विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:
अगर आप बिहार गये हैं और सिलाव का प्रसिद्ध खाजा खाने की इच्छा है और सिलाव नहीं जा सकते तो कोई बात नहीं। कभी पटना के म्यूजिम रोड पर पहुंचिए। यहाँ पर संग्रहालय के सामने खाजा की कई दुकानें एक साथ दिखाई देंगी।
खाजा बिहार की अत्यंत लोकप्रिय मिठाइयों में से है। इसकी कुछ खास बातें यूँ है कि इसे कई दिनों तक रखा जा सकता है। खराब नहीं होता। इसको चाहे जितना मर्जी खाते रहो जी नहीं भरता।
और भी बातें हैं खाजा के बारे में जैसे यह कम मिठास वाला होता है। जितना कम मिठास उतना ही अच्छा खाजा। आजकल शुगर फ्री खाजा भी बनने लगा है। तो साल 2016 में खाजा का भाव चल रहा था 140 रुपये किलो। हो सकता है सिलाव में इससे भी कम भाव हो। यह भाव तो मैं पटना का बता रहा हूँ। तो म्यूजिम रोड पर खाजा की कई दुकानें एक साथ पंक्ति में दिखाई देती हैं। ये सारे लोग खाजा समेत कुछ मिठाइयों का निर्माण करते हैं। पर इन दुकानों पर खास तौर पर खाजा पैक कराने वालों की बड़ी भीड़ लगी रहती है।
खाजा एक हल्का फुल्का मिष्ठान्न है। इसको ज्यादा भी खा लो तो पेट खराब नहीं होता। थोड़ा खाजा खा लिया तो सुबह का नास्ता हो गया। इसमें मैदा और चीनी मुख्य अवयव होते हैं। तो एक किलो खाजा बाकी मिठाइयों की तुलना में जगह ज्यादा घेरता है। लिहाजा इसकी पैकिंग भी अलग तरह की करनी पड़ती है। खाजा की पैकिंग का सबसे लोकप्रिय तरीका है, इसे टोकरी में पैक करके ले जाना। एक छोटी टोकरी मे ढाई किलो तक खाजा आ जाता है। म्युजिम रोड के दुकानदार 300 रुपये का खाज लेने पर टोकरी में पैक करके आपको सौंप देते हैं। इसके लिए अलग से टोकरी या पैकिंग का कोई शुल्क भी नहीं देना पड़ता है। बिहार की शादियों में खाजा की ऐसी 10, 20 या 50 टोकरियाँ जाती हैं। जिसका जितना सामर्थ्य और जितनी श्रद्धा। शादियों की लोकप्रिय मिठाई है खाजा। संभवतः खाजा रसगुल्ला, चमचम से ज्यादा पुरानी मिठाई है। तभी तो कहावत बना होगा- अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा…
खाजा मतलब पूरा खा जा…या फिर पहले खा फिर जा…आप जो भी समझें आपको समझने की आजादी है।
वैसे म्युजिम रोड के मिष्टान भंडार वाले न सिर्फ खाजा बल्कि रामदाना का लड्डू बनाते हैं खालिस खोवा में। इसका अपना स्वाद है। कभी पटना पहुंचे तो इसे भी खाकर देखें। इसके अलावा वहाँ अनरसा और नमकीन भी ले सकते हैं। कई शादी के घर वाले भी यहाँ से थोक भाव में पैकिंग कराते दिखाई देते हैं।
(देश मंथन, 03 अप्रैल 2017)