दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
“मैंने सोचा था ये ‘अमर प्रेम’ जैसे संबंध हैं, लेकिन ये तो ‘कटी पतंग’ निकले।” मायानगरी से प्रभावित शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे यह कह कर भावुक से होने लगे।
लेकिन तभी उनकी निगाह पार्टी के चिह्न शेर की तरफ पड़ी, जिसने दम भर के लिए उन्हें हौसला दिया।
मित्र नीतीश, गुरु आडवाणी और जोशी के बाद अब भाई ठाकरे को मोदी का मतलब समझ आ रहा होगा। दरअसल शपथ के दिन जब ठाकरे ने दिल्ली में नवाज शरीफ के विरोध में राष्ट्रपति भवन आने से मना कर दिया था, तभी यह तय हो चुका था कि शिव सेना का नयी सरकार में भविष्य क्या होने जा रहा है। बड़ी मुश्किल से राजनाथ समझा-बुझा कर ठाकरे को दिल्ली लाये। लेकिन तब तक मोदी और ठाकरे के रिश्तों में दरार पड़ चुकी थी।
मोदी कुछ बोलते नही हैं। पर मोदी कुछ भूलते भी नहीं हैं। उनकी खामोशी, उनकी शख्सियत का सबसे खतरनाक पहलू है। इसी खामोशी में रह कर वे सामने वाले के लिए लकीर बड़ी कर देते हैं। वे दबे पाँव मेहनत कर उस मंजिल को हासिल कर लेते हैं, जहाँ आडवाणी या ठाकरे या कोई नीतीश खुद बिखर जाता है। अपनी हैसियत जताने का मोदी का ये अलग अंदाज है।
मैंने पहले भी लिखा है और फिर दोहरा रहा हूँ कि महाराष्ट्र और हरियाणा का संग्राम पार्टी नही, मोदी की हार और जीत का संग्राम है। यह संग्राम महाराष्ट्र में तो महासंग्राम बन गया है। यहाँ मोदी को शिवसेना नहीं, ठाकरे को जताना है कि कोई चाय वाला जब प्रधानमंत्री बनता है तो किसी नेता-पुत्र की तरह गोद में नहीं, सालों तक चाय की दहकती भट्टी में तपता है। ये तप ही मोदी का जप है।
इंतजार अब मतदान का नही मतगणना का है।
(देश मंथन, 15 अक्टूबर 2014)