राजीव रंजन झा :
कांग्रेस में नेहरू जी के बाद कौन? इंदिरा जी।
इंदिरा जी के बाद कौन? संजय जी।
संजय जी की विमान दुर्घटना में मौत, अब कौन? राजीव जी।
राजीव जी के बाद कौन? सोनिया जी।
सोनिया जी के बाद कौन? राहुल जी।
राहुल जी नहीं चल रहे तो साथ में या विकल्प के रूप में कौन? प्रियंका जी।
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समाजवादी पार्टी में कौन?
मुलायम सिंह यादव जी। पुत्र अखिलेश यादव जी। भाई शिवपाल यादव जी। रामगोपाल यादव जी। डिंपल यादव जी। अपर्णा यादव जी।
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राजद में कौन?
लालू प्रसाद यादव जी के बाद राबड़ी जी।
विरासत किनको? तेजस्वी यादव जी को, तेज प्रताप यादव जी को।
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उड़ीसा में बड़े नेता थे बीजू पटनायक।
बीजू जी के बाद कौन? नवीन पटनायक। जब गद्दी पर आये तो न उड़िया भाषा जानते थे, न ओड़ीशा का भूगोल। लेकिन विरासत सँभाल ली।
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उत्तर से पहुँचते हैं दक्षिण।
आंध्र में चंद्रबाबू नायडू योग्य मुख्यमंत्री माने जाते हैं। पर राजनीति में प्रवेश की उनकी आरंभिक पात्रता क्या थी? मुख्यमंत्री का दामाद होना।
तमिलनाडु में करुणानिधि के बाद कौन? उनके बेटे स्टालिन।
ये उदाहरण हैं, जहाँ पार्टी एक पारिवारिक मिल्कियत की तरह विरासत में एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को जा रही है।
यह सच है कि भाजपा अब तक ऐसी पारिवारिक मिल्कियत नहीं बनी है। लेकिन यह भी सच है कि भाजपा में भी दूसरी कतार के नेताओं में परिवार को आगे बढ़ाने का रोग लग चुका है। पार्टी के एक अध्यक्ष के बाद दूसरा अध्यक्ष पुराने अध्यक्ष के परिवार का नहीं बन रहा। अटल जी के बाद पार्टी का शीर्ष नेतृत्व आडवाणी को मिला। आडवाणी के बाद मोदी शीर्ष नेता बने हैं और मोदी के बाद अगला शीर्ष नेता कोई और होगा। यानी पूरी पार्टी किसी एक परिवार की जेब में नहीं है। लेकिन पार्टी के दूसरी कतार के तमाम नेता अपने परिवार वालों को “सेट करने” में लग गये हैं।
ऐसे में अगर कल्पना करें कि पाँच साल या 10 साल बाद भविष्य में कभी राजनाथ सिंह प्रधानमंत्री बन गये और उस समय तक पंकज सिंह भी राजनीति में ठीक-ठाक स्तर पर काम कर रहे हों तो क्या यह सवाल नहीं बन जायेगा – राजनाथ सिंह के बाद कौन? पंकज सिंह? यह कोई अकल्पनीय स्थिति नहीं है। राजनाथ सिंह इस समय केंद्रीय मंत्रिमंडल में सबसे वरिष्ठ मंत्रियों में से हैं और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष हैं।
भाजपा के लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों के टिकटों में तो यह फॉर्मूला बनने ही लगा है – फलाँ जी के बाद कौन? उनके बेटे/बेटी/भतीजे। तो क्या वंशवाद केवल पीएम/सीएम के स्तर पर ही बुरा है और सांसद-विधायक के स्तर पर अच्छा है?