अच्छाई में भी कमियाँ दिखेंगी

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बच्चा पार्क में खेलने जा रहा था। 

दादी घर में अकेली थी। दादी ने बच्चे को रोका और कहा कि क्या तू दिन भर खेलता रहता है। कभी अपनी दादी के पास भी बैठा कर। बातें किया कर। 

बच्चा दादी के पास बैठ गया। 

दादी खुश हो गयीं। उन्होंने बच्चे को दुलार किया और कहा कि तू कितना अच्छा है, मेरी सारी बातें मानता है। 

बच्चे ने पूछा, “दादी लोग बातें क्यों करते हैं? बात करने से क्या फायदा है?” 

“बेटा, परिवार में लोग साथ रहते हैं, एक दूसरे से प्यार करते हैं। एक-दूसरे से बातें करके उसके बारे में जानते हैं। बात करने से रिश्ते और मजबूत होते हैं।”

“पर हम तो पता नहीं कब से छह लोग ही हैं घर में। हम तो एक-दूसरे को जानते हैं। फिर हमें बात करने से क्या फायदा?”

“बेटा आज भले हम कुल छह लोग ही घर में हैं, पर धीरे-धीरे हमारा परिवार बढ़ेगा।”

“कैसे बढ़ेगा? मैं तो पता नहीं कब से यही देख रहा हूँ कि घर में आप, पापा, मम्मी, मैं, छोटी बहन मुन्नी और एक बिल्ली यानी कुल छह लोग ही हैं।”

“अगले साल तेरे जन्मदिन पर मैं एक कुत्ता तुम्हें गिफ्ट कर दूंगी। तब तो सात हो जाएँगे न!”

“नहीं। कुत्ता तो बिल्ली को मार देगा। हम तो फिर छह ही रह जाएँगे।”

“जब तू बड़ा होगा तो तेरी शादी हो जाएगी, तेरी बीवी घर आ जाएगी। तब तो हम सात हो जाएँगे, बेटा।”

“लेकिन जब मेरी शादी होगी, तब तक मुन्नी की भी शादी हो जाएगी। मुन्नी अपने घर चली जाएगी। हम तो फिर भी छह ही रहेंगे दादी।”

“अरे मेरे राजा बेटा, तू ऐसे क्यों सोचता है? तेरी शादी होगी तो तेरे बच्चा भी तो होगा। जब तेरा बच्चा होगा, तो फिर हम सात लोग हो जाएँगे।”

“पर दादी जब तक मेरा बच्चा होगा, तब आप दुनिया से चली जाएँगी। हम तो फिर छह लोग ही रह गये।”

“बेटा, तू पार्क में ही जाकर खेल। तेरे साथ बात करने का कोई फायदा नहीं।”

“ठीक है दादी। आप कह रही हैं तो मैं खेलने जा रहा हूँ। आप मोबाइल पर संजय सिन्हा की कहानियाँ पढ़िए। बात करने से कोई फायदा नहीं।”

***

इस संसार में भांति-भांति के लोग होते हैं। 

मैं ऑड-इवेन पर केजरीवाल को चिट्ठी लिखता हूँ, तो केजरी भक्त मुझे ‘केजरी दुश्मन’ करार दे बैठते हैं। मैं मोदी पर कुछ लिखता हूँ तो मुझे बीजीपी वाला बताने लगते हैं। कांग्रेस के बारे में लिखता हूँ तो कांग्रेसी ठहराने लगते हैं। 

कोई बात नहीं। पत्रकारों को यह सब सहना पड़ता है। 

कुछ दिन पहले मैं नरेंद्र मोदी के एक सफाई वाले समारोह में गया था। 

वहाँ उन्होंने एक बहुत अच्छी बात बोली थी। उन्होंने सफाई पर चर्चा करते हुए कहा था, “आपलोगों को सफाई पसंद होना ही चाहिए। जैसे आप अपना घर साफ रखना चाहते हैं, वैसे ही आपको अपने देश को भी साफ रखने की कोशिश करनी चाहिए। आप इसे अपना कार्यक्रम समझिए। आप मोदी का कार्यक्रम मत समझिए। आप लोगों से ये मत कहिए कि सफाई की ये मुहिम मोदी ने शुरू की है। अगर आप ऐसा कहेंगे, तो विरोधी दल इसमें भी कुछ न कुछ पेंच ढूँढ लेंगे और इसे सफल नहीं होने देंगे। वो सफाई की जगह और गंदगी फैलाने लगेंगे। इसलिए आपलोग इसे मेरी योजना न कह कर अपनी योजना कहिए। हम सबको सफाई चाहिए। योजना किसी की हो, यह महत्वपूर्ण नहीं।” 

***

मेरा तो मानना है कि कुछ बच्चों को बातचीत के लिए रोकना ही नहीं चाहिए। उनसे कहना चाहिए कि बेटा, तू स्कूल से आकर पार्क में ही रुक जाया कर। वहीं खेला कर। तू खेलता रह। तुझसे बात करके कोई फायदा नहीं। तू विरोधी पार्टी के खानदान में पैदा हुआ है। 

कोई सफाई करने चलेगा, तो तू उसमें भी कमी ढूँढ ही लेगा। कोई फेसबुक पर लिखेगा तो उसमें भी कमियाँ ही मिलेंगी। तू आँख में माइक्रोस्कोप लगा कर पैदा हुआ है। तेरी गिनती छह से ऊपर नहीं बढ़ने वाली। तू पहले बिल्ली को मारेगा, फिर दादी को मारेगा। 

जा बेटा तू पार्क में खेल। वही जगह तेरे लिए ठीक है। 

(देश मंथन 11 फरवरी 2016)

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