दिल्ली चुनाव : आमचा विश्वास पानीपतात गेला

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राजेश रपरिया : 

दिल्ली में आये केजरी भूकंप से मौजूदा सत्ताधारी दलों और विपक्षी दलों का भरोसा हिल गया है। मोदी और अमित शाह के बूथ स्तर के माइक्रो मैनेजमेंट का इतना हौव्वा था कि वोटों की गिनती से पहले भाजपा हार मानने को तैयार नहीं थी, जबकि भाजपा की हार इतनी साफ दिखायी दे रही थी कि अंधा भी दीवार पर पढ़ सकता था। लेकिन मोदी ने 2002 के बाद से कोई भी बड़ा चुनाव नहीं हारा है।

मई 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी को प्रचंड बहुमत मिला और आजाद भारत के इतिहास में पहली बार अपने दम पर मोदी की भाजपा का दिल्ली पर कब्जा हो गया।

फिर एक के बाद एक हुए विधानसभा चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़े गये और सभी चुनावों में भाजपा को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई। अब यह मिथ बन गया था कि मोदी अजेय हैं और उनके सेनापति अमित शाह का पार्टी नेतृत्व और उनकी चुनावी रणनीति अभेद्य, अकाट्य है। अद्भुत है कि मोदी और शाह की बेजोड़ जोड़ी को दिल्ली में ही भयावह शिकस्त मिली, जो भारतीय चुनावी इतिहास में न पहले सुनी गयी और न देखी गयी। देश की राजनीति पर इसका कितना व्यापक और गहन असर होगा, यह आँकना अभी मुश्किल है। भाजपा, अविजित मोदी और शाह की अभेद्य माने जाने वाली रणनीति पर और कार्यकर्ताओं एवं करोड़ों-करोड़ समर्थकों के भरोसे और मनोबल पर इसका गहरा और व्यापक असर पड़ेगा।

मोदी ने बनी दी पानीपत की तीसरी लड़ाई

अद्भुत संजोग है कि लगभग 240 साल पहले दिल्ली पर अजेय कब्जा करने के लिए एक निर्णायक महासंग्राम हुआ था, जो पानीपत की तीसरी लड़ाई के नाम से इतिहास में दर्ज है। मुगल साम्राज्य का पतन (1700) शुरू हो चुका था। मराठा लड़ाके एक संगठित शक्ति और अजेय शक्ति के रूप में उभरना शुरू हो गये थे। धीरे-धीरे मराठा शक्ति ने दक्षिण में मुगल साम्राज्य के कई किलों पर कब्जा जमा लिया। गुजरात, मालवा और राजस्थान को फतह करने के बाद दिल्ली और सिंधु के कई हिस्से मराठा शक्ति ने हथिया लिये थे। पर दिल्ली को पूरी तरह कब्जाने के लिए मराठा सेना अगस्त 1760 में दिल्ली की ओर कूच कर गयी, जिसमें तकरीबन दो लाख लड़ाके, फ्रांसीसी तोपखाना और 27,000 घोड़े शामिल थे। अंततः 14 जनवरी 1761 में (मकर संक्रांति के दिन) दिल्ली से 100 किलोमीटर दूर सुबह 8 बजे मराठा और अब्दाली की सेना आमने-सामने आ गयी। इतिहासकार बताते हैं कि दुनिया भर के युद्ध इतिहास में एक ही दिन में सर्वाधिक सैनिक (लगभग 50-60 हजार) इस महासंग्राम में मारे गये थे।

युद्ध में मराठा सैनिकों के पाँव उखड़ गये। इसके साथ ही न केवल मराठा शक्ति का पराभव शुरू हो गया, बल्कि अंग्रेजों के लिए दिल्ली कब्जाने का रास्ता साफ हो गया। इस भीषण पराजय से मराठाओं का मनोबल और भरोसा इतना टूट गया, जो अब भी मराठा भाषा में जीवित है। जैसे पानीपत झाले यानी भारी नुकसान हो गया। आमचा विश्वास पानीपतात गेला, यानी पानीपत की लड़ाई से हम अपना भरोसा खो चुके हैं। क्या दिल्ली में मोदी-शाह की करारी पराजय से उनका और उनके कार्यकर्ताओं और करोड़ों-करोड़ समर्थकों का भरोसा नहीं टूटेगा?

आधिपत्य की लड़ाई

अजीब विडबंना है कि मराठाओं ने दिल्ली को पूरा कब्जाने के लिए पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़ी थी, लेकिन मोदी तो विपाक्षियों को करारी शिकस्त देकर पहले ही दिल्ली कब्जा चुके थे। फिर मोदी-शाह की जोड़ी ने आधे-अधूरे राज्य दिल्ली को मूँछ की लड़ाई क्यों बना ली? मोदी-शाह ने पूरी केंद्र सरकार, भाजपा और संघ की प्रतिष्ठा क्यों इस चुनाव में दाँव पर लगा दी। तकरीबन सवा लाख संघ के प्रचारक लगभग सारा मंत्रिमंडल, दो सौ-ढाई सौ सांसद और तमाम भाजपाई मुख्यमंत्रियों की ताकत झोंकने की जरूरत क्यों आ पड़ी? असल में मोदी-शाही की मंशा दिल्ली विधानसभा चुनावों के बहाने भाजपा पर अपना पूर्ण आधिपत्य जमाने की थी। सत्ता और सरकारी तंत्र पर पूर्ण नियंत्रण अपनी मुट्ठी में रखने की कार्यशैली जगजाहिर है। इससे भाजपा में भारी घुटन है। संसदीय लोकतंत्र में मंत्रिमंडल की शक्तियाँ प्रधानमंत्री कार्यालय और मोदी में सिमट कर रह गयी हैं। निश्चित रूप से दिल्ली चुनाव में भाजपा मजाक बन कर रही गयी है, लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल है कि मोदी केजरीवाल की प्रलयंकारी जीत को कैसे लेते हैं?

यह फैसला केवल मोदी के खिलाफ नहीं है

यह मानना कि दिल्ली का यह जनादेश केवल मोदी शासन के खिलाफ है, वास्तविकता से मुँह फेरना होगा। असल में इस चुनाव में मतदाताओं ने न केवल सत्ताधारी दल को ठुकराया है, बल्कि विपक्ष को भी पूरी तरह से नकार दिया है। मौजूदा परिदृश्य में दिल्ली का जनादेश सत्ताधारी दलों और विपक्षी दलों की कार्यशैली और राजनीतिक संस्कृति के खिलाफ है, जिनकी शक्ति केवल धनबल, बाहुबल और भ्रष्टाचार तक सिमट कर रह गयी है। आम जनता के बल पर ये राजनेता चुन कर आते हैं और फिर आम जनता को आत्महीन बनाने में पूरी शक्ति लगा देते हैं। मूलत: यह जनादेश मौजूदा घाघ राजनीतिक वर्ग (पॉलिटिकल क्लास) के खिलाफ है।

(देश मंथन, 11 फरवरी 2015)

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