मोदी पर एफआईआर के मायने

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अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ संपादक (राजनीतिक), एनडीटीवी :

एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव आयोग के आदेश के बाद गुजरात सरकार ने दो एफआईआर दर्ज कर ली हैं। चुनाव आयोग ने कहा है कि मोदी ने जनप्रतिनिधित्व कानून की दो धाराओं 126 (1)(a) और 126 (1)(b) के उल्लंघन किया है।

इससे पहले कांग्रेस ने चुनाव आयोग को शिकायत की थी कि नरेंद्र मोदी ने गांधीनगर में अपना वोट डालने के बाद जिस तरह से प्रेस कांफ्रेंस की है वो आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है लिहाजा उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाये। चुनाव आयोग ने इस शिकायत पर तुरंत कार्रवाई की। साथ ही गुजरात सरकार को ये निर्देश भी दिया था कि वो शाम छह बजे तक सूचित करे कि क्या कार्रवाई की गयी है। चुनाव आयोग ने मोदी की प्रेस कांफ्रेंस को दिखाने वाले टीवी चैनलों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज करने को कहा।

नरेंद्र मोदी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि जीवन में पहली बार उनके खिलाफ कोई एफआईआर हुई है और वो इस दिन को कभी नहीं भूलेंगे। मोदी ने कहा कि अगर कोई चाकू, पिस्तौल या बंदूक से धमकाए तो उसके खिलाफ एफआईआर समझ में आती है। लेकिन उनके खिलाफ एफआईआर इसलिए दर्ज हुई क्योंकि उन्होंने लोगों को कमल का फूल दिखाया। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस पर हमला किया है। मोदी ने तिरूपति में एक चुनावी रैली में कहा कि कांग्रेस चाय बेचने वाले डर गयी है।

मोदी ने एक बार भी चुनाव आयोग का नाम नहीं लिया और एफआईआर के लिए सीधे कांग्रेस को ही ज़िम्मेदार ठहराया है। बीजेपी ने कांग्रेस द्वारा किये गये संवैधानिक संस्थाओं के कथित अपमान को इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनाया है। यूपीए सरकार के खिलाफ अपनी चार्ज शीट में भी बीजेपी ने कांग्रेस पर सीवीसी, सीएजी और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया है। यही वजह है कि मोदी अपने खिलाफ एफआईआर को लेकर चुनाव आयोग के सामने खड़े होते नहीं दिखना चाहते हैं। हालाँकि गुजरात में अपने शुरुआती दौर में वो चुनाव आयोग से दो-दो हाथ कर चुके हैं। राज्य में 2002 में चुनावों में देरी के लिए उन्होंने तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त जे एम लिंगदोह पर निशाने साधे थे।

लेकिन बीजेपी नेता चुनाव आयोग की कार्रवाई और उसकी रफ्तार पर जरूर सवाल उठा रहे हैं। हालाँकि वो खुल कर इस बारे में ज़्यादा कुछ कहने को तैयार नहीं है। पार्टी नेताओं के मुताबिक नरेंद्र मोदी ने आदर्श आचार संहिता का कोई उल्लंघन नहीं किया है। बीजेपी का दावा है कि मोदी ने पत्रकारों से बातचीत पोलिंग बूथ से दो सौ मीटर दूर की थी। जहाँ तक प्रेस कांफ्रेंस का सवाल है, ये एक आम बात है कि वोट डालने के बाद तमाम नेता पत्रकारों से बातचीत करते हैं। सुरक्षा के लिहाज़ से मोदी के लिए अलग से इंतज़ाम किया गया था जिसे प्रेस कांफ्रेंस का नाम देना ठीक नहीं होगा। मोदी ने राजनीतिक मसलों पर अपनी बात तभी कही जब उनसे इस बारे में पत्रकारों ने सवाल पूछे।

बीजेपी नेता ये भी कहते हैं कि चुनाव चिह्न कमल को कुर्ते पर लगाना आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है। उनकी दलील है कि जब तक चुनाव चिह्न के साथ उस पर वोट देने की अपील न की जाये, ये संहिता का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है। पोलिंग बूथ पर राजनीतिक दलों के एजेंट चुनाव चिह्न लगा कर बैठ सकते हैं। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता झाड़ू के चुनाव चिह्न वाली टोपियाँ लगा कर वोट देने जाते हैं। जबकि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह वोट डालने के बाद हाथ हिलाते हैं, जो उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह है।

बीजेपी जनप्रतिनिधित्व कानून की उन धाराओं में उल्लेखित “चुनाव सामग्री” शब्द की व्याख्या पर भी सवाल उठा रही है। पार्टी का कहना है कि उसके घोषणा पत्र जारी करने के वक्त भी इसी शब्द के तहत सवाल उठाये गये थे और मीडिया को टेलीकास्ट करने से रोकने की बात कही गयी थी। जबकि कोई भी राजनीतिक दल किसी भी वक्त अपना घोषणा पत्र जारी कर सकता है।

हालाँकि कानून के जानकार बीजेपी के एतराज को खारिज कर रहे हैं। उनके मुताबिक चुनाव आयोग ने नौ अप्रैल को एक आदेश में कहा था कि किसी राजनीतिक दल के चुनाव चिह्न वाली टोपी, शाल या कपड़ों में कोई पोलिंग बूथ पर नहीं जा सकता। मोदी ने वोट डालने के बाद राजनीतिक बयान दिए जिन्हें टीवी पर दिखाया और इससे मतदाता प्रभावित हो सकते हैं। मोदी अपने हाथ में पूरे वक्त बीजेपी का चुनाव चिह्न कमल लिए हुए थे और लहराते रहे, जो एक तरह से पार्टी का प्रचार करना ही कहा जायेगा।

वैसे तो जनप्रतिनिधित्व कानून की इन धाराओं के उल्लंघन पर दो साल की सज़ा तक का प्रावधान है। पर ऐसे मामले दुर्लभ हैं जिनमें ये सज़ा हुई हो। इसलिए ये देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में आगे जा कर मोदी के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है। ये ज़रूर है कि इस विवाद से मोदी को एक तरह से फायदा ही हुआ है क्योंकि कल मतदान के दिन वो टीवी पर छाए रहे और वो भी अपना चुनाव चिह्न कमल लहराते हुए।

(देश मंथन, 01 मई 2014)

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