प्रदीप सिंह
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लगभग चार दशकों का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप सिंह इस समय 'आपका अखबार' नाम से यू-ट्यूब चैनल के संपादक हैं। उन्होंने अपने पत्रकारीय जीवन का आरंभ 1983 में स्वतंत्र भारत, लखनऊ से किया था। इसके बाद उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस, संडे ऑब्जर्वर, जनसत्ता, सम्यक कम्युनिकेशन, आउटलुक साप्ताहिक, अमर उजाला, आज समाज, बीबीसी, ऑल इंडिया रेडियो, सीएनईबी समाचार चैनल, यूएनआई टीवी, लाइव इंडिया और ओपिनियन पोस्ट में अपनी सेवाएँ दी हैं।
नेशनल हेराल्ड मामले का फैसला आ सकता है लोकसभा चुनाव से पहले
प्रदीप सिंह - 0
ईडी ने तो एक तरह से मामले को छोड़ दिया था। ईडी की पकड़ में यह मामला तब आया, जब कोलकाता में हवाला कारोबार करने वाली एक शेल कंपनी के यहाँ एजेएल और यंग इंडिया की हवाला लेन-देन की प्रविष्टि (एंट्री) मिली, और उसके तार ईडी की जाँच में गांधी परिवार तक गये। इसलिए गांधी परिवार से पूछताछ के बिना चार्जशीट दाखिल नहीं हो सकती है। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से पूछताछ हो चुकी है और अब सोनिया गांधी से पूछताछ हो रही है।
इन चार परिवारवादी दलों का भविष्य है अंधकार में
प्रदीप सिंह - 0
इन सभी पार्टियों के वर्तमान नेतृत्व को ऐसा लगता था कि हमारे साथ विरासत (लीगेसी) है, हमारा कोई क्या बिगाड सकता है। मगर पहले जनता, फिर कार्यकर्ताओं ने साथ छोड़ दिया। राजीव गांधी के समय से यह ग्राफ घटता जा रहा है। ऐसी सभी पार्टियों में अलग-अलग स्तरों पर असंतोष है। पार्टी और सत्ता का शीर्ष पद परिवार के लिए आरक्षित हो, तो बगावत तय होती है।
आरएसएस पर नेहरू का वह अभियान, जिसे मोदी ने पलट दिया
प्रदीप सिंह - 0
देश में आरएसएस पर 18 महीने तक प्रतिबंध रहा और इस दौरान नेहरू की सरकार में नियोजित तरीके से समाज में आरएसएस का दानवीकरण करने का अभियान चला। उस समय महज दो शब्द कहने से लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा चली जाती थी, सरकारी दफ्तरों में काम कर रहे अधिकारी-कर्मचारियों की नौकरी चली जाती थी, व्यापारियों पर मुकदमे हो जाते थे। वे दो शब्द थे - आरएसएस एजेंट।
राकेश टिकैत का ढोल उनके घर में फट गया
प्रदीप सिंह - 0
जिन राजनीतिक दलों ने इसमें बढ़-चढ़ कर पीछे से हिस्सा लिया, पैसा दिया, खाने-पीने और आने-जाने का इंतजाम कराया, उन्हें लग रहा है कि यह सारी मेहनत बेकार गयी। यह जो सारा इंतजाम किया गया था, इसका मकसद था उत्तर प्रदेश के चुनाव को प्रभावित करना।
झूठ के सहारे हिंदुओं को असहिष्णु दिखाने की कोशिश
प्रदीप सिंह - 0
देश के अलग-अलग हिस्सों में इस तरह की घटनाओं की खबर आती है और उसमें जोड़ दिया जाता है बाद में कि इस कारण से घटना हुई। उस घटना का जय श्रीराम के नारे से कोई संबंध नहीं होता, लेकिन जोड़ा जाता है। कांग्रेस से लेकर तमाम विपक्षी दल इस तरह की राजनीति को बढ़ावा देना चाहते हैं, इस तरह के मुद्दे या विचार को खड़ा करना चाहते हैं।
तो षड़यंत्र क्या है? षड़यंत्र दो तरह के हैं।
मुकुल रॉय के जाने से भाजपा के लिए सबक
प्रदीप सिंह - 0
पश्चिम बंगाल के घटनाक्रम में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय पार्टी छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में वापस चले गये। कांग्रेस से निकले, तृणमूल कांग्रेस बनायी। तृणमूल कांग्रेस से निकले, भारतीय जनता पार्टी में आये। भाजपा से निकले, फिर तृणमूल कांग्रेस में चले गये। तृणमूल कांग्रेस में उनका वापस जाना क्या बताता है तृणमूल कांग्रेस के लिए, भाजपा के लिए और सामान्य तौर पर राजनीति के लिए?