मनोरंजन या मनोभंजन?

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

चुनाव के दौरान सभी दलों और सभी प्रमुख नेताओं के बयानों को पढ़-सुनकर आम आदमी मुँह में उंगली दबा रहा है।

उसे समझ नहीं पड़ रहा कि हमारे नेताओं को हुआ क्या है। ऐसा लगता ही नहीं कि ये चुनाव किन्हीं सभ्य लोगों के बीच लड़े जा रहे हैं। जब युद्ध लड़े जाते हैं तो उनके भी कुछ नियम होते हैं। युद्धरत राष्ट्र संप्रभु होते हैं लेकिन उन्हें भी उन नियमों का पालन करना पड़ता है लेकिन हमारे नेतागण तो अपने आपको राष्ट्रों से भी अधिक स्वच्छन्द समझने लगे हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी का नाराज होना बिल्कुल स्वाभाविक है। जब तक उसके भाई और मां को अन्य नेता भला-बुरा कहते थे, तो वह संभलकर जवाब देती थी लेकिन जबसे उसके पतिदेव को निशाना बनाया गया है, वह बौखला गयी हैं। उसे पहले से पता होना चाहिए था कि राबर्ट वाड्रा की पत्नी होने का मतलब क्या है? यदि वाड्रा को अपनी इज्जत और अपने ससुराल की जरा भी परवाह होती तो उसे धन के लोभ का संवरण करना चाहिए था। एक ही साल में लखपति से अरबपति बनने वाले की बीवी को राजनीति से परहेज करना चाहिए था। वह अमेठी और रायबरेली नहीं जाती तो क्या राहुल और सोनिया हार जाते? उसके पिता की सत्ता दलाली के आरोप में चली गयी और उसके पति की करतूतों के कारण उसका अपना प्रभा-मंडल क्षीण हो गया। अब प्रियंका का यह कहना कि विरोधी नेता बदहवास चूहों की तरह दौड़ रहे हैं, उनके परिवार और उनकी पार्टी पर ही चस्पां हो रहा है। सोनिया गांधी की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के पास यह प्रियंका नामक तुरुप का जो आखिरी पत्ता था, यह भी पिट गया। अफसोस है।

सिर्फ प्रियंका ही नहीं, ममता बेनर्जी और फारुक अब्दुल्ला जैसे मंजे हुए नेता भी अपने कपड़े फाड़ रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस मोदी के पत्नी-प्रकरण को उछाल रही है और ‘गुजरात के कसाई’ से जवाब माँग रही है। फारुक अब्दुल्ला कह रहे हैं कि भारत अगर ‘सांप्रदायिक’ हो गया तो कश्मीर उसमें नहीं रहेगा याने मोदी अगर प्रधानमंत्री बन गया तो अब्दुल्ला समेत कश्मीर पता नहीं कहाँ चला जायेगा। अब्दुल्ला अब बिहार के गिरिराज सिंह से भी चोंच लड़ा रहे हैं। वे कह रहे हैं कि जो मोदी को वोट दे रहे हैं, उन्हें समुद्र में डूब मरना चाहिए, क्योंकि गिरिराज ने कहा है कि जो मोदी का विरोध कर रहे हैं, उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए। बेनी प्रसाद वर्मा तथा कई अन्य छोटे-मोटे नेता भी अत्यंत अनर्गल बातें बोल रहे हैं। आजम खान और बाबा रामदेव पर उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध लगा ही हुआ है। भारत की जनता को अभी 15-20 दिनों तक यह नेतावाणी और भी बर्दाश्त करनी होगी। यह वाग्युद्ध यदि अखबारों और टीवी चैनलों तक ही सीमित रहे तो गनीमत होगी।

आश्चर्य तो इस बात का है कि जो पार्टी सत्तारुढ़ होनेवाली है, वह भी गंभीर मुद्दे नहीं उठा पा रही है। जब एक-एक दिन में कई सभाएँ करनी होती हैं और वे सब चैनलों पर दिखायी जाती हैं तो बेचारे नेतागण भी क्या करें? नये-नये मुद्दे वे कहाँ से लायें? इसीलिए व्यक्तिगत छींटाकशी से ही वे अपने श्रोताओं का मनोरंजन करते रहते हैं। यह राजनीतिक मनोरंजन ही मनोभंजन बनता जा रहा है।

(शेयर मंथन, 29 अप्रैल 2014)

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