अपनी बचाऊँ कि ये सोचूँ कि सरकार क्या कर रही है

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

आज अपनी बात कहने के लिए मैं एक चुटकुले का सहारा ले रहा हूँ, लेकिन मैं जो लिखने जा रहा हूँ वो चुटकुला नहीं। वो बेहद संजीदा विषय है, इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि आपमें से अगर किसी को चुटकुले पर आपत्ति हो, तो मुझे माफ कर दें।

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एक बार एक महिला अपने पति की गैरमौजूदगी में अपने प्रेमी के साथ बेडरूम में सो रही थी। 

पति शहर से दूर कहीं दौरे पर गया था। पत्नी को मालूम था कि पति दो दिनों के बाद ही आयेगा। पर उस रात पति अचानक घर जल्दी पहुँच गया। उसने अपनी चाबी से कमरे का दरवाजा खोला और भीतर चला आया। 

पत्नी अचानक कमरे में अपने पति को देख कर जरा भी नहीं घबरायी। उसने बहुत संयत होकर पूछा, “अरे, तुम जल्दी कैसे चले आये? तुम तो दो दिनों के लिए दौरे पर गये थे न?”

पति ने पत्नी के सवालों का जवाब देने की जगह पत्नी से पूछा कि ये कौन है?

अब पत्नी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वो लगभग चिल्लाने वाली स्थिति में थी। उसने कहा, “तुम बात मत बदलो। मैंने जो पूछा है, पहले उसका जवाब दो, तुम जल्दी कैसे आ गये?”

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हमारे हुक्मरान ऐसे ही हैं। 

आप उनसे पूछेंगे कि इस देश में इतनी गरीबी और बेरोजगारी क्यों है, तो वो आपको लगभग डपटते हुए कहेंगे कि तुम बताओ कि इतना प्रदूषण क्यों है? हवा इतनी गंदी क्यों है? तुमने अपनी गाड़ियों से जो इतना प्रदूषण फैला दिया है उसका जवाब कौन देगा? 

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उस महिला का पति बेचारा सन्न रह गया था। 

वो पूछ रहा था कि हमारे कमरे में ये अनजान शख्स कौन है और पत्नी कह रही थी कि तुम्हारी बात बदलने की आदत बहुत बुरी है। 

हम सरकार से जैसे ही कोई सवाल करते हैं, सरकार हमें उलझा देती है, जिस प्रदूषण नीति के लिए सारी जिम्मेदारी ही उसकी है, उसका ठीकरा वो हमारे माथे पर फोड़ कर आँखें दिखा सकती है। 

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आप सरकार से पूछते हैं कि आपने चुनाव से पहले कहा था कि सबको रहने के लिए घर मिलेगा। कब मिलेगा घर?

वो आपको यह कह कर उलझा देंगे कि तुम उन चिड़ियों के बारे में सोचो, जिनके घोसले तुमने उजाड़ दिए हैं। तुमने पक्षी अभयारण्य के दस किलोमीटर के दायरे में उस बिल्डर से मकान खरीद कर जो गुनाह किया है, उसकी सजा कौन भुगतेगा?

आप कहेंगे कि उस बिल्डर को जमीन आपने दी है। उसे ऊँची-ऊँची इमारतें बनाने की अनुमति भी आपने दी है। मैंने तो उसमें एक फ्लैट खरीदा है। 

वो आपको फिर डाँट देंगे। हमने जमीन दी थी, हमने अनुमति दी थी, इसीलिए तो हमने उसका काम रोक दिया। हमने आपसे थोड़े न कहा था कि आप जाकर वहाँ फ्लैट बुक करा लो। 

आपको फ्लैट बुक कराने से पहले सोचना चाहिए था कि कहीं आसपास चिड़ियों का घोसला तो नहीं।

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मैंने पिछले महीने ही एक कार खरीदी है। 

अब सुन रहा हूँ कि सरकार ने डीजल की कार पर प्रतिबंध लगा दिया है। दिल्ली में सरकार बन गयी। ढेर सारे लोग कभी हमारे साथी हुआ करते थे। अपनी गाड़ी की रक्षा के लिए मैं अपने एक दोस्त से मिला। मैंने पूछा कि आप लोगों को इतनी ही चिंता थी तो कंपनी को यहाँ कारखाना लगाने ही क्यों दिया? बेचारों का इतना नुकसान हो गया। 

“हो गया तो हो गया। हम हवा का नुकसान नहीं सह सकते।”

“आपको पता है, इन गाड़ियों से प्रदूषण नहीं फैलता। यह तो डीजल में मिलावट से फैलता है। मैं पत्रकार हूँ, मैंने कई बार रिपोर्टिंग की है कि डीजल में आसानी से मिट्टी का तेल मिला दिया जाता है। पेट्रोल पंप वाले अपने मुनाफे के लिए ऐसा करते हैं। आप पेट्रोल पंप वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते?”

