नदीम एस अख्तर, वरिष्ठ पत्रकार :
आउटलुक वालों ने टाइम्स नाऊ वाले अर्नब गोस्वामी को विलेन बना दिया। घोषणा कर दी कि अर्णब ने भारत में टीवी न्यूज की हत्या कर दी।
ठीक है, मान लेते हैं कि आउटलुक वाले बहुत समझदार हो गये हैं, (विनोद मेहता के जाने के बाद) और मैगजीन निकालते-निकालते अब उन्हें टीवी न्यूज की भी अच्छी खासी समझ हो गयी है।
हो सकता है कि इसके एडिटर साहब ने टीवी न्यूज इंडस्ट्री में खबरों की महत्ता-गुणवत्ता पर कोई पीएचडी भी लिख डाली हो और कोई बड़ा सर्वे भी कराया हो (शायद सपने में), लेकिन एक झटके में ये घोषणा कर देना और फैसला दे देना कि अर्णब ने टीवी न्यूज को मार दिया है, आउटलुक वालों की नासमझी और अल्पज्ञान को ही दर्शाता है।
ये पब्लिक है, सब जानती है
जनता से जाकर पूछिये ना कि अर्णब होने का मतलब क्या है। क्यों कम अंग्रेजी समझने वाले या खांटी हिंदी के लोग भी हर रात Times Now पर अर्नब का शो News Hour Debate देखते हैं? क्यों अंग्रेजी के सारे बड़े चैनल अर्नब के शो के आगे पिट रहे हैं। ऐसी क्या बात है अर्नब में जो औरों में नहीं!!! अंग्रेजी के दूसरे एंकर भी तो बहस करते-कराते हैं, फिर उन्हें अर्नब जैसे दर्शक क्यों नहीं मिल रहे?!!
मतलब साफ है। आप अर्नब को बहस करते देखिये, मुद्दे उठाते देखिये। वे दिल से बोलते हैं, दिल से बहस करते-कराते हैं। उनका और उनकी टीम का होमवर्क गजब का होता है और उनके शो में शामिल कोई भी पैनलिस्ट झूठे आंकड़े बता कर बच नहीं सकता। अर्नब की खासियत है कि वे बहस के विषय पर पूरी तैयारी करके बैठते हैं और किसी को भी अपने शो में -अनर्गल प्रलाप- नहीं करने देते। आप उन पर इल्जाम लगा सकते हैं कि वे Rude हैं, जज की तरह व्यवहार करते हैं, अपने आगे किसी को बोलने नहीं देते आदि-आदि। मैंने भी ऐसा करते कई दफा अर्नब को देखा है कि वो पैनलिस्ट्स पर हावी हो जाते हैं, लेकिन इसमें एक पेच है। ज्यादातर मामलों में मेरा observation ये रहा है कि जब पैनलिस्ट मुद्दे को भटका रहा होता है या फिर गलतबयानी कर रहा होता है तो अर्नब उनको सार्वजनिक रूप से खूब जलील करते हैं। अपनी और अपने टीम की जबरदस्त रिसर्च की बदौलत उसी वक्त उनको आइना दिखा देते हैं और फिर उसकी पूरी खबर लेते हैं। ऐसे वक्त और माहौल में पैनलिस्ट बार-बार यही कहता दिखता है कि Mr. Arnab Goswami, You are not allowing me to speak. Can you please calm down and give me two minutes to prove my point…आदि-आदि.
