राजेश रपरिया :
दिल्ली विधानसभा के चुनावी सर्वेक्षणों में खारिज अरविंद केजरीवाल ‘विजेता’ बन कर उभरे हैं। इन सर्वेक्षणों में केजरीवाल के पक्ष में मतदाताओं का रुझान बढ़ रहा है।
इससे हैरान-परेशान मोदी के सेनापति अमित शाह ने मोदी सरकार के मंत्रियों की एक पलटन अब इस चुनावी जंग में झोंक दी है। यानी दिल्ली में मतदान तक, यानी 7 फरवरी तक भारत सरकार तकरीबन छुट्टी पर रहेगी। इसके अलावा इस जंग में 120 सांसद भी भाजपा ने तैनात किये हैं। इसके अलावा सवा लाख पन्ना प्रभारी बनाये गये, जिसकी जिम्मेदारी संघ के पास है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जो शक्ति झोंकनी पड़ी है, वह भारतीय विधानसभा चुनावों के इतिहास में अभूतपर्व है। इसे देख कर साफ जाहिर है कि मोदी लहर इस चुनाव में थम सी गयी है। मोदी के विकास और सुशासन के मुद्दे इसमें सिरे से गायब हैं और यह सारा चुनाव केजरीवाल के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गया है। फिलहाल भाजपा ने केजरीवाल को कैबिनेट से बड़ा नेता बना दिया है। चुनावी रणनीति में माहिर अमित शाह का किरण बेदी कार्ड निस्तेज हो गया है, जबकि विज्ञापनबाजी और प्रचार में भाजपा प्रतिद्वंद्वी दलों से मीलों आगे है।
हर कोई जानता है कि जनवरी-फरवरी में वित्तमंत्री को सांस लेने की फुर्सत नहीं होती है। पर मोदी सरकार के वित्तमंत्री अरुण जेटली को अमित शाह के साथ इस चुनावी जंग में संयुक्त कंमाडर नियुक्त किया गया है। ऐसा न कभी पहले सुना गया, न देखा गया। भाजपा ने प्रेस ब्रीफिंग के लिए विशेष दस्ता बनाया है, जिसमें पार्टी के अनेक बड़े पदाधिकारियों के अलावा केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री अनंत कुमार, विद्युत मंत्री पीयूष गोयल, वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण जैसे दिग्गज शामिल हैं।
इनसे भी भाजपा को जीत का भरोसा नहीं हुआ। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को करोल बाग, धर्मेंद्र प्रधान (केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री) को नयी दिल्ली, पीयूष गोयल (केंद्रीय विद्युत मंत्री) को चाँदनी चौक, मुख्तार अब्बास नकवी (संसदीय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री) को नवीन शाहदरा, डॉ. महेश शर्मा (केंद्रीय पर्यटन मंत्री) को शाहदरा, थावर चंद गहलौत (केंद्रीय न्याय और सशक्तीकरण मंत्री) को महरौली, कृष्णपाल गुर्जर (केंद्रीय मंत्री जहाजरानी, सड़क परिवहन और राजमार्ग) को मयूर विहार, केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री अनंत कुमार को दक्षिण दिल्ली, राधा मोहन सिंह (केंद्रीय कृषि मंत्री) को उत्तर पश्चिम दिल्ली, संजीव बलियान (केंद्रीय राज्य मंत्री कृषि) को बाहरी दिल्ली प्रभाग की चुनावी जिम्मेदारी सौंपी गयी है।
मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को केशवपुरम, बिहार के राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव को नजफगढ़ और हिमाचल के सांसद अनुराग ठाकुर को पश्चिमी दिल्ली प्रभाग की जिम्मेदारी दी गयी है। इन तैनातियों का मूल आधार जाति और धर्म है, जैसे संजीव बलियान को बाहरी दिल्ली का प्रभारी बनाया गया है, जहाँ जाटों की खासी तादाद है। मोदी का विकास और सुशासन का मुद्दा इस चुनाव में गौण हो गया है।
