विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
तीन दिनों के चंबा प्रवास के बाद वापसी की यात्रा भी काफी मनोरम रही। हमारा होटल चंबा बस स्टैंड से पाँच किलोमीटर आगे परेल में था। इसलिए हमें बस पकड़ने के लिए बस स्टैंड जाने की कोई जरूरत नहीं थी। टाइम टेबल देख लिया था।
दोपहर 11.30 बजे चलने वाली बस 20 मिनट बाद हमारे होटल के सामने से गुजरने वाली थी। होटल छोड़ने के समय हमारी मुलाकात होटल रायल ड्रीम्स के प्रोपराइटर हितेश कुकरेजा जी से हो गयी। उनसे पहले फोन पर कई बार बात हुई थी। वे हमसे मिल कर बड़े खुश हुए। हम सारा सामान लेकर होटल के सामने खड़े हो गये। थोड़ी देर में हिमाचल रोडवेज की मनाली जाने वाली बस आयी। भीड़ नहीं थी। आसानी से मनचाही जगह मिल गयी।
रावी नदी पर चंबा बनीखेत मार्ग पर बना जलाशय
रावी नदी के साथ चल रही सड़क पर हमारी बस आगे बढ़ रही थी। चंबा शहर पीछे छूटता जा रहा था। वह शहर हमें किसी सपने जैसा लग रहा था, जहाँ हमने तीन दिन गुजारे थे। दस किलोमीटर चलने पर चनेड़ नामक छोटा सा कस्बा आया। इसके बाद शुरू हो जाता है रावी नदी पर बने विशाल जलाशय का नजारा। सर्पीले वलय खाती सडक पर बस आगे बढ़ रही है। एक तरफ ऊँचा पहाड़ है तो दूसरी तरफ रावी नदी। नदी का जल काफी नीचे गहराई में दिखायी दे रहा था। हमने खिड़की के पास वाली जगह ली और कैमरा क्लिक करता गया। जितनी तस्वीरें ले सकता था लेता रहा। ऐसा लग रहा था मानो इन सारे खूबसूरत नजारों को कैद कर लूँ। कहीं कहीं नदी के उस पार सड़क नजर आती है। रावी नदी पर बने कमेरा जलाशय में एक स्थल है जहाँ पर सैलानियों के लिए जलाशय में बोटिंग की सुविधा उपलब्ध है।
कमेरा लेक के पास आता है द्रड्डा नामक कस्बा। यह 1500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ पर एक पुलिस चौकी है। हाईवे पर कहीं कहीं हमें ढाबे भी नजर आते हैं। इसी मार्ग पर एक लेक व्यू ढाबा नजर आता है। द्रड्डा के बाद आता है परिहार। और परिहार के बाद गाडियार। थोड़ा आगे चलने पर गोली नामक कस्बा आता है। गोली बनीखेत और चंबा के बीच छोटा सा कस्बा है गोली। यहाँ से प्रसिद्ध भलेई माता का मंदिर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गोली में अच्छा खासा बाजार और बैंकों की शाखाएं नजर आती हैं।
यहाँ से भलेई देवी के लिए रास्ता बदलता है….
इसके बाद आता है देवी देहरा नामक बस स्टाप। देवी देहरा से आगे बढ़े पर हम पहुँचते हैं बाथरी। बाथरी से बनीखेत की दूरी 7 किलोमीटर है। बाथरी बनीखेत के बीच सुकडाई बाई नामक एक गाँव आता है। चंबा से बनीखेत के बीच की दूरी 47 किलोमीटर है।
बनीखेत में सारी बसे 10 से 20 मिनट रुकती हैं। पर हमारी बस बनखेत से चलकर डलहौजी जाती है। डलहौजी में थोड़ी देर रुकने के बाद फिर बनीखेत आती है। इसके बाद आगे के सफर पर रवाना हो जाती है। सुबह 11.30 बजे चंबा से चलने वाली ये बस अगले दिन सुबह 5 बजे मनाली पहुँच जाती है। बनीखेत के बाद आने वाला नैनीखड्ड में तीखे मोड़ और गहरी खाई है। पंजाब के दुनेरा में पहुँचने तक पूरा रास्ता पहाड़ी है। पहाड़ों पर बस हो या कार ड्राइविंग के लिए काफी कुशलता और धैर्य चाहिए। हमने पठानकोट पहुँचने के बाद अपने ड्राईवर महोदय को मन ही मन धन्यवाद कहा।
पठानकोट से हमारी ट्रेन धौलाधार एक्सप्रेस रात को 11.20 बजे थी। इस बीच मैं अपने पुराने मित्र शिवबरन तिवारी से मिलने पहुँचा। वे यहाँ दैनिक भास्कर में हैं। अनादि दोस्त से मिलना चाहते थे जो ट्रांसफर होने के बाद पठानकोट आ गया है। उनकी भी मुराद पूरी हो गयी। धौलाधार एक्सप्रेस अपने नियत समय पर खुली। पर हमारी बर्थ ए 2 कोच में है तो माधवी की ए 3 में। हम ट्रेन में अलग-अलग हो गये। पूरे कोच में दिल्ली के एक निजी स्कूल के 12वीं कक्षा के छात्र-छात्राएँ हैं जो चंबा भ्रमण करके लौट रहे हैं।
ये लोग सारी रात ट्रेन में हंगामा करते रहे। सोने का तो सवाल ही नहीं उठता। सुबह का सूरत उगा तो हमारी ट्रेन लुधियाना, धूरी, संगरूर, जाखल जैसे स्टेशनों को छोड़ती हुई जय जयवंती नाम स्टेशन से आगे बढ़ रही थी। नाम मजेदार है ना। इसी नाम का एक शास्त्रीय संगीत में राग भी है।
(देश मंथन 29 जुलाई 2016)