देखिये, टीवी विजुअल मीडियम है और यहाँ स्क्रीन पर दिख रहे एंकर-गेस्ट पैनलिस्ट्स के हाव-भाव भी दर्शकों से जबरदस्त संवाद करते हैं। अगर एंकर चुटीले अंदाज में मुस्कुराकर कोई सवाल पूछता है तो उसका मतलब भी फौरन दर्शक समझ जाते हैं और अगर पैनलिस्ट जवाब देते-देते पानी का ग्लास उठा लेता है, हाथ बांध लेता है या उसके चेहरे पर गुस्से के भाव आते हैं, तो इसका संदेश भी स्क्रीन के जरिये दर्शकों तक फौरन पहुँचता है।
कुछ ऐसे चेहरे हैं, जिन्हें मैं व्यक्तिगत तौर पर टीवी के स्क्रीन पर पसंद करता हूँ, उनके खास शो के लिए। मसलन आज तक चैनल पर जब प्रभु चावला -सीधी बात- कार्यक्रम लेकर आते थे, तो हंसते-मुस्कुराते प्रभु के सवाल और उनका अंदाज गेस्ट को कई दफा असहज कर जाता था। प्रभु के जाने के बाद राहुल कंवल ने जिस तरह इस प्रोग्राम को संभाला, मेरी नजर में वो भी काबिले तारीफ है। राहुल का बेबाक और बेखौफ अंदाज अलग समा बांधता है और गेस्ट को जल्दी संभलने का मौका नहीं देता। इसी तरह इंडिया टीवी के बहुचर्चित शो -आप की अदालत- में रजत शर्मा का भी कोई जवाब नहीं। रजत का अंदाज, उनकी Body language, कभी उनके सवालों की गंभीरता, कभी चुटीला स्वरूप मुझे खूब भाता है। रजत का अपना स्टाइल है और उनकी मौजूदगी ही पूरे शो को वजनी बना देता है, बेहद वजनी।
ये कुछ नाम हैं, जो अभी मेरे दिमाग में आ रहे हैं, सो उनका जिक्र किया। कल अगर आप ये कहने लगें कि रजत शर्मा या राहुल कंवल या प्रभु चावला बेकार एंकर हैं, इन्हें कुछ नहीं आता, ये टीवी पर शोशेबाजी करते हैं, बहस-सवाल के नाम पर हल्ला करते हैं तो आप की इस व्यक्तिगत राय को कौन मानेगा? भाई, अपना ज्ञान अपने पास रखिये ना। उसे क्यों अपने अखबार या मैगजीन या फिर अपने मीडिया-संचार माध्यम के कंधे पर टांगकर पब्लिक के बीच एक ठूंसा हुआ ओपिनियन पेश कर रहे हैं?!! क्यों अपनी खिल्ली उड़वाने पर तुले हुये हैं। आप भी पत्रकार और वह भी पत्रकार। हो सकता है कि आप, उनसे ज्यादा बड़े और महान पत्रकार हों लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सामने वाले पत्रकार पर आप खबरों की हत्या का सीधा आरोप लगा दें। कमी हर इंसान-पत्रकार में होती है, सामने वाले में भी हो सकती है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप सामने वाले के खोखला और विचार शून्य होने का फैसला सुना दें।
अर्नब गोस्वामी ने भारत की टीवी इंडस्ट्री में जो किया है और जो कर रहे हैं, उसकी मैं इज्जत करता हूँ। कमियाँ उनमें भी हो सकती हैं लेकिन आप उन्हें -खबरों का हत्यारा- बोलकर खारिज नहीं कर सकते। अगर ऐसा कर रहे हैं तो कमी अर्नब में नहीं, आप में है। जरा आत्मावलोकन कर लीजिये। कहीं आप राग-द्वेष-ईर्ष्या-दुनियादारी से प्रेरित होकर काम तो नहीं कर रहे?!! अगर हाँ, तो खुद को ठीक कर लीजिये। अगर नहीं तो अपने आंकलन को व्यक्तिगत रखिये, उसे खबर-स्टोरी की शक्ल मत दीजिये। For God sake, you know !!!
फिलहाल तो आप अर्नब के वह वीडियो देखिये, जिसमें उन्होंने पत्रकार से नेता बने आशुतोष के बारे में सार्वजनिक रूप से अपनी राय व्यक्त की है। एक छात्र के सवाल के अर्नब ने जिस बेबाकी से जवाब दिया है, वो देखने वाली चीज है।
(देश मंथन, 20 मार्च 2015)