“तुम चुप रहो, संजय सिन्हा। तुम्हें क्या जरूरत थी इतनी बड़ी गाड़ी खरीदने की? तुम सरकार हो क्या? तुम टाटा नैनो पर चलते तो क्या तुम्हारी शान में बट्टा लग जाता? और तुम इतने सवाल मत किया करो। शहर की आबोहवा तुमने और तुम्हारे जैसे लोगों ने खराब की है। मेरी खाँसी के लिए सिर्फ और सिर्फ तुम्हीं जिम्मेदार हो।”

“सर, पर दिल्ली में प्रदूषण तो राजस्थान से आने वाली हवाओं के साथ आता है। वहाँ से धूल-कण आते हैं।”

“हम हवा को तो नहीं रोक सकते, न!”

“सर, पंजाब में जो किसान अपनी फसल के भूसे जलाते हैं, उससे भी प्रदूषण होता है।”

“शटअप। पंजाब में चुनाव होने हैं। हम वहाँ के किसानों को नाराज नहीं कर सकते। हम कहीं के किसानों को नाराज नहीं कर सकते।”

“सर, दिल्ली में जो टैक्सी और ऑटो चलते हैं, उनसे बहुत प्रदूषण होता है।”

“तुम फालतू बात मत करो। हम तुम्हारे वोट से नहीं जीते हैं। हम इन ऑटो वालों के वोट से ही जीते हैं। उन्हें तो बिल्कुल नाराज नहीं कर सकते।”

“ये जो बड़े-बड़े ट्रक रोज आते हैं, उनका क्या?”

“चंदा क्या तुम देते हो पार्टी के लिए। हम अपने इतने सारे दोस्तों को तुम्हारे टीवी चैनल पर चाँय-चाँय करने के लिए भेजते हैं, उनका खर्चा तुम चलाते हो? इन ट्रक वालों की लॉबी पर कुछ बोलने से पहले अपने गिरेबान में झाँको। तुमने हवा में गंधक की मात्रा कितनी फैला दी है।”

“पर सर, इन गाड़ियों से प्रदूषण हो ही नहीं सकता। आप फिएट और अंबेसडर के जमाने की बात सोच रहे हैं। ये गाड़ियाँ दुनिया के मानकों पर बनी हुई हैं। वो बीते दिनों की बात हुई कि पहले अमेरिका में गाड़ियाँ आती थीं, फिर जब वहाँ कबाड़ हो जाती थीं तो वो तकनीक भारत को टिका दी जाती थीं। अब तो जैसे दिल्ली पटना में एक साथ फिल्में रिलीज होती हैं, वैसे ही गाड़ियाँ भी दुनिया भर में साथ ही आती हैं।”

“फिल्में बहुत देखते हो। जाओ फिल्म देखो। इस हवा के गुनहगार तुम्हीं हो।”

“अच्छा, आपने कहा था फ्री इंटरनेट देंगे।”

“संजय, सवाल बहुत करते हो। तुम जवाब एक भी नहीं देते। हवा में जो कार्बन, सल्फर, नाइट्रोजन, जेडपीटीओ, लेडपीटीओ, हेडपीटीओ और न जाने कितने पीटीओ तुमने मिला दिये हैं, पहले उनका जवाब लेकर आओ। फिर मुझसे बात करना कि फ्री इंटरनेट क्यों नहीं। सबको नौकरी क्यों नहीं। सबको घर क्यों नहीं।”

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बेचारा पति अपनी फाइल खोल कर बैठा है यह पता करने के लिए आखिर उसकी मीटिंग दो दिन पहले क्यों खत्म हो गयी। 

मैं बैठा हूँ अपनी गाड़ी का इंजन खोल कर यह देखने के लिए प्रदूषण कहाँ से हो रहा है। 

इसके बाद मैं आज दफ्तर से छुट्टी लेकर निकलूँगा गाड़ी का प्रदूषण प्रमाणपत्र लेने के लिए, क्योंकि प्रदूषण जाँच दिल्ली में सुबह नौ से शाम पाँच के बीच ही होती है। फिर सम नंबर वाले उस परिचित को ढूँढूंगा जो मेरे समय पर उस रास्ते से गुजरता हो और वो मुझे अपने साथ तीन दिन दफ्तर ले जा सके। मेरी गाड़ी विषम नंबर की है। 

सोचिए अब मैं अपनी बचाऊँ कि ये सोचूँ कि सरकार क्या कर रही है। 

आम जनता और पति में कितनी समानता है। है न!

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“तो आज तुम रिश्तों की कहानी नहीं लिखोगे?”

“ये भी तो रिश्तों की ही कहानी है। सरकार और जनता के बीच रिश्तों की कहानी।   

(देश मंथन, 22 दिसंबर 2015)

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