इस पलटन की सहायता के लिए 120 भाजपाई सांसदों को तैनात किया गया है। सुषमा स्वराज (केंद्रीय विदेश मंत्री) और स्मृति ईरानी (केंद्रीय मानव संसधान मंत्री) को चुनावी सभाएँ करने की विशेष जिम्मेदारी दी गयी है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस जंग में कूद चुके हैं। आजतक न्यूज चैनल की एक रिपोर्ट के अनुसार पंजाब सरकार का सचिवालय खाली पड़ा है। लोग काम के लिए भटक रहे हैं, क्योंकि पंजाब सरकार के अधिकांश मंत्री दिल्ली में डेरा जमाये हुए हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव बार-बार रंग बदल रहा है। पहले यह चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल, फिर केजरीवाल बनाम किरण बेदी, फिर कैबिनेट पलटन बनाम केजरीवाल और अब संघ बनाम केजरीवाल में बदल चुका है। केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार के अनुसार इस चुनाव में सवा लाख पन्ना प्रभारी नियुक्त किये गये हैं। पन्ना प्रभारी यानी मतदाता सूची के हर पन्ने का एक प्रभारी होता है।
प्रायः एक पन्ने पर 60 मतदाताओं के नाम होते हैं। इस पन्ना प्रमुखों की जिम्मेदारी होती है कि घर-घर जा कर मतदाताओं से संपर्क करें और उनके रुख और मतदान को सुनिश्चित करें। मोदी के बूथ प्रबंधन में पन्ना प्रमुख सबसे अहम कड़ी है। पन्ना प्रभारियों की जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक की होती है। संघ ने इस चुनाव में दिल्ली की 10 बस्तियों, 145 नगरों, 31 जिलों और 6 संभागों में बाँटा है। इनकी जिम्मेदारी संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को दी जाती है। इस बार हर पन्ना प्रभारी को प्रत्येक मतदाता के घर चार बार जाना जरूरी बनाया गया है।
मतदान के दिन आखिरी घंटे में बूथ प्रबंधन की भूमिका सबसे कारगर होती है। तब तक यह तय हो जाता है कि कितना मतदान हो गया है, कितना मतदान और होने वाला है और कौन-कौन से मतदाता निश्चित रूप से मतदान करने नहीं आयेंगे। जब मतदान में प्रमुख दलों में फासला 10 फीसदी मतों का होता है, तब बूथ प्रबंधन की भूमिका कारगर नहीं रह जाती है। पर जब यह फासला 4-5 फीसदी का होता है, तब बूथ प्रबंधन निर्णायक रूप से चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है। मतदान के आखिरी घंटे में 4-5 हजार मतों को मैनेज कर बाजी पलटी जा सकती है।
सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल दिल्ली चुनाव में संघ के प्रभारी हैं। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को स्पष्ट निर्देश दिये हैं कि कबड्डी खिलाड़ियों की तरह आखिरी दम तक शक्ति का इस्तेमाल कर प्रतिद्वंद्वी को पटखनी देनी है और सुरक्षित वापस आना है। दिल्ली विधानसभा चुनाव भाजपा या कहें कि मोदी के लिए मूँछ की लड़ाई बन गया है। चुनावों में साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल होता है। ऐसे में मोदी की कैबिनेट पलटन, संघ के लाखों कार्यकर्ताओं के चुनावी चक्रव्यूह को अकेले केजरीवाल कैसे भेदेंगे, इसके लिए चुनावी नतीजों का 10 फरवरी तक इंतजार करना पड़ेगा। यह चुनाव सत्ताधारी दल के धन और शक्ति के बेहद आक्रामक इस्तेमाल के लिए अवश्य याद किया जायेगा। पर इतना तो तय है कि यह चुनाव मोदी राज के लिए निर्णायक साबित होगा।
(देश मंथन, 30 जनवरी 2015)