बहन के साथ बिना इजाजत सेल्फी लेने वाले को आप सपोर्ट करेंगे?

0
133

अभिरंजन कुमार :

डीएम चंद्रकला ने क्या गलत कहा?

सचमुच इस देश के बुद्धि-विवेक को लकवा मार गया है। अगर हमारे काबिल दोस्त और पत्रकार भूपेंद्र चौबे सन्नी लियोनी से कुछ असहज करने वाले सवाल पूछ दें, तो हम उन्हें महिला की गरिमा के बारे में ज्ञान देने लगते हैं, लेकिन एक 18 साल का लड़का, जिसे नए कानूनों के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में किसी उम्रदराज जितनी ही सजा दी जा सकती है, अगर एक महिला डीएम के साथ बिना उनकी इजाजत सेल्फी बनाने लगे, उनके रोकने पर भी न रुके, फोटो डिलीट करने के लिए कहने पर भी डिलीट न करे और हीरोगीरी दिखाये, तो हम महिलाओं की गरिमा भूल कर उसके समर्थन में उतर आते हैं।

मैं बुलंदशहर की डीएम वी चंद्रकला का पूरी तरह समर्थन करता हूँ। छोटी-छोटी घटनाओं पर लिखना-बोलना हमारी आदत नहीं है, लेकिन मीडिया में डीएम की चौतरफा आलोचना के बाद मुझे लगा कि इस मसले पर बोलना चाहिए, क्योंकि यह मीडिया के दिवालियेपन से भी जुड़ा मामला है।

जिस वायरल हुए ऑडियो क्लिपिंग के हवाले से डीएम साहिबा पर हमले और तेज हुए हैं, उन्हें सुनने के बाद मुझे लगा कि उन्होंने हमारे उस अपरिचित पत्रकार भाई को बिल्कुल सही नसीहत दी है। आखिर हर भाई की कोई न कोई तो बहन होती है। अगर उस बहन के साथ कोई अपरिचित लड़का उसकी मर्जी के बिना ऐसी ही हरकत करे, तो क्या उसके भाई की वही प्रतिक्रिया होगी, जैसी प्रतिक्रिया डीएम साहिबा के मामले में की जा रही है?

वी चंद्रकला डीएम होने से पहले एक महिला हैं और उन्हें भी आम महिलाओं की तरह अपनी निजता को सुरक्षित रखने का पूरा-पूरा हक है। कोई व्यक्ति बिना उनकी इजाजत के कैसे उनके साथ अपनी तस्वीर बना सकता है? उनके रोकने पर भी न रुके तो और भी बड़ा गुनाह। और अगर मोबाइल से तस्वीर डिलीट करने से मना करे, तो इन्टेंसन पर भी शक की गुंजाइश बढ़ जाती है। कोई लड़का अगर डीएम के साथ ऐसी हिमाकत कर सकता है, तो वह आम लड़कियों के साथ क्या-क्या कर सकता है? एक तरफ हम औरतों के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए मोमबत्तियाँ जलाते हैं, दूसरी तरफ हम शोहदों को बढ़ावा देना चाहते हैं?

हम कैसे सामाजिक हैं, जो रेप होने पर तो सीधे अपराधियों को फाँसी चढ़ा देना चाहते हैं और रेप से पहले के अपराधों को हंसी-खेल में उड़ा देना चाहते हैं? उस ऑडियो क्लिपिंग को मैंने सुना। अगर उसमें उन्हीं की आवाज है, तो भी मैं कहूँगा कि इसमें कुछ शब्द आक्रोश के भले हो सकते हैं, लेकिन किसी भी महिला में अपने खिलाफ हुए या हो रहे अपराध के प्रतिकार में इतने आक्रोश को आप कैसे अनुचित ठहरा सकते हैं?

पहले दिन जब मीडिया में इस खबर पर डीएम की आलोचना देखी-सुनी थी, तो मेरे मन में भी ठीक वही सवाल आये थे, जो डीएम, बुलंदशहर, वी चंद्रकला पूछ रही हैं। सचमुच, डीएम चंद्रकला का विरोध करने वालों को उस लड़के को बहादुरी-पुरस्कार के तौर पर यह ऑफर देना चाहिए कि “आओ, मेरी बहन के साथ सेल्फी लो।” पर क्या, वे ऐसा ऑफर दे पाएँगे? और अगर वह लड़का या कोई और लड़का उनकी बहन के साथ ऐसी ही हिमाकत करे, तो क्या वह उसी तरह लिबरल बनने का ढोंग करेंगे, जैसे वे डीएम चंद्रकला के मामले कर रहे हैं?

सचमुच, हमारी सोच को लकवा मार गया है। हमारी बुद्धि बिला गयी है। वरना डीएम सेल्फी मामले में हमारी प्रतिक्रिया ऐसी नहीं होती। हमने साबित कर दिया कि हम महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए चाहे जितने ढोंग कर लें, लेकिन हम महिलाओं को एक वस्तु-मात्र ही समझते हैं और जो भी महिला हमारी ऐसी समझदारी का विरोध करेगी, उसे हम अपनी मर्दवादी हिंसा से रौंद डालेंगे।

(देश मंथन 08 फरवरी 2016)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें