है। यह चंबा के बाकी मंदिरों से काफी अलग है।
कहा जाता है कि राजा शालिवर्मन द्वारा चंबा नगर बसाने से पहले यह मंदिर यहाँ मौजूद था। पर आपदा में मंदिर के ध्वस्त हो जाने पर इसका दुबारा निर्माण कराया गया। पैगोडा शैली के इस मंदिर का गर्भगृह ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है। इसका मंडप खुला हुआ है। निर्माण में स्लेटी पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। छतों के किनारों में चार नक्काशीदार काष्ठ निर्मित श्रंखला देखी जा सकती है। मंडप की काष्ठ निर्मित छत नौ हिस्सों में बंटी है। इस पर काष्ठ फलक और चार सुंदर प्रतिमाएँ अंकित की गयी हैं। बाकी आठ वर्गों में अर्धामूर्ति पूरणीय आकृतियाँ बनी हैं।
मंदिर की पूरी छत मूर्ति शिल्प से सज्जित है। बीम पर देवी-देवताओं,गंधर्वों और ऋषिओं के चित्र अंकित किये गये हैं। कई बीम पर पशु पक्षियों के भी चित्र हैं। स्तंभ शीर्ष पर योगासन करती मानव आकृतियाँ बनी हैं। गर्भ गृह के प्रवेश द्वार पर विशाल पीतल की घंटियाँ बनी हैं। यहाँ पर एक अभिलेख भी उत्तकीर्ण है। इस पर लिखा गया है कि पंडित विद्याधर ने 2 अप्रैल 1762 में 27 सेर वजन और 27 रुपये मूल्य की इस घंटी को दान में दिया था।
चामुंडा मंदिर काष्ठ कला का उत्कृष्ट उदाहरण पेश करता है। भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने इस राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया है।
बैशाख में विशाल मेला
चामुंडा मंदिर में बैशाख मास में मेला लगता है। इस समय बैरावली चंडी माता अपनी बहन चामुंडा से मिलने के लिए आती हैं। इस दौरान विशाल मेला लगता है। उस समय श्रद्धालुओं की तांता लग जाता है।
चामुंडा मंदिर के प्राचीर से चंबा शहर का अदभुत नजारा दिखायी देता है। मंदिर ऊँचाई पर स्थित है, इसलिए नीचे की तरफ पूरा शहर दिखायी देता है। मंदिर के प्रांगण से रावी नदी और सड़कों का भी सुंदर नजारा दिखायी देता है। रात की रोशनी में तो यहाँ से शहर का सौंदर्य और भी बढ़ जाता है। मंदिर में रोज शाम को आरती होती है। आरती के बाद अगर आप यहाँ से चंबा शहर का नजारा करें तो अदभुत आनंद आता है।
कैसे पहुँचे
मंदिर तक पहुँचने के दो रास्ते हैं। एक सड़क मार्ग से और दूसरा सीढ़ियों से। कोई 500 सीढ़ियाँ चढ़ कर चंबा के मुख्य बाजार से चामुंडा मंदिर तक पहुँचा जा सकता है। अगर सड़क मार्ग से मंदिर पहुँचना है तो झुमार जाने वाले मार्ग पर कोई दो किलोमीटर चलने के बाद मंदिर पहुँच सकते हैं।
(देश मंथन 27 जुलाई 2016)