अभिरंजन कुमार, पत्रकार एवं लेखक :
आप लोग धर्म-परिवर्तन पर बवाल कीजिए, मेरा सवाल यह है कि हम धर्म-परिवर्तन कर सकते हैं, लेकिन जाति-परिवर्तन क्यों नहीं?
हो सके तो ईसाइयों और मुसलमानों को हिन्दू बनाने से पहले सारे हिन्दुओं का जाति-परिवर्तन कर दीजिए और उन्हें एक ही जाति में ले आइए। कोई क्यों रहे अगड़ा? क्यों रहे पिछड़ा? क्यों रहे दलित? क्यों रहे महादलित? इक्कीसवीं सदी में भी “आदिमानव” की तर्ज पर कोई क्यों कहलाएं “आदिवासी?”
आपने ईसाइयों और मुसलमानों से हिन्दू बनाने का “रेट-कार्ड” तो तय कर दिया है, शायद मुसलमानों और ईसाइयों ने भी हिन्दुओं का धर्मांतरण कराने के लिए “रेट-कार्ड” तय कर रखा हो, लेकिन मैं चाहता हूं कि इस देश में एक “रेट-कार्ड” ऐसा भी तय करिए कि सबको एक ही जाति में लाने के लिए उन्हें क्या-क्या दिया जाना चाहिए।
यह “रेट-कार्ड” इस आधार पर तय हो कि सम्मान से जीने के लिए किसी व्यक्ति का न्यूनतम आर्थिक-सामाजिक-शैक्षणिक स्तर क्या होना चाहिए और कम से कम कितनी रकम और कितनी सुविधाएं मुहैया कराने से कोई व्यक्ति इस स्तर तक पहुंच सकता है।
यह “रेट कार्ड” तय हो जाए, तो हर उस व्यक्ति को जो न्यूनतम आवश्यकताओं वाले पैमाने से नीचे है, उतनी रकम और सुविधाएं देकर उन्हें एक ही जाति की छतरी के नीचे लाया जाये, जिससे किसी के भीतर बड़ा या छोटा, अगड़ा या पिछड़ा, संभ्रांत या नीच होने का अहसास न रह जाए। हर व्यक्ति का एक न्यूनतम लिविंग स्टैंडर्ड हो और हर व्यक्ति का एक न्यूनतम सम्मान हो। उन्हें इस स्तर तक लाने के लिए जो भी रकम और सुविधाएं देनी पड़े, उसे “प्रलोभन” की तरह नहीं, “हक़” की तरह दीजिए।
मेरा ख्याल है कि नरेंद्र मोदी अगर सचमुच अपने वादे के मुताबिक काला धन इस देश में ले आते और हर व्यक्ति के प्रधानमंत्री जन-धन योजना वाले बैंक खाते में 15 से 20 लाख रुपये डलवा देते, तो इस “रेट कार्ड” वाली ज़रूरत को आर्थिक मोर्चे पर आसानी से हासिल किया जा सकता था।
बाकी सांस्कृतिक रूप से इसे अंजाम देने के लिए आरएसएस, वीएचपी और बजरंग दल वाले एक से बढ़कर एक भाई-बंधु तो हैं ही। सबको एक जाति में लाने के लिए वे चाहे जो भी यज्ञ, हवन, पूजन, स्नान, ध्यान इत्यादि करवा लेते, मैं सबका समर्थन कर देता। फिर तो मैं अपने कांग्रेसी और दूसरी पार्टियों के भाई-बंधुओं की तरह ये भी नहीं कहता कि मंत्र ही क्यों पढ़ रहे हो, कलमा क्यों नहीं पढ़ रहे हो?
क्या आपको यह दिलचस्प नहीं लगता कि इस देश में सबको धर्म-निरपेक्ष ही होना है, जाति-निरपेक्ष किसी को नहीं होना है। लालू, नीतीश, माया, मुलायम, कांग्रेस, कम्युनिस्ट- सबके माथे पर बस धर्म-निरपेक्ष होने का भूत ही सवार है, जाति-निरपेक्ष होने का जिन्न किसी के कंधे पर सवार होता ही नहीं।
लेकिन भैया मुझे तो पहले जाति-निरपेक्ष होना है। जाति-निरपेक्ष हो जाएंगे तो धर्म-निरपेक्ष भी हो जाएंगे। हजार बंटवारे ख़त्म होंगे तो हजार एकवां बंटवारा भी खत्म हो जाएगा।
इसलिए हे हिन्दू-हृदय हारो, हिन्दू-हृदय सम्राटों, क्या आप मेरी पुकार सुन रहे हैं? क्रिसमस पर मुसलमानों और ईसाइयों को हिन्दू बनाने का ख्याल छोड़िए। पहले रामनवमी पर, जन्माष्टमी पर, महाशिवरात्रि पर… हनुमान जयंती, विश्वकर्मा जयंती, दुर्गा पूजा, दशहरा, इंद्र पूजा, सरस्वती पूजा, गणपति उत्सव, होली, दिवाली- तमाम पर्व-त्योहारों पर… जातियां तोड़ने और सभी जातियों को जोड़ने के कार्यक्रम आयोजित कीजिये। बड़े हिन्दू-हितैषी बनते हैं तो धर्म-परिवर्तन छोड़िए, जाति-परिवर्तन शुरू कीजिए। एक धर्म, एक जाति तो बनाइए पहले?
लेकिन आप यह क्यों करेंगे? आपका तो खेल ही दूसरा है। आपकी तो सारी कवायद ही इसलिए है कि अलग-अलग जातियां, अलग-अलग संप्रदाय बने रहें। उनके बीच का बंटवारा, उनके बीच का झगड़ा बना रहे।
किसी का बड़प्पन, किसी का छोटापन बना रहे। किसी की ताकत, किसी की कमज़ोरी बनी रहे। किसी की अमीरी, किसी की ग़रीबी बनी रहे। आपका तो एक ही मंत्र है-
“शर्म करो न लाज करो, फूट डालो और राज करो।
बंटवारे का आगाज करो, फूट डालो और राज करो।”