Sunday, December 22, 2024
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भाजपा की मजबूती से डर कर एकजुट हुए लालू नीतीश : शाहनवाज

राजीव रंजन झा :

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए राजद-जदयू-कांग्रेस गठबंधन की ओर से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किये जाने के बाद भाजपा की ओर से अब तक स्थिति साफ नहीं है कि वह बिहार के चुनाव में नेतृत्व का चेहरा घोषित करेगी या नहीं। 

मांझी से मजबूत होगा एनडीए

अभिरंजन कुमार :

जीतनराम मांझी के शामिल होने का फायदा एनडीए को निश्चित रूप से होगा और नीतीश कुमार को नेता घोषित करने का नुकसान निश्चित रूप से कांग्रेस-आरजेडी-जेडीयू-एनसीपी-कम्युनिस्ट गठबंधन को होगा। 

नीतीश के लिए चुनौती, लालू के लिए अवसर

श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार :

जेपी के दायें-बाएँ खड़े रहनेवाले उनके दोनों चेले लालू-नीतीश सत्ता के लिए आपस में पिछले दो दशक से लड़ते रहने के वावजूद अगर आज एकसाथ खड़े हैं तो बिहार की राजनीति तो बदलेगी ही।

क्या ब्लैकमेल हो गये लालू?

अभिरंजन कुमार :

पूरी तरह से मर चुकी कांग्रेस और अधमरे जेडीयू ने बिहार में लालू यादव को ब्लैकमेल कर लिया। सच्चाई यह है कि चारा घोटाले में सज़ायाफ़्ता होने और 15 साल तक जंगलराज चलाने के आरोपों के बावजूद लालू यादव का जनाधार नीतीश की तरह क्षीण नहीं हुआ है।

नीतीश की उम्मीदवारी, लालू का दाँव, भाजपा की मुश्किल

संदीप त्रिपाठी : 

राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की मौजूदगी में जनता परिवार के नामित मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार के नाम का ऐलान कर दिये जाने के बाद बिहार चुनाव में खेमों का परिदृश्य आकार ले चुका है।

उप्र चुनाव तक जनता परिवार का विलय मुश्किल

Ajay Upadhyayजनता परिवार के छह धड़ों का क्या विलय होगा? विलय की राह में दिक्कतें क्या हैं? विलय अगर हुआ तो कब तक संभावना है? बिहार में जनता दल यू और राष्ट्रीय जनता दल में गठबंधन होगा या नहीं और क्यों? गठबंधन का चुनावों पर क्या असर होगा। देश मंथन की ओर से राजीव रंजन झा ने वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अजय उपाध्याय से इन मुद्दों पर बात की। पेश हैं इस बातचीत के कुछ अंश...

भाजपा के लिए कठिन परीक्षा हैं उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनाव

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय  :

लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति का सिरमौर बनकर भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र की सत्ता पर तो काबिज हो गयी है पर अब इन दोनों राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में उसकी साख दाँव पर है।

बिहार चुनाव के उलझे समीकरण

संदीप त्रिपाठी :

बिहार विधानसभा चुनाव की आहट सुनायी देने लगी है। चुनाव आयोग भी यह संकेत दे रहा है कि सितंबर-अक्टूबर में चुनाव होंगे।

दिल्ली चुनाव : आमचा विश्वास पानीपतात गेला

राजेश रपरिया : 

दिल्ली में आये केजरी भूकंप से मौजूदा सत्ताधारी दलों और विपक्षी दलों का भरोसा हिल गया है। मोदी और अमित शाह के बूथ स्तर के माइक्रो मैनेजमेंट का इतना हौव्वा था कि वोटों की गिनती से पहले भाजपा हार मानने को तैयार नहीं थी, जबकि भाजपा की हार इतनी साफ दिखायी दे रही थी कि अंधा भी दीवार पर पढ़ सकता था। लेकिन मोदी ने 2002 के बाद से कोई भी बड़ा चुनाव नहीं हारा है।

चुनावी परिदृश्य में छाये हैं सर्वेक्षण, लापता है जनता

संदीप त्रिपाठी : 

दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार एक बड़े मंच पर चल रहा राजनीतिक प्रहसन बन चुका है। इसमें मुख्य कलाकार राजनीतिक दलों के नेता और निजी न्यूज चैनल व मीडिया बने हुये हैं। अगर कोई परिदृश्य से गायब है तो वह जनता है।

दिल्ली चुनाव और दिल की बात

अभिरंजन कुमार :

दिल्ली में कोई जीते, कोई हारे, मुझे व्यक्तिगत न उसकी कोई ख़ुशी होगी, न कोई ग़म होगा, क्योंकि मुझे मैदान में मौजूद सभी पार्टियां एक ही जैसी लग रही हैं। अगर मैं दिल्ली में वोटर होता, तो लोकसभा चुनाव की तरह, इस विधानसभा चुनाव में भी "नोटा" ही दबाता।

क्यों शानदार चुटकुला है “पाँच साल केजरीवाल”!

राजीव रंजन झा : 

केजरीवाल हमेशा अपने लिए नयी मंजिलें तय करते आये हैं। उनकी हर मंजिल की एक मियाद होती है। जब तक उसकी अहमियत होती है, तभी तक वहाँ टिकते हैं। नौकरी तब तक की, जब तक थोड़ा रुतबा हासिल करने के लिए जरूरी थी। एनजीओ तब तक चलाया, जब तक उससे एक सामाजिक छवि बन जाये। आंदोलन तब तक चलाया, जब तक राजनीतिक दल बनाने लायक समर्थक जुट जायें।

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