संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज ज्यादा नहीं लिखूँगा।
सच पूछिए तो आज बिल्कुल नहीं लिखूँगा। मेरा मन ही नहीं है आज कुछ भी लिखने का। कल से मन बहुत उदास है। कल ही बांग्लादेश से उस बच्ची का शव यहाँ लाया गया, जिसने अभी जिन्दगी की राह पर अपना पहला कदम ही आगे बढ़ाया था।
आप सब अखबार पढ़ते हैं। आप सब टीवी पर खबरें देखते हैं। पर अब मुझसे अखबार नहीं पढ़े जाते। अब मुझसे टीवी पर न्यूज भी नहीं देखी जाती। मैं यह सोच कर ही सिहर उठता हूँ कि कोई कैसे किसी से किसी धर्म ग्रंथ पर सवाल पूछ कर जवाब नहीं देने पर उसकी हत्या कर दे सकता है।
मैंने तारिषी जैन नामक उस बच्ची की तस्वीर देखने की कोशिश की, पर नहीं देख पाया।
उफ! कितनी मासूम थी वो बच्ची। जिन्दगी की राह पर कितने सपने थे उसके।
ढाका के उस रेस्त्राँ में जिन 20 लोगों को यह कह कर मार दिया गया कि वो मुसलमान नहीं, सोचिए क्या मारने वाले खुद मुसलमान थे?
मुझे यकीन नहीं होता कि कोई मुसलमान ऐसा कर सकता है।
मैं 15 साल पहले उसी ढाका शहर में गया था, जहाँ तीन दिन पहले इतना बड़ा हादसा हुआ है। दरअसल मैं कई बार ढाका गया हूँ। पर जब मैं पहली बार वहाँ गया था तब मेरी दोस्ती एक पत्रकार से हुई थी। उसने मुझे पूरा ढाका अपने साथ घुमाया था। वो मुझे अपने घर ले गया था। वो मुझे मंदिर ले गया था।
जब उसे पता चला कि मेरी पत्नी पंजाबी है, तो वो मुझे वहाँ के गुरुद्वारा भी ले गया। ढाका के इकलौते गुरुद्वारा के बाहर ही हमने तस्वीर खिंचवाई।
उसने मुझसे एक बार भी नहीं पूछा कि आपको कुरआन की आयतें पता हैं क्या? वो कह रहा था कि ढाका अमन पसंद शहर है।
मैं उसके घर भी गया था। उसकी पत्नी और बच्चों से भी मिला था। सब मुसलमान थे। हाँ, वो मुसलमान थे। वो सच्चे मुसलमान थे, इसलिए वो इंसान थे। एक अनजान मुल्क में वो मेरे मार्गदर्शक बने हुए थे।
मुझे अगले दिन वहाँ की प्रधानमंत्री शेख हसीना से मिलना था। उनका इंटरव्यू लेना था। मैं ढाका शेरेटन होटल में बैठा था, अचानक ढेर सारे पुलिस वाले मेरे कमरे में घुस आए। मेरे सामान की तलाशी लेने लगे।
मेरे उस अनजान दोस्त ने उनसे बात की। उन्हें कुछ समझाया। फिर वो पुलिस वाले मुझसे सॉरी कह कर चले गये।
वो पुलिस वाले भी मुसलमान थे। इतने सारे मुसलमानों के बीच मैं अकेला हिंदू था। पर मुझे रत्ती भर डर नहीं लग रहा था। मैं समझ रहा था कि मैं इंसानों के बीच हूँ। ऐसे इंसानों के बीच, जो अपने खुदा को याद करते हैं, तो मुझे मेरे देव के दर्शन कराने भी ले जाते हैं। जिन्हें जैसे ही पता चलता है कि मेरी पत्नी दिल्ली की पंजाबी लड़की है, वो मुझे गुरुद्वारा भी ले जाते हैं।
फिर इन 15 सालों में क्या हो गया?
किसकी संतानें बड़ी हो कर इतनी कट्टर हो गईं?
वो कौन लोग हैं जो खुदा के नाम पर ईश्वर के उपासकों को काट दे रहे हैं? वो कौन लोग हैं, जो ईश्वर के नाम पर खुदा के बंदों को मार दे रहे हैं? मैं यकीन से कह सकता हूँ कि ये न मुसलमान हैं, न हिंदू हैं।
फिर कौन है जो हमारे आपके बीच घुस आया है? पता कीजिए। जल्दी पता कीजिए। कोई और है जो रोटी सेंक रहा है हमारी और उनकी लाशों की आँच पर।
मैंने तारिषी के शव की तस्वीर नहीं देखी। मैं देख ही नहीं पाया। मैंने इतना ही सुना है कि वो ढाका गई थी। एक रेस्त्राँ में अपने दोस्तों के साथ बैठी थी। तभी कुछ लोग आ गये। कहने लगे कुरआन की आयतें सुनाओ। नहीं आने पर उसका गला रेत दिया।
मैं यकीन से कह सकता हूँ कि तारिषी जैन ढाका नहीं गयी थी। ढाका तो संजय सिन्हा गये थे। वो कहीं और गयी होगी। किसी और मुल्क में गयी होगी।
ढाका में तो मुलायम मलमल बनता है, वहाँ का दिल इतना कठोर कब से हो गया?
पहली तस्वीर उस ढाका की है, जहाँ 15 साल पहले मैं गया था। दूसरी तो आप रोज अखबार और टीवी पर देख ही रहे हैं, मैं क्या कहूँ?
(देश मंथन 05 जुलाई 2016)