पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
टीम संयोजन हाहाकारी, खुद की फिनिशर की साख गयी तेल लेने, कल्पनाशीलता किस चिड़िया का नाम है, नहीं जानते, फील्ड की जमावट माशाअल्ला, गेंदबाजों पर भरोसा नहीं! ऐसे में फिर क्या खा कर जीत की सोच भी सकते थे कागज पर देश के सफलतम कप्तान महेंद्र सिंह धोनी। काल चक्र है प्रभु हमेशा ही सीधा नहीं घूमेगा कि जोगिंदर शर्मा और इशांत शर्मा जैसे पिटे गेंदबाज भी जीत दिलाते रहेंगे। समय बदल गया है रांची के राजकुमार साहब।
चलाचली की बेला आ चुकी है। खिलाड़ियों का भी कितना समर्थन मिल रहा है आपको, यह भी खूब समझ रहे होंगे सर जी आप! इसी धरती पर बीते बरस क्या जलवा था आपके गेंदबाजों का कि सेमीफाइनल के पहले के मुकाबले टीम ने विपक्षियों के सभी विकेट लेते हुए अपने नाम किए थे। लगभग वही गेंदबाजी पाताल देश में ही इस बार पाताल में धंसी नजर आयी। लगातार तीन बार बल्लेबाजों ने तीन सौ के आसपास का स्कोर खड़ा करते हुए अजूबा जरूर कर दिखाया मगर उससे भी बड़ा अजूबा तो किया कंगारुओं ने लगातार लक्ष्य का मजाक बना कर। जी हाँ टीम इंडिया नें पिछले बरस यहीं, फिर बांग्लादेश और घर में द. अफ्रीका से पिटने के बाद यहाँ मेलबर्न में तीन विकेट की पराजय के साथ ही 0-3 से पिछड़ कर एक दिनी सिरीज गँवाने का अपना क्रम बरकरार रखा। पहले दो मुकाबलों में रोहित शर्मा के शतक बेकार चले गए तो एमसीजी में कोहली का शतक उनको टीस देने वाला बना।
सच तो यह है कि पर्थ और गाबा में भी मौके थे बावजूद इसके कि स्टीव स्मिथ के रणबांकुरों नें कप्तान की अगुवाई में चुटकी बजाते हुए तीन सौ से ज्यादा का स्कोर पीछे छोड़ा था। लेकिन मेलबर्न में तो तब फिजाओं में जीत की खुशबू तैरने लगी थी जब कंगारू अपने छह विकेट खो चुके थे और लक्ष्य 81 रन दूर था। लेकिन मेजबानों पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि उनके पास मैक्सवेल (96 ) और फाकनर के रूप में दो बेजोड़ फिनिशर्स जो मौजूद थे। दोनों ने अपने काम को किस सफाई के साथ अंजाम दिया, यह भी भला कोई पूछने की बात है ?
देखिए क्रिकेट में व्यक्तिगत प्रदर्शन से काम नहीं चलता। एकजुटता ज्यादा मायने रखती है। मेलबर्न में क्या हुआ ? मेहमानों की ओर से कोहली (117 ) ने शतक लगाया और धवन (68 ) व आजिंक्य रहाणे (50 ) के साथ दो शतकीय साझेदारियाँ कीं। लेकिन इसके अलावा कुछ नहीं जबकि जरा मेहमानों को देखिए कि सबसे बड़ी साझेदारी 80 की ही थी मगर चार ऐसी साझेदारियों नें, जिनमे सबसे कम 48 रन की थी, मेहमानों को हमेशा पिछले पाँव पर ही रखा। इसने परिणाम में सारा अंतर कर दिया।
एक ही लकीर पर चलने वाले हठी भारतीय कप्तान ने आशा के विपरीत दो बदलाव ऐसे किए जो अप्रत्याशित थे पर वे भी काम नहीं आए। ऐसी पिच पर जो पर्थ- गाबा की तरह सोयी नहीं थी, उसमें टर्न था तो शाम को सीम और स्विंग भी देखने को मिला, मगर प्रथम प्रवेशी हरफनमौला द्वय गुरकीरत मान और रिषी धवन दोनो विभागों में निष्प्रभावी ही सिद्ध हुए। जिस अश्विन की यहाँ सख्त जरूरत थी, उसको पानी पिलाने का काम दे दिया गया। समय खराब होता है तो हर दाँव उल्टा पड़ता है।
याद नहीं आता कि 309, 308 और 295 का स्कोर खड़ा करने के बावजूद टीम को कभी इस तरह लगातार हार से दो चार होना पड़ा हो। लेकिन क्या कीजिएगा जब सेनापति ही फिसड्डी निकल गया हो। डेरा डंडा उठाने का समय आ गया है मिस्टर धोनी। ‘मनुष्य बली नहीं होत है, समय होत बलवान, भीलों ने लूटी गोपिका, वही अर्जुन, वही बाण’। बहुत पुरानी कहावत है पर हमेशा सामयिक है।
(देश मंथन, 18 जनवरी 